Friday 25 August 2017

मुक्तक


निज काम से थकते हुए देखे कहाँ कब आदमी।
केवल पराये काम से थकते यहाँ सब आदमी।
पर फिक्र धोखा झूठ ने ऐसा हिलाया अनवरत्
रविकर बिना कुछ काम के थकता दिखे अब आदमी।।

Tuesday 22 August 2017

कहीं कुछ रह तो नहीं गया।।

मैया कार्यालय चली, सुत आया के पास।
पर्स घड़ी चाभी उठा, प्रश्न पूछती खास।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।
हाय रे मर ही गयी मया।।

अभी हुई बिटिया विदा, खत्म हुआ जब जश्न।
उठा लिया सामान सब, बुआ पूछती प्रश्न।।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।
घोंसला खाली उड़ी बया।।

पोती हुई विदेश में, वीजा हुआ समाप्त।
बाबा की घर वापसी, करे पुत्र दरयाफ्त।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।
पिता पर आई नहीं दया।।

चिता पिता की जल गयी, पुत्र मुड़ाया बाल।
लौट रहे जब घाट से, करता दोस्त सवाल।।
छोड़ कर लज्जा शर्म हया।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया।।