पुत्र-जन्म देकर जगत, उऋण पितृ से होय ।
पुन्वंशा कैसे भला, माँ का कर्ज बिलोय ।
माँ का कर्ज बिलोय, जन्म पुत्रों को देती ।
रहती उनमें खोय, नहीं सृष्टी सुध लेती ।
सदा क्षम्य गुण-सूत्र, मगर कन्या न मारो ।
हुए पिता से उऋण, कर्ज चुपचाप उतारो ।।
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