काव्य पाठ
नमन हे राष्ट्रकवि दिनकर जयतु-जय रामधारी की |
हमेशा सिंह से गरजे, सदा उसकी सवारी की |
रथी बनकर बिखेरी रश्मि दिनकर कर्ण-अर्जुन की
रचे सौ ग्रंथ अलबेले उकेरी खूब बारीकी ||
विदेशी आक्रमणकारी बड़े निष्ठुर बड़े बर्बर |
पराजित शत्रु की जोरू-जमीं-जर छीन लें अकसर |
कराओ सिर कलम अपना, पढ़ो तुम अन्यथा कलमा
जिन्हें थी जिंदगी प्यारी, बदल पुरखे जिए रविकर ||
उमर मत पूछ औरत की, बुरा वह मान जायेगी।
मरद की आय मत पूछो, उसे ना बात भायेगी।
फिदाइन यदि मरे मारे, मियाँ तुम मौन रह जाना।
धरम यदि पूछ बैठे तो, सियासत जान खायेगी।।
मदर सा पाठ लाइफ का पढ़ाता है सिखाता है।
खुदा का नेक बन्दा बन खुशी के गीत गाता है।
रहे वह शान्ति से मिलजुल, करे ईमान की बातें
मगर फिर कौन हूरों का, उसे सपना दिखाता है।।
बड़ी तकलीफ़ से श्रम से, रुपैया हम कमाते हैं ।
उसी धन की हिफाज़त हित बड़ी जहमत उठाते हैं।
कमाई खर्चने में भी, निकलती जान जब रविकर
कहो फिर जिंदगी को क्यों कमाने में खपाते हैं।।
पतन होता रहा फिर भी बहुत पैसा कमाया है ।
किया नित धर्म की निन्दा, तभी लाखों जुटाया है।
सहा अपमान धन खातिर, अहित करता हजारों का
पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है।।
कामादि का बैताल जब शैतान से मिलकर गढ़ा।
तो कर्म के कंधे झुका, वो धर्म के सिर पर चढ़ा।
मुल्ला पुजारी पादरी परियोजना लाकर कई
पूजाघरों से विश्व को वे पाठ फिर देते पढा।
सियासत खेल करती है सिया वनवास जाती है।
परीक्षा नारि ही देती पुरुष को शर्म आती है।
अगर है सुपनखा कोई उसे नकटा बना देते।
सिया एवं सती को फिर सियासत में फँसा देते।।
नहीं पीता कभी पानी, रियाया को पिलाता है।
नकारा चाय भी अफसर, नकारा जान खाता है।
नहीं वह चाय का प्यासा, कभी पानी नहीं मांगे
मगर बिन चाय-पानी के, नहीं फाइल बढ़ाता है।।
चुनावी हो अगर मौसम बड़े वादे किये जाते।
कई पूरे किये जाते कई बिसरा दिए जाते।
किया था भेड़ से वादा मिलेगा मुफ्त में कम्बल
कतर के ऊन भेड़ो का अभी नेता लिये जाते।।
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तुम तो मेरी शक्ति प्रिय, सुनती नारि दबंग।
कमजोरी है कौन फिर, कहकर छेड़ी जंग।।
माथे पर बिन्दी सजा, रही नदी में तैर।
सारे दुष्कर कार्य कर, जमा रही वह पैर।|
मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या आदमी, मारो उसे जरूर ||
रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात |
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||
दल के दलदल में फँसी, मुफ्तखोर जब भेड़ ।
सत्ता कम्बल बाँट दे, उसका ऊन उधेड़ ।।
पैर न ढो सकते बदन, किन्तु न खुद को कोस ।
पैदल तो जाना नहीं, तत्पर पास-पड़ोस ।।
देह जलेगी शर्तिया, लेकर आधा पेड़।
एक पेड़ तो दे लगा, दे आंदोलन छेड़।।
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शहीदों से करे सत्ता हमेशा जब दगाबाजी।
भगत-अशफाक-विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।
दिया सिर व्यर्थ फंदे में, फँसाई व्यर्थ ही गर्दन ।
जवानी व्यर्थ क्यों कर दी, लुटे जब रोज जन गण मन ।
मिली क्या खाक आजादी, मिले दो देश दुनिया को।
कभी कोई कहाँ बाँटा, मगर तुम बाँटते माँ को।
इधर नेहरू उधर जिन्ना, मगर हम हारते बाजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।।
नहीं जन-गण सुरक्षित है गरीबी है अशिक्षा है।
करे क्यों बाल मजदूरी, मँगाये कौन भिक्षा है।
विधानों की उपेक्षा है, उपेक्षा धर्म की होती।
