नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
गोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
गौशाला में लीद, ईद इनके घर होती -
इत बारिस घनघोर, गाँव के गाँव डुबोती |
चल खा मिड-डे मील, वक्त का यही तकाजा |
बुला आदमी चार, यार का उठे जनाजा ||
नाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद |
ReplyDeleteगोबर है घुडसाल में, गौशाला में लीद |
Wah-wah-wah-wah.....Bahut badhiya Ravikar ji !
ReplyDeleteापने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें...इस लिये आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 26-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...
और उम्मीद भी क्या हो सकती है इस तंत्र से ...
ReplyDeleteसही कहा है आदरणीय !!
ReplyDeleteकटु सत्य..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
घुड़साल में करते गोबर और गौशाला में लीद ,,
ReplyDeleteनित होती रहती इनकी भी खूब मट्टी पलीद .
ॐ शान्ति
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
होगी भैया १४ में मिटटी खूब पलीद .
ReplyDeleteनाजायज सरकार से, क्या जायज उम्मीद ?
ReplyDeleteशुरुआत ही भ्रष्ट है !