Sunday 25 August 2013

अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी -

टेढ़ी-मेढ़ी डगरिया, पड़ते डग-मग पैर |
बीती यूँ ही उमरिया, रहे मनाते खैर | 

रहे मनाते खैर, खैर वो बीत चुकी है |
गया हमेशा चूक, सफलता छिपी-लुकी है |

तौर-तरीके श्रेष्ठ, पकड़ ना पाया *मेढ़ी |
 अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी ??

*तीन शिराओं वाली चोटी |

3 comments:

  1. टेढ़ी-मेढ़ी डगरिया, पड़ते डग-मग पैर |
    बीती यूँ ही उमरिया, रहे मनाते खैर |

    वाकई पता ही नहीं चला :)

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