Friday 31 August 2012

बेटे को पढ़ने दो -

* घट रही है रोटियां घटती रहें---गेहूं  को सड़ने  दो |
* बँट रही हैं बोटियाँ बटती रहें--लोभी को लड़ने  दो |


* गल  रही हैं चोटियाँ गलती रहें---आरोही चढ़ने दो | 
* मिट  रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |

* घुट रही है बच्चियां घुटती रहें-- बर्तन को मलने दो ||

* लग रही हैं बंदिशें लगती रहें--- दौलत को बढ़ने दो |
 
* पिट रही हैं गोटियाँ पिटती रहें---रानी को चलने दो | 
* मिट रही हैं हसरतें मिटती रहें--जीवन को मरने दो ||

Wednesday 29 August 2012

सपना मिडिल क्लास, देखता कैसे कैसे-

इ'स्टेटस सिम्बल बना, नवधनाढ्य का एक । 
मस्त दुकानें चल रहीं, बाबा बैठ अनेक । 



बाबा बैठ अनेक, दलाली करते आधे ।
फँसते ग्राहक नए, सभी को बाबा साधे ।

सपना मिडिल क्लास, देखता कैसे कैसे  ।
चाहे बने अमीर, लुटा दे जेवर-पैसे ।। 

Tuesday 28 August 2012

व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय

पंजाब एवं  बंग आगे,  कट चुके हैं  अंग आगे|
लड़े  बहुतै  जंग  आगे,  और  होंगे  तंग  आगे|
हर गली तो बंद आगे, बोलिए, है क्या उपाय ??
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सर्दियाँ ढलती  हुई हैं,  चोटियाँ  गलती हुई हैं |
गर्मियां  बढती हुई हैं,  वादियाँ  जलती हुई हैं |
गोलियां चलती हुई हैं, हर तरफ आतंक छाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

सब दिशाएँ  लड़ रही हैं,   मूर्खताएं  बढ़ रही हैं 
|

नियत नीति को बिगाड़े, भ्रष्टता भी समय ताड़े |
विषमतायें नित उभारे, खेत  को  ही मेड खाए |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

 मंदिरों में मकड़ जाला,  हर पुजारी  चतुर लाला | 
 भक्त की बुद्धि पे ताला,  *गौर  बनता  दान  काला |  *सोना
 जापते  रुद्राक्ष  माला,   बस  पराया  माल  आए--
 व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

हम फिरंगी से  लड़े  थे  , नजरबंदी  से  लड़े   थे |
बालिकाएं मिट रही हैं , गली-घर में  लुट रही हैं  |
होलिका बचकर निकलती, जान से प्रह्लाद जाये --
व्यर्थ हमने सिर कटाए,  बहुत ही अफ़सोस, हाय !

बेबस, गरीबी रो रही है, भूख, प्यासी सो रही है  |
युवा पहले से पढ़ा पर , ज्ञान  माथे  पर चढ़ाकर |   
वर्ग  खुद  आगे  बढ़ा  पर ,  खो चुका संवेदनाएं |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !

है  दोस्तों से यूँ घिरा,   न पा सका उलझा सिरा |
पी रहा वो मस्त मदिरा, यादकर के  सिर-फिरा |
गिर गया कहकर गिरा,   भाड़  में  ये  देश जाए|
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 


त्याग जीवन के सुखों को,  भूल  माता  के  दुखों को |
प्रेम-यौवन से बिमुख हो, मातृभू हो स्वतन्त्र-सुख हो |
क्रान्ति की  लौ  थे  जलाए,  गीत  आजादी  के  गाये |
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय ! 

Friday 24 August 2012

नव-मीडिया : दशा, दिशा एवं दृष्टि -रविकर

(1)
टीका डी एन ए सरिस, गाड-पार्टिकिल चार |
कई सदी से डालता, गहन असर संचार |
गहन असर संचार, सरस मानव का जीवन |
दिन प्रति दिन का सार, तोड़ता जाए बंधन |
नश्वर जीवन आज, लगे इसके बिन  फीका |
जयतु तार बेतार, करे क्या रविकर टीका  ??