हुए क्यों वृद्ध अपमानित, अभी भी नारि क्यों रोती।
अमीरी मौज करती है, यहाँ सत्ता वहाँ काजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी ।2।।
कृषक की खुदकुशी देखी, नशे में धुत कई पीढ़ी।
विरासत राजनैतिक फिर लगाये पुत्र हित सीढ़ी।
अजब फिरकापरस्ती है, बढ़े बलवे बढ़े दंगे।
बढ़ी है भीड़ हिंसा.भी, हमामों मे सभी नंगे।
घुटाले रेप मर्डर की छपे हर दिन खबर ताजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।3।
शहीदों की शिकायत पर, हँसी-ठठ्ठा करे सत्ता।
बुलाया सत्र संसद का, दिवाने-खास अलबत्ता।
भरे छल-दम्भ-मक्कारी, हुई चर्चा बड़ी लम्बी-
मगर निष्कर्ष निकले बिन, बढ़ाया चौगुना भत्ता।।
बघारे शान फिर सत्ता, हुई चालू हवाबाजी।
शहीदो से करे सत्ता, हमेशा ही दगाबाजी।।
नमन हे राष्ट्रकवि दिनकर जयतु-जय रामधारी की |
हमेशा सिंह से गरजे, सदा उसकी सवारी की |
रथी बनकर बिखेरी रश्मि दिनकर कर्ण-अर्जुन की
रचे सौ ग्रंथ अलबेले उकेरी खूब बारीकी ||
विदेशी आक्रमणकारी बड़े निष्ठुर बड़े बर्बर |
पराजित शत्रु की जोरू-जमीं-जर छीन लें अकसर |
कराओ सिर कलम अपना, पढ़ो तुम अन्यथा कलमा
जिन्हें थी जिंदगी प्यारी, बदल पुरखे जिए रविकर ||
उमर मत पूछ औरत की, बुरा वह मान जायेगी।
मरद की आय मत पूछो, उसे ना बात भायेगी।
फिदाइन यदि मरे मारे, मियाँ तुम मौन रह जाना।
धरम यदि पूछ बैठे तो, सियासत जान खायेगी।।
मदर सा पाठ लाइफ का पढ़ाता है सिखाता है।
खुदा का नेक बन्दा बन खुशी के गीत गाता है।
रहे वह शान्ति से मिलजुल, करे ईमान की बातें
मगर फिर कौन हूरों का, उसे सपना दिखाता है।।
बड़ी तकलीफ़ से श्रम से, रुपैया हम कमाते हैं ।
उसी धन की हिफाज़त हित बड़ी जहमत उठाते हैं।
कमाई खर्चने में भी, निकलती जान जब रविकर
कहो फिर जिंदगी को क्यों कमाने में खपाते हैं।।
पतन होता रहा फिर भी बहुत पैसा कमाया है ।
किया नित धर्म की निन्दा, तभी लाखों जुटाया है।
सहा अपमान धन खातिर, अहित करता हजारों का
पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है।।
कामादि का बैताल जब शैतान से मिलकर गढ़ा।
तो कर्म के कंधे झुका, वो धर्म के सिर पर चढ़ा।
मुल्ला पुजारी पादरी परियोजना लाकर कई
पूजाघरों से विश्व को वे पाठ फिर देते पढा।
सियासत खेल करती है सिया वनवास जाती है।
परीक्षा नारि ही देती पुरुष को शर्म आती है।
अगर है सुपनखा कोई उसे नकटा बना देते।
सिया एवं सती को फिर सियासत में फँसा देते।।
नहीं पीता कभी पानी, रियाया को पिलाता है।
नकारा चाय भी अफसर, नकारा जान खाता है।
नहीं वह चाय का प्यासा, कभी पानी नहीं मांगे
मगर बिन चाय-पानी के, नहीं फाइल बढ़ाता है।।
चुनावी हो अगर मौसम बड़े वादे किये जाते।
कई पूरे किये जाते कई बिसरा दिए जाते।
किया था भेड़ से वादा मिलेगा मुफ्त में कम्बल
कतर के ऊन भेड़ो का अभी नेता लिये जाते।।
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तुम तो मेरी शक्ति प्रिय, सुनती नारि दबंग।
कमजोरी है कौन फिर, कहकर छेड़ी जंग।।
माथे पर बिन्दी सजा, रही नदी में तैर।
सारे दुष्कर कार्य कर, जमा रही वह पैर।|
मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या आदमी, मारो उसे जरूर ||
रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात |
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||
दल के दलदल में फँसी, मुफ्तखोर जब भेड़ ।
सत्ता कम्बल बाँट दे, उसका ऊन उधेड़ ।।
पैर न ढो सकते बदन, किन्तु न खुद को कोस ।
पैदल तो जाना नहीं, तत्पर पास-पड़ोस ।।
देह जलेगी शर्