Saturday, 28 June 2014

सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई-

पुरानी रचना 
पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई |
थाम नाव पतवार,  जमा कर पाई पाई  ||

लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर,  दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता । 
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने । 
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥ 



Thursday, 26 June 2014

बैठा जाये दिल मुआ, कैसे बैठा जाय-

बैठा जाये दिल मुआ, कैसे बैठा जाय |
उठो चलो आगे बढ़ो, अब आलस ना भाय |

अब आलस ना भाय, अगर सुरसा मुँह बाई |
झट राई बन जाय, ताक मत राह पराई |

उद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
धरे हाथ पर हाथ, नहीं अब बैठा जाये ||

Saturday, 7 June 2014

कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये--

थाने में उत्कोच दे, कोंच कोंच करवाल । 
तन मन नोंच खरोच के, दे दरिया में डाल । 

दे दरिया में डाल, बड़े अच्छे दिन आये । 
कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये। 

रवि कर मत संकोच, पड़े सैकड़ों बहाने । 
व्यस्त आज-कल कृष्ण, नहीं कालिया नथाने ॥