कुंडलियाँ छंद (5)
बेला वेलंटाइनी, नौ सौ पापड़ बेल ।
वेळी ढूँढी इक बला, बल्ले ठेलम-ठेल ।
बल्ले ठेलम-ठेल, बगीचे दो तन बैठे ।
बजरंगी के नाम, पहरुवे तन-तन ऐंठे।
ढर्रा छींटा-मार, हुवे न कभी दुकेला ।
भंडे खाए खार, भाड़ते प्यारी बेला ।।
रोज रोज के चोचले, रोज दिया उस रोज |
रोमांचित विनिमय बदन, लेकिन बाकी डोज |
लेकिन बाकी डोज, छुई उंगलियां परस्पर |
चाकलेट का स्वाद, तृप्त कर जाता अन्तर |
वायदा कारोबार, करे धन खोज खोज के |
हों आलिंगन बद्ध, बवाली रोज रोज के||
बहा बहाने ले गए, आना जाना तेज |
अश्रु-बहाने लग गए, रविकर रखे सहेज |
रविकर रखे सहेज, निशाने चूक रहे हैं |
धुँध-लाया परिदृश्य, शब्द भी मूक रहे हैं |
बेलेन्टाइन आज, मनाने के क्या माने |
बदले हैं अंदाज, गए वे बहा बहाने ||
फूली फूली घूमती, एक माह से शीत |
फूली सरसों भी तभी, फैली जग में प्रीत |
फैली जग में प्रीत, मधुर रस पीले पीले |
छाई नई उमंग, जिंदगी जी ले जीले |
पीले पीले फूल, तितलियाँ रस्ता भूली |
भौरें मस्त अनंग, तितलियाँ रति सी फूली ||
हर दिन तो अंग्रेजियत, मूक फिल्म अविराम |
देह-यष्टि मकु उपकरण, काम काम से काम |
काम काम से काम, मदन दन दना घूमता |
करता काम तमाम, मूर्त मद चित्र चूमता |
थैंक्स गॉड वन वीक, मौज मारे दिल छिन-छिन |
चाकलेट से रोज, प्रतिज्ञा हग दे हर दिन ||
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-02-2017) को "महामृत्युंजय मंत्र की व्याख्या" (चर्चा अंक-2880) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर।
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Nice post!Thanks for sharing.
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