Friday, 29 July 2011

दर्द की तुकबंदी

लीजिये भुगत |
कीजिये जुगत ||
हो गया इश्क
बेहूदी   लत |

याद  आये
तेरी सोहबत  ||
फिर तडपाये
होती  दुर्गत |

टपकी बूंद -
मानसूनी छत ||
जल में मछली 
तडपत-तडपत ||

चढ़कर बोली 
मस्तक मस्तक |
बिना बुलाये 
आई आफत |


मीठा लड्डू
कडुवी नेमत |

धत तेरे की
अपनी किस्मत ||

बुरी बला ये
शोखी-हरकत |
फिर न होवे
जालिम गफलत ||

 

15 comments:

  1. बाजिब जनाब |

    ReplyDelete
  2. दर्द कि भी तुकबंदी ..बढ़िया है

    ReplyDelete
  3. दमदार है, पढ़ने में अच्छी लगीं।

    ReplyDelete
  4. च्छी सीख , सर उठाने लायक भी न रहें !बधाई

    ReplyDelete
  5. मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का ,
    उसी को देख के जीतें हैं जिस काफिर पे डीएम निकले .

    ReplyDelete
  6. वाह!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    पूरे 36 घंटे बाद नेट पर आया हूँ!
    धीरे-धीरे सबके यहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ!

    ReplyDelete
  7. बुरी बला ये
    शोखी-हरकत |
    फिर न होवे
    जालिम गफलत ||
    वाह, गागर में सागर।

    ReplyDelete
  8. वाह !!अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  10. वाह वाह, अपने दर्द को यूं हंसी में टालना हर किसी के बस की बात नही ।

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ....दर्द का हद से गुजरना है हंसी हो जाना...सादर !!!

    ReplyDelete

  12. दिनांक 06/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!


    “दर्द की तुकबंदी...हलचल का रविवार विशेषांक....रचनाकार...रविकर जी”

    ReplyDelete
  13. वाह,क्या खूब..आप ने दर्द की ईंटो से भी साठ - गाठ कर"बेहतरीन तुकबंदी" कर दिया ,"याद आये
    तेरी सोहबत ||
    फिर तडपाये
    होती दुर्गत |......."

    ReplyDelete