Wednesday 31 July 2013

अरुण जी निगम के साथ रविकर विमर्श-



छंद कुण्डलिया : मिलें गहरे में मोती

--------अरुण कुमार निगम
हलचल होती देह से, मन से होता ध्यान
लहरों को माया समझ, गहराई को ज्ञान
गहराई  को  ज्ञान , मिलें  गहरे में  मोती
सीधी-सच्ची बात, लहर क्षण-भंगुर होती
गहराई   में   डूब  ,  छोड़  लहरें  हैं चंचल
मन से होता ध्यान, देह से होती हलचल ||



  1. चंचल मन का साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
    गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |

    करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊं गहरे |
    दिखे प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |

    बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
    दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||


  1. आँखें दोनों बंद हों,देह शिथिल श्रीमान्
    करें श्वास महसूस फिर, शुरू कीजिये ध्यान

    शुरू कीजिये ध्यान, विचारों को आने दें
    कीजे नहीं प्रयास , विचारों को जाने दें

    होंगी इक दिन मित्र, नियंत्रित मन की पाँखें
    गहराई में डूब , खुलेंगी मन की आँखें ||




बाँछे रविकर खिल गई, मिल जाता गुरु मन्त्र |
हिलता तब अस्तित्व था, अब हिलता तनु-तंत्र |

अब हिलता तनु-तंत्र, देह पर नहीं नियंत्रण |
हो कैसे फिर ध्यान, करूँ कैसे प्रभु अर्पण |

बड़ी कठिन यह राह, पसीना बरबस काछे |
शेष रहे संघर्ष, पिछड़ती रविकर *बाँछे ||
*इच्छा

  1. रविकर की बाँछें खिलीं,हिला समूचा तंत्र
    तुरत साधना-रत हुये,जब पाया गुरु-मंत्र
    जब पाया गुरु-मंत्र , ध्यान में डूबे ऐसे
    योगी हो तल्लीन , ध्यान में डूबे जैसे
    गई कुण्डली जाग, सजी कुण्डलिया सुंदर
    बादशाह बेताज , हमारे कविवर 'रविकर' ||

Tuesday 30 July 2013

खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़


कीचड़ कितना चिपचिपा, चिपके चिपके चक्षु |
चर्म-चक्षु से गाय भी, दीखे उन्हें तरक्षु |

दीखे जिन्हें तरक्षु, व्यर्थ का भय फैलाता |
बने धर्म निरपेक्ष, धर्म की खाता-गाता |

कर ले कीचड़ साफ़,  अन्यथा पापी-लीचड़ |
खिलें इसी में कमल, आँख का पानी, कीचड़ |
चर्म-चक्षु=स्थूल दृष्टि
तरक्षु=लकडबग्घा


कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल  की, है उम्मीद त्रिशंकु |

है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा |
करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा |

ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे |
कीचड़ तो तैयार, कमल पर कहाँ खिलेंगे  ??
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi 
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta 

Sunday 28 July 2013

नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता-

स्वार्थ, शिथिलता, भय परे, हो साहस भरपूर |
अनुगामी को करे नहिं, नायक खुद से दूर |

नायक खुद से दूर, किन्तु पहचाने बागी |
निष्पादित रणनीति, करे बन्दा-वैरागी |

नहीं व्यर्थ रक्त-पात, हिरन का मरना खलता |
दे दुश्मन को मात, बिना मद स्वार्थ-शिथिलता 

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है-


Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.


दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-


Friday 26 July 2013

कर खूनी इफ्तार, मिला क्या अरे केकड़ों-

 Bombings at busy market in north Pakistan kill 39
Pakistani villagers injured in a bomb blast recover at at a local hospital in Parachinar, Pakistan on Friday, July 26, 2013. A pair of bombs exploded in a busy market area Friday night in northern Pakistan, tearing through crowds of shoppers grabbing last-minute items to break their daily fast during the holy month of Ramadan and killing nearly two dozen people, a doctor said. (AP Photo/Ali Afzal)


दंगे से आतंक का, सीधा सा सम्बन्ध |
फैलाते रहते सदा, दिल्ली वाले गन्ध |

दिल्ली वाले गन्ध, पाक में मरे सैकड़ों |
कर खूनी इफ्तार, मिला क्या उन्हें केकड़ों |

एक धर्म इक देश, इबादत के दिन नंगे |
करते बम विस्फोट, कराया किसने दंगे ||

Thursday 25 July 2013

जाँघो पर लिखने लगा, विज्ञापन जापान -

जाँघो पर लिखने लगा, विज्ञापन जापान |
स्लीब-लेस ड्रेस रोकता, पर यह हिन्दुस्तान |

पर यह हिन्दुस्तान, खबर इंदौर बनाए |
कन्याएं जापान, हजारों येन कमायें |

बिना आर्थिक लाभ, कभी तो सीमा लाँघो |
डायरेक्टर धिक्कार, जियो जापानी जाँघो |

दो-न्यूज
इंदौर के एक मैनेजमेंट कॉलेज में स्लीब-लेस ड्रेस पर रोक -
जापान में जाँघों पर विज्ञापन-
३००० कन्याओं ने कराया रजिस्ट्रेसन