(2)
मेनी टू मेनी  हुआ,  नव मीडिया दुरुस्त ।
नैनो सा चंचल चपल, कालजीत सा चुस्त ।
कालजीत सा चुस्त, दशा पौगंड दिखाया ।
गर्भ जन्म फिर बाल्य, सफल कौमार्य बिताया ।
बीत रहा पौगंड, मस्त यौवन की बारी ।
रखे मीडिया होश, छाय ना जाय खुमारी ।।

 (3)
दसों दिशा में छा रहा, अविरल सरस प्रवाह ।
सकल घटक अनुभव करें, जब अदम्य उत्साह ।
जब अदम्य उत्साह, राह में रहजन लूटे ।
फैलाए अफवाह, पलायन धंधा छूटे ।
सरल करे संचार, हमेशा मानव जीवन ।
दुरुपयोग कर दुष्ट, मान का करते मर्दन ।।

 (4)
दिव्य दृष्टि मीडिया नव, दर्शन कक्षा श्रेष्ठ ।
शुद्ध चित्त से आकलन, प्रस्तुत विवरण ठेठ ।
प्रस्तुत विवरण ठेठ, मिलावट नहीं करे है ।
*जैसी चादर दीन्ह, उतारे शुद्ध धरे है ।
निरहू-घिरहू फिल्म, खेल सत्ता संसाधन ।
शिक्षा सेहत ढोंग, आपदा दंगा चिंतन ।।

Thursday 23 August 2012

खुदा कुआं प्राचीन, आज खोदे हम खाईं-

हवा हवाई हो गई, शुद्ध हवा की बात |
कुदरत नित दिखला रही, मानव को औकात |

मानव को औकात, ताक में मानव रहता |
भोगवाद से ग्रस्त, रहे हर समय बहकता |

खुदा कुआं प्राचीन, आज खोदे हम खाईं |
हुआ खुदा नाराज, हवा भी हवा हवाई ||

Tuesday 21 August 2012

भ्रूणध्नी माता-पिता, देते मुझको फेंक -

जीवमातृका  वन्दना, माता  के  सम पाल |
करे जीवमंदिर सुगढ़, पोसे सदा संभाल ||
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/61/Stone_sculpt_NMND_-20.JPG 
शिव और जीवमातृका

धनदा  नन्दा   मंगला,   मातु   कुमारी  रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
https://lh3.googleusercontent.com/-ks78KCkMJR4/Tj_QMkR5FTI/AAAAAAAAAPI/PFy_h6xRHYY/bhrun-hatya_417408824.jpg 
भ्रूण-हत्या
कोई तो रक्षा करो, माताओं से  एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता,  देते मुझको फेंक ||
http://aditikailash.jagranjunction.com/files/2010/06/bhrun-hatya.jpg 
भ्रूण-हत्या 
कुन्ती   तारा   द्रौपदी,  लेशमात्र   न   रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पन्च |
http://www.barodaart.com/Oleographs%20Mythology/PanchKanya-M(1).jpg 
पन्च-कन्या
सातों  माता  भी  नहीं, बचा  सकी  गर  पाँच |
रविकर  महिमा  पर  पड़े,  दैया  दुर्धर्ष  आँच |

Sunday 19 August 2012

दोनों रोकें गोल, खेल फिर कौन जिताई-

भरत क्षेत्री गोलकी, गीता गोली व्याह  ।
हाकी के महिला पुरुष, पकडे सीधी राह ।

पकडे सीधी राह , बधाई मंगल मंगल ।
गोल पोस्ट पर वाह, दिखाया जलवा-दंगल ।

दोनों हैं अति श्रेष्ठ, बताना लेकिन भाई ।
दोनों रोकें गोल, खेल फिर कौन जिताई ।।  

 
Image of Hermann tortoise for sale

कच्छप छप छप छोड़ के, करे हवा से बात ।
विगत शत्रु खरगोश को, दे दे फिर से मात ।

दे दे फिर से मात,  शीश पर कवच लगाए ।
 हाथ पैर धड देख, धड़ा धड़  दौड़ा जाये  ।

चार गियर का त्वरण,  आज रण-विजय करे है ।
ख़तम होय जो दौड़, कवच को बगल धरे है ।।

File:MotoX Helmet.jpg

Saturday 18 August 2012

ईद मुबारक बंधुवर, होवे दुआ क़ुबूल


 ईद मुबारक बंधुवर, होवे दुआ क़ुबूल ।
प्यारे हिन्दुस्तान में, बैठे उडती धूल ।
बैठे उडती धूल, आंधियां अब थम जावें ।
द्वेष ईर्ष्या भूल, लोग न भगें-भगावें ।
 झंझट होवे ख़त्म, ख़तम हों  टंटा -कारक  ।
 दुनिया के सब जीव, सभी को ईद मुबारक ।

