Monday 22 July 2013

गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद-

नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |

गौशाला में लीद,  ईद इनके घर होती -
इत बारिस घनघोर, गाँव के गाँव डुबोती |

चल खा मिड-डे मील, वक्त का यही तकाजा |
बुला आदमी चार, यार का उठे जनाजा ||

9 comments:

  1. नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
    गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |

    Wah-wah-wah-wah.....Bahut badhiya Ravikar ji !

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  2. और उम्मीद भी क्या हो सकती है इस तंत्र से ...

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  3. सही कहा है आदरणीय !!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  5. घुड़साल में करते गोबर और गौशाला में लीद ,,

    नित होती रहती इनकी भी खूब मट्टी पलीद .

    ॐ शान्ति

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  6. सुन्दर प्रस्तुति ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. होगी भैया १४ में मिटटी खूब पलीद .

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  8. नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद ?
    शुरुआत ही भ्रष्ट है !

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