Wednesday 24 July 2013

डर्टी पिक्चर देख, लगा सत्ता कापर-टी


 पावरटी घट ही गई , बीस फीसदी शुद्ध |
मँहगाई पर ना घटी, पावरोटियाँ क्रुद्ध |

पावरोटियाँ क्रुद्ध, पाँवड़ा पलक बिछाओ |
नव अमीर बढ़ जाँय, गीत स्वागत के गाओ |

डर्टी पिक्चर देख, लगा सत्ता कापर-टी |
रोके पैदावार, घटा देती पावरटी ||


सकते में है जिंदगी, दो सौ रहे कमाय |
कुल छह जन घर में बसे, लाल कार्ड छिन जाय | 

लाल कार्ड छिन जाय, खाय के मिड डे भोजन -
गुजर बसर कर रहे, कमे पर कल ही दो जन |

अब केवल हम चार, दाल रोटी नित छकते |
तब हम भला गरीब, बोल कैसे हो सकते ||


अब्बा ओ बामा सुनो, डब्बा होता गोल-




 अब्बा ओ बामा सुनो, डब्बा होता गोल |
रोजी रोटी पर बनी, खुलती रविकर पोल |

खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना |
समझो अपना रोल, धूर्त मोदी का रोना |

चूँ चूँ का अफ़सोस, भेज ना सका मुरब्बा  |
रहा आज ख़त भेज, रोक मोदी को अब्बा ||

 ओ बामा ओ व्याहता, जाती हो क्यूँ रूठ |
पाँच साल के बाद ही, बनती कुर्सी ठूठ |

बनती कुर्सी ठूठ,  झूठ हो सत्ता रानी |
देकर हमें तलाक, करो मोदी अडवानी |

हम कांग्रेसी साथ, खोल करके पाजामा  |
आये लगा गुहार,  रोक मोदी ओबामा ||


तालीमी हालात हों, या हो मिड डे मील 
रहे सुशासन मौन अब, मनमोहन से डील 

मनमोहन से डील, पैर में चोट लगाईं 
स्वयं कुल्हाड़ी मार, मौन हो जाता भाई 

लगा गया आरोप, विपक्षी को दे गाली 
खुद की गलती तोप, बजाये सी एम् ताली


सकते में हैं आमजन, सुनकर नई दलील 
दंगे से नंगे हुवे, आई एम् बके शकील 

आई एम् बके शकील,  कील आखिरी लगाईं 
गया गो-धरा भूल,  भूल जाता अधमाई

 दंगों का इतिहास, कहीं पूरा जो बकते 
 लगा विकट आरॊप,  भला फिर कैसे सकते


छोरा छलता छागिका, छद्म-रूप छलछंद |
नाबालिग *नाभील रति, जुवेनियल पाबन्द |

जुवेनियल पाबन्द, महीने चन्द बिता के |
दुर्मर-दामिनि देह, दुधमुहाँ-दानव ताके-

दीदी दादी बोल, भूज छाती पर होरा |
पा कानूनी झोल, छलेगा पुन: छिछोरा ||
*स्त्रियों के कमर के नीचे का भाग

Tuesday 23 July 2013

रहे सुशासन मौन अब, मनमोहन से डील

तालीमी हालात हों, या हो मिड डे मील 
रहे सुशासन मौन अब, मनमोहन से डील 

मनमोहन से डील, पैर में चोट लगाईं 
स्वयं कुल्हाड़ी मार, मौन हो जाता भाई 

लगा गया आरोप, विपक्षी को दे गाली 
खुद की गलती तोप, बजाये सी एम् ताली

Monday 22 July 2013

गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद-

नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |

गौशाला में लीद,  ईद इनके घर होती -
इत बारिस घनघोर, गाँव के गाँव डुबोती |

चल खा मिड-डे मील, वक्त का यही तकाजा |
बुला आदमी चार, यार का उठे जनाजा ||

Sunday 21 July 2013

करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में-



अंक-28
राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो,  मानव से यह ग्लोब ।
लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब । 


रोज जमाना रोब, नाश कर रहा जयातुर ।
इने गिने कुछ लोग, बचाने को पर आतुर ।


रविकर लेता थाम, धरित्री इसी हेतु से ।
तू भी हाथ बढ़ाय, बचा ले राहु केतु से ॥
* चंद्रमा , कपूर

बने बीज से वृक्ष कुल, माटी विविध प्रकार ।
माटी पर डाले असर, खनिज-लवण जल-धार ।  

खनिज-लवण जल-धार, मेघ यह जल बरसाता । 
मेघ उड़ा दे वायु, वायु का ऋतु से नाता । 

ऋतु पर सूर्य प्रभाव, बचा ले आज छीज से । 
मनुज कहाँ है अलग, धरा से विविध बीज से ॥ 



कन्दुक पर दो दल भिड़े, करते सतत प्रहार। 
सौ मुख वाला  कालिया ,  जमा सूर्यजा धार । 

जमा सूर्यजा धार, पड़े जो उसके पाले । 
फिर कर के अधिकार, लगा के रक्खे ताले । 

रविकर करे पुकार, परिस्थिति बेहद नाजुक ।
लोक-लाज हित कृष्ण, लोक ले लौकिक-कन्दुक ॥


लेती गोबर्धन उठा, कनगुरिया -गोपेश।
अहंकार तब इंद्र का, कर देती नि:शेष । 

कर देती नि:शेष, मगर कलयुग में कृष्णा । 
आयें क्या इस देश, मिटाने को वह तृष्णा । 

कलयुग संघे शक्ति, सीख हर विपदा देती । 
इसीलिए तो थाम,  हथेली पूरा लेती ।

 हौले हौले लोकते, लाजवंत भू-लोक |
परलोकी अवलोक के, करते लौकिक शोक |

करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में |
शोषण भोग विलास, ज्ञान के छद्म आड़ में | 

बाहुबली दुष्कर्म, दिखा चालाकी-डौले |
कर शोषण अविराम, मिटे पर हौले हौले- ,

Wednesday 17 July 2013

सेतु कुम्भ केदार, मिटाने का दे ठीका-

  एक महीना- त्रासदी उपरान्त !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"  

लगता है इक पार्टी, मिटा राष्ट्र-आदर्श |
श्रद्धा-चिन्हों को हटा, करे आत्म-उत्कर्ष |

करे आत्म-उत्कर्ष, योजनाबद्ध तरीका |
सेतु कुम्भ केदार, मिटाने का दे ठीका |

धर्मावलम्बी मूर्ख, नहीं फिर भी है जगता |
सत्ता इनको सौंप, चैन से सोने लगता ||

क्या से क्या हो गया !

पी.सी.गोदियाल "परचेत"
पहले तो थे घेरते, आज लुटेरे टेर |
एक बेर थे लूटते, अब लूंटे हर बेर ||
 


Sunday 14 July 2013

पर परिवर्तन नहीं सुहाए-

नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क ।
सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-
आम जिंदगी नर्क बनाए  ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

रोटी थाली की छीने, चाहे रोजी जाय ।
छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला ना मन भाय -
फिर भी फिर सरकार बनाये ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥  

चला रसातल रूपिया, डालर रहा  डकार ।
बनता युवा अधेड़ सा, बहुरुपिया सरकार-
घूमे दाढ़ी बाल रंगाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 

आय आपदा हादसा, दशा सुधर नहिं पाय ।
बाढ़े मौका पाय के, अफसर नेता आय -
सड़ी लाश का कफ़न नुचाये-
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥

चंगुल में जिनके फंसा, वह बिरयानी खाय ।
उसको खाता देख कर, पब्लिक ये पगुराय-
सोच वहीँ गिरवी धर आये ।
पर  परिवर्तन नहीं सुहाए ॥ 
  

Tuesday 9 July 2013

तनिक सियासत से भी डरिए -

एस पी को देता उड़ा, किन्तु खून नहिं खौल
शासन शव-आसन करे, रहा असलहा तौल । । 
नक्सल को अब कहाँ पकड़िए । 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।। 

हो जाए कुदरत खफा, मारे बीस हजार । 
राहत की चाहत लिए, हो भवसागर पार । 
लाश पास में रखकर सडिये। 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।

मंदिर में विस्फोट हो, करते बंद प्रदेश । 
लेना देना कुछ नहीं,  दे जनता को क्लेश ॥ 
ऐसे मरिये वैसे मरिये । 
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।

बच्ची चच्ची दादियाँ, झेले हत्या रेप । 
नामर्दों की हरकतें, गया मर्द जब खेप ॥
धरना धरा प्रदर्शन करिए
 तनिक सियासत से भी डरिए ।।


Friday 5 July 2013

पाका घौता आम का, झारखंड बागान -

पाका घौता आम का, झारखंड बागान |
अपनी ढपली पर फ़िदा, रंजिश राग भुलान |

रंजिश राग भुलान, भला हेमंत भीग ले  |
दिल्ली तलक अजान, साथ में कई लीग ले |

बंटवारे की बेर, नक्सली करें धमाका |
हो जाए अंधेर, आम पाका तो पाका ||

 

Tuesday 2 July 2013

उत्थानों की बात, करोगे कब रे थानों-

थानों में हैं मुर्गियां, हवालात में लात |
हवा लात खा पी करें, अण्डों की बरसात |

अण्डों की बरसात, नहीं तो डंडे बरसें |
बरसों से यह खेल, झेलती पब्लिक डरसे |

भोगे नक्सलवाद, देश मानों ना मानो |
उत्थानों की बात, करोगे कब रे थानों ||

Monday 1 July 2013

विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला-

थोथी-थूल दलील दे, भाँजे लापरवाह |
लीला लाखों जिंदगी, कातिल है नरनाह |

कातिल है नरनाह, दिखाए दुर्गति-लीला |
विपत-प्रबंधन ढील, बहे घर-ग्राम-कबीला |

धरे हाथ पर हाथ, मजे में बाँचे पोथी |
छी छी सत्ता स्वार्थ, थुड़ी थू थोथा-थोथी ||