महिमा गायें पंथ सब, सभी सिखाते दान |
बांटो अपना खास कुछ, करो जगत उत्थान |
करो जगत उत्थान, फर्ज है समझदार का  |
मानवता का कर्ज, उतारो हर प्रकार का |
जो निर्बल मोहताज, करे कुछ गहमी गहमा |
होय मुबारक ईद, दान की हरदम महिमा ||
 

Friday 17 August 2012

दिखा राष्ट्रपति भवन में, इसी मर्तबा भेंग-

रहे भाजपा रंज में, अडवानी को ठेंग ।
दिखा राष्ट्रपति भवन में, इसी मर्तबा भेंग ।

इसी मर्तबा भेंग, घटा हामिद के घर भी ।
रहे सब जगह रेंग, विपक्षी सारे सर भी ।

बैठे पहली पंक्ति, जिताया जिन लोगों ने ।
हाय स्वतंत्रता पर्व, मनाया कुल ढोंगो ने  ।।

Thursday 16 August 2012

ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच -

(1)
 ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच |
"भला बुरा" बक्के बिना, हजम न होता लंच |

हजम न होता लंच, टंच गर होगी रचना |

है मिथ्या आरोप, चाहिए इससे बचना |

सुन्दर सत्यम-शिवम् , बतंगड़ बातें बनती |
होय घात-प्रतिघात, भृकुटियाँ खिंचती तनती || 


(2)
हैं सुशील कितने विनम्र, शील नाम अनुरूप ।
लेकिन जोशी पर पड़ी, रविकर भीषण धूप ।

रविकर भीषण धूप, छुपा उल्लूक अँधेरे ।
रहा नाग फुफकार, शिवम् का नंदी घेरे ।

अक्खडपन महराज, शब्द पर क्यूँ न भड़के ।
क्या प्रोफ़ेसर साब, क्लास लेनी थी तड़के ।। 
(3)
चर्चा का क्या अर्थ है, केवल टिप टिप टीप |
लिखना सचमुच व्यर्थ क्या, बुझता ज्ञान प्रदीप |


बुझता ज्ञान प्रदीप, सार्थक चर्चा समझो |
किया कराया लीप, व्यर्थ सज्जन से उलझो |


चर्चा करें सटीक, धीर जोशी जी आमिर |
वीरू भाई अरुण, कई पाठक है माहिर ||

सन्दर्भ : स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें चर्चा मंच 972

चर्चाकार : रविकर फैजाबादी 










  1. समझ नहीं आता आप लोग यह क्या खेल चला रहे है ... जिस ब्लॉग के बारे मे आपकी यह टिप है क्या वहाँ तक आप गए या वहाँ आपने यह टिप दी ... मुझे और मेरे ब्लॉग को इस खेल से दूर रखें ... सादर !
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  2. शिवम जी क्षमा करेंगे नाराज ना होयेंगे
    सभी ब्लाग पर जाने की कोषिश होती है
    जाकर देखेंगे तो वहां पर टिप्पणी भी होती है
    कभी कभी लिंक जब नहीं खुल पाता है
    तो टिप्पणी बस यही पर ही होती है
    गुस्सा मत करिये वैसे देखियेगा मैं हमेशा
    जब भी यहाँ टिप्पणी करता हूँ वो
    आपको अपने ब्लाग पर भी मिलेगी ।
    Delete
  3. आप रहने दीजिये महाराज ... कोई सफाई नहीं चाहिए मुझे यह पहली बार नहीं हुआ है आपसे ... यह जो परंपरा आप लोग डाल रहे है ... वो सार्थक ब्लोगिंग नहीं है ... मेरी समझ मे यह नहीं आता शास्त्री जी जैसे सीनियर ब्लोगर कैसे यह होने दे रहे है ! तब से उनको फोन लगा रहा हूँ पर फोन भी नहीं उठा ... 27 को लखनऊ मे ही बात करूंगा उनसे इस बारे मे !
    Delete
  4. चर्चामंच के चर्चाकारों से निवेदन है कि अगर टिप्पणी करने से ब्लागिंग का इतना नुकसान हो रहा है तो बता दें हम टिप्पणी करना बंद कर दें ।


    शिवम् मिश्राAugust 15, 2012 1:19 PM

    आप रहने दीजिये महाराज ... कोई सफाई नहीं चाहिए मुझे यह पहली बार नहीं हुआ है आपसे ... यह जो परंपरा आप लोग डाल रहे है ... वो सार्थक ब्लोगिंग नहीं है ... मेरी समझ मे यह नहीं आता शास्त्री जी जैसे सीनियर ब्लोगर कैसे यह होने दे रहे है ! तब से उनको फोन लगा रहा हूँ पर फोन भी नहीं उठा ... 27 को लखनऊ मे ही बात करूंगा उनसे इस बारे मे ! मेरे विरोध करते ही सब लिंक खुलने लगे ... वाह !
    Delete
  5. बात को गलत तरीके से पेश करने की बेकार कोशिश न करें ...
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  6. शिवम जी मैं इतनी मेहनत करता हूँ । समय देता हूँ । सारे ब्लागस पर जाता हूँ । आपके ब्लाग पर भी आया करता हूँ । आपको मेरी टिप्पणियां वहां मिलेंगी । पर ये सब में इसलिये नहीं करता कि आपके मन में जो आये इलजाम आप लगा लें । आज भी रविकर जी ने आप्की पोस्ट का लगभग आधा भाग ऊपर दिया हुआ है जिसे पढ़कर इतना तो कहा जा सकता है कि अच्छी पोस्ट है ? बाकी आपकी क्या मंसा है वो आप जाने पर मैं यहाँ आज ही नहीं आ रहा हूँ । हाँ आपकी तरह का महान ब्लागर में नहीं हूँ ।
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मेरी पोस्ट को आपने यहाँ लिंक किया उसके लिए आभार पर माफ कीजिएगा ... दुख होता है यह देख कर जिस चर्चा मंच को देख कभी खुद भी चर्चा करने की सोचा करता था आज उसका यह हाल है !

आपके इस टिप्पणी के खेल के कारण कहीं न कहीं आप बाकी ब्लोगस से उनके पाठक छिन रहे है ! शास्त्री जी से अनुरोध है इस बारे मे कुछ कीजिये ... टिप्पणी करने वाला केवल आपके पोस्ट पर किसी ब्लॉग लिंक मे बारे मे अपनी राय दे कर चला जाये तो क्या इस से चर्चा सार्थक होगी ... ज़रा सोचिएगा !
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Replies












  1. जी सहमत हूँ आपसे-
    सचमुच बुरा हाल है-
    आइये ने चर्चाकार की हैसियत से हमारे साथ-
    आपका स्वागत है-
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  2. बुरा भला सब कुछ सुनें, आँगन कुटी छवाय |
    पाठक गण के ध्यान में, जाती गलती आय |
    जाती गलती आय, ब्लॉग पर भी जाना है |
    पाठक उनके छीन, छान कर न लाना है |
    गुस्सा दीजै थूक, चूक अक्सर हो जाती |
    होगा वही सलूक, रूल बुक रही बताती ||
    Delete
  3. रूल बुक जो समझाती ||
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Wednesday 15 August 2012

जन्संदेश टाइम्स में संतोष त्रिवेदी और रविकर

रविकर 
आई  स्विटजरलैंड से, नई  नवेली आस ।
ब्लैक मनी  के लिए यह, मैया बेहद ख़ास  ।
मैया बेहद ख़ास ,  रास बबलू को आये ।
कर लो गूढ़ सलाह, माल जैसे मन खाए ।
सेफ डिपोजिट बॉक्स मिलेगा सबको भाई ।
काले धन से लाल, खबर क्या बढ़िया आई ।।

देश के नाम सालाना संबोधन !

संतोष त्रिवेदी 
प्यारे देशवासियों !
हम आपसे पैंसठवीं बार मिलकर महान आनंद का अनुभव कर रहे हैं.पिछले कई सालों से जारी भारी  दुष्प्रचार के बावजूद हमने अपने देश की अखंडता,एकता और धर्मनिरपेक्षता की पूरी मजबूती के साथ रक्षा की है.जब देश आजाद हुआ था,हमने गाँधीजी के नेतृत्व में एक संकल्प लिया था कि भारत को उसके सुनहरे दिन लौटायेंगे,अपनी सारी योजनाएं आखिरी आदमी तक पहुँचायेंगे और यकीन मानिये हमने इस कार्य में उल्लेखनीय प्रगति की है.अपने देश का सारा सोना हमारे सुरक्षित हाथों में है,जो छुट्टा और बड़ी मात्रा में धनराशि है,उसे सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद गोपनीय स्विस बैंकों में रखवा दिया गया है.आम जनता के पैसे को भी हमने गलत हाथों में जाने से रोकने के लिए बाबुओं,सिपाहियों और अधिकारियों का त्रि-स्तरीय सञ्चालन-तंत्र तैयार कर दिया है,जिनसे बचकर और छनकर कोई भी रकम इधर-उधर नहीं जा सकती है.
ऐसा नहीं है कि हमने केवल आर्थिक-स्तर पर ही ऐसे क्रांतिकारी सुधार किये हों ! देश के किसानों के लिए हमने एक बलिदानी-जत्था तैयार किया है जो समय पड़ने पर आत्माहुति देने से पीछे नहीं हटते हैं.हमारे सैनिक हमेशा सीमाओं पर दनादन गोली खाने को तत्पर रहते हैं.उनके रहते,आपके धन की सुरक्षा करने में हमसे कोई कोताही नहीं हो सकती.हम देश की पुरानी परम्पराओं के भी ज़बरदस्त पोषक हैं और इसके लिए ‘अतिथि देवो भव’ का मान रखते हुए देश के दुश्मनों को बिरयानी खिलाने का पुरजोर इंतजाम किया गया है,भले ही इस पुण्य-कार्य में हमारा आखिरी आदमी भूख से शहीद हो जाय.हम अगली योजना से ऐसे शहीद को ‘भारत-रत्न’ का ख़िताब देने की सोच रहे हैं.इससे गाँधीजी का वह सपना भी पूरा हो सकेगा ,जिसमें उन्होंने ‘इस’ आदमी की खबर लेने की बात की थी.
हमने देश के लोगों को उनके मौलिक अधिकार देने के लिए भी ठोस कदम उठाये हैं.उन्हें किसी भी आन्दोलन में झंडे ले जाने और फहराने की पूरी स्वतंत्रता दी है,पर इसमें एहतियात बरतते हुए इसका डंडा अपने पास रखा है.झंडा कोई भी और कहीं भी फहरा ले पर डंडा हमारा ही रहेगा.हम देश की चाबी को असुरक्षित हाथों में नहीं जाने देंगे,यह हम आपको विश्वास दिलाते हैं.अगर झंडे के साथ डंडा भी दूसरे के हाथ में चला गया तो देश में अराजक स्थिति फ़ैल जायेगी.डंडे के इतने ज़्यादा वारिस पैदा करने की फ़िलहाल कोई योजना नहीं है.गाँधीजी ने आज़ादी के वक्त जिसके हाथ में डंडा पकड़ाया था,वह वहीँ रहेगा और वहीँ से उठेगा.
हम जनता के बहुत आभारी हैं,जिसने हमें बराबर सम्मान और विश्वास दिया है.इसके बने रहने के लिए भी हमने युद्ध-स्तर पर कार्रवाई शुरू कर दी है.लोगों को जाति और धर्म की टॉनिक का नियमित रूप से सेवन करवाया जा रहा है.इनके सेवन से भूख-प्यास और काम की माँग को नियंत्रित करने में बहुत मदद मिलती है.इसके प्रभाव से लोग मजे-मजे में मर लेते हैं और हमें देश को मज़बूत करने का मौक़ा मिल जाता है.
आप सब की खुशहाली को देखकर हम बिलकुल निश्चिन्त हैं.हमारे देश में भ्रष्टाचार से लोग दुखी हैं,यह कोरी अफवाह है,इससे यह सिद्ध हो गया है.हमको तो लगता है कि कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि भारत प्रगति के रास्ते पर बढ़े,पर हमें आप पर पूरा भरोसा है कि आप हमारे साथ हैं और ऐसे ही अपना स्नेह बनाये रखेंगे !
जयहिन्द !
 

Tuesday 14 August 2012

परम मित्र दिनेश रविकर के जन्म-दिन पर -

 आभार-मित्रों : रविकर 
 ओ बी ओ आभार है, मित्रों बारम्बार |
मिला आपका प्यार शुभ, बहुत बहुत आभार |
बहुत बहुत आभार, द्वार पर मेरे आये |
है जीवन का सार, मित्र सब सही बनाए |
हमें आप पर गर्व, आप की कीर्ति-पताके |
लहर लहर लहराय, पुत्र हे धरती माँ के |
 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
प्रतापगढ़ , अवध उ.प्रदेश

ने लिखा
मेरी भी शुभ कामना उड़े पंख फैलाये
भारत भूमि से सूरज तक
'रविकर' दिनकर रौशनी लुटाये
दोहे -कविता -छंद   मनोहर
प्राण भरे  जन गण के मन में
पापी भ्रष्टाचारी के मन
शूल चुभें जीवन हर क्षण में
सदा पडोसी रहें हमारे
फ़ैजाबाद अवध 'वेला' में
हो सुगंध ब्लागिंग भी चमके
'भ्रमर' मिलें नित नूतन रस ले
बगिया हरी भरी हो महके
परम मित्र दिनेश रविकर के जन्म-दिन पर ......
 अरुण कुमार निगम ने लिखा 
" बधाई – कुण्डलिया "
ओ.बी.ओ.  के फलक पर ,  देखा  है संदेश
मना रहे हैं जन्म-दिन,  गुप्ता चंद्र दिनेश
गुप्ता  चंद्र  दिनेश,  कहे जाते हैं रविकर
वर्तमान  धनबाद,  फैजाबाद के कविवर
स्वस्थ-सफल हों आप,रहें हम सबके होके
अरुण बधाई देत ,मंच से ओ. बी. ओ. के ||

संतोष त्रिवेदी 
 baiswari@gmail.com

रविकर खुश है आज, देश आजाद हुआ है.
झूम उठे सब साज,जनम भी साथ हुआ है.
हुआ जनम है साथ,लिखे बेफिकरा होकर.
संग देश के रहे,मस्तमौला यह रविकर.



जन्म-दिवस की कोटिश: ,आज बधाई मित्र
मौसम उल्लासित हुआ ,दिन भी बड़ा पवित्र
दिन भी बड़ा पवित्र , मिठाई बनती कविवर
कम से कम इक चाय पिला दें भ्राता-रविकर
मिले आपको हसीं , जिंदगी लाख बरस की
आज बधाई मित्र, कोटिश: जन्म-दिवस की ||


रविकर की मिठाई  
प्रोफाइल को ठीक से, देखो प्यारे मित्र |
नीचे मिष्टी है रखी, ऊपर मेरा चित्र |
ऊपर मेरा चित्र, बनाने की विधि सारी |
छपी वहां क्रमवार, करूँ जैसी तैयारी |
आओ खा लो आज, मगर न करो बहाना |
दो के बदले चार, गिफ्ट पर बढ़िया लाना ||

About Me

My Photo
वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ| 
समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ|| 
चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ | 
गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ ||

आज हैदराबाद में, फहरा झंडा पाक-

(1)
जंगल में जनतंत्र हो, जमा जानवर ढेर |
करे खिलाफत कोसते, हाय हाय रे शेर |


हाय हाय रे शेर, कान पर जूं न रेंगा |
हरदिन शाम सवेर, लगे आजादी देगा |


छोडो भाषण मीठ, करो मिल दंगा - दंगल |
शासक लुच्चा ढीठ, बचाओ रविकर जंगल ||

(2)

आज हैदराबाद में, फहरा झंडा पाक |
इससे पहले मुंबई, कैसे हुई हलाक | 

कैसे हुई हलाक, इरादे बेहद कातिल |
कर बदतर हालात, मरोगे खुद ही जाहिल |

रविकर का अंदाज, नहीं तुझको अंदाजा |
निकले न आवाज, बन्द हो गर दरवाजा ||

Monday 13 August 2012

कांडा कांदा परत दर परत, छील-छाल कर रहा चाबता-

नई रीति से प्रीति गीतिका, दादी अम्मा गौर कीजिये |
संसर्गों की होती आदी, याद पुराना दौर कीजिये |

आँखों को पढना न जाने, पढ़ी लिखी अब की महिलाएं -
वर्षों मौन यौन शोषण हो, किन्तु भरोसा और कीजिये |।

कांडा कांदा परत दर परत, छील-छाल कर रहा चाबता-
देह-यष्टि पर गिद्ध-दृष्टि है, हाथ मांसल कौर दीजिये |।

अधमी उधमी चामचोर को, देंह सौंपते नहीं विचारा-
दो पैसे घर वाले पाते, जालिम को सिरमौर कीजिये ।।


मीठी मीठी बातें करके, मात-पिता भाई बहलाए -
अनदेखी करते अभिभावक, क्यूँकर घर में ठौर दीजिये ??

व्यवसायिक सम्बंधो में कब, कोमल भाव जगह पा जाते -
स्वामी स्वामी बना सकामा, क्यूँ मस्तक पर खौर दीजिये ??

बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को-

चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच |

हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |

कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |

जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |

जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |

Friday 10 August 2012

बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को-

 File:Bulbul 2.JPGFile:Brown-eared Bulbul 1.jpg

चुलबुल बुलबुल ढुलमुला, घुलमिल चीं चीं चोंच |
बाज बाज आवे नहीं, हलकट निश्चर पोच |

हलकट निश्चर पोच, सोच के कहता रविकर |
तन-मन मार खरोंच, नोच कर हालत बदतर |

कर जी का जंजाल, सुधारे कौन बाज को |
बेहतर रखो सँभाल, स्वयं से प्रिये लाज को ||
File:Accipiter gentilis -injured Goshawk.jpg 
File:Nubianvulture.jpeg

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग-

तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |

जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |

जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |

Thursday 9 August 2012

जया सोनिया शक्ल, कांपते सिन्धी-शिंदे-

सिन्धी-शिंदे खा रहे,  निज गृह नित फटकार |
नारी शक्तिकरण में, बिला-वजह की रार |

बिला-वजह की रार, नहीं नाजायज सत्ता |

 बने असम में फिल्म, चले दिल्ली-कलकत्ता |

व्यंग-चिकोटी काट, पुरुष जुल्मी शर्मिन्दे ||

जया सोनिया शक्ल, कांपते सिन्धी-शिंदे |

Sushil Kumar Shinde apologises for 'filmy' dig at Jaya Bachchan in ...

फ़िल्मी दंगे क़त्ल सम, समझ असम का केस |
है सशक्त यह पटकथा, सुन सुशील सन्देश |
सुन सुशील सन्देश, मांगते माफ़ी शिंदे |
सेंसर करता बोर्ड, सीन काटे सब गंदे |
 
 रही खड़ी चुपचाप, मरे शोले में  घर-भर |
अपना रस्ता नाप, अरे फ़िल्मी घन चक्कर || 

समझी झट इस बार, तभी तो फट गुस्साई-



इत्ता गुस्सा बाप रे, अडवानी की भूल |
यू पी ए टू कह गए, दे दी जम के तूल |
दे दी जम के तूल, मीडिया समझ न पाया |
रविकर ने इस बार, उसे ऐसे समझाया |
हिंदी भाषा ज्ञान,  ख़तम की पूर्ण पढ़ाई |
 समझी झट इस बार,  तभी तो फट गुस्साई ||
 

सुन सुशील सन्देश, मांगते माफ़ी शिंदे-

Sushil Kumar Shinde apologises for 'filmy' dig at Jaya Bachchan in ...

फ़िल्मी दंगे क़त्ल सम, समझ असम का केस |
है सशक्त यह पटकथा, सुन सुशील सन्देश |
सुन सुशील सन्देश, मांगते माफ़ी शिंदे |
सेंसर करता बोर्ड, सीन काटे सब गंदे |
 
 रही खड़ी चुपचाप, मरे शोले में  घर-भर |
अपना रस्ता नाप, अरे फ़िल्मी घन चक्कर || 

समझी झट इस बार, तभी तो फट गुस्साई-



इत्ता गुस्सा बाप रे, अडवानी की भूल |
यू पी ए टू कह गए, दे दी जम के तूल |
दे दी जम के तूल, मीडिया समझ न पाया |
रविकर ने इस बार, उसे ऐसे समझाया |
हिंदी भाषा ज्ञान,  ख़तम की पूर्ण पढ़ाई |
 समझी झट इस बार,  तभी तो फट गुस्साई ||

रविकर फैजाबादी
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D.C.Gupta
STA, Department of Electronics Engg.
Indian School of Mines
Dhanbad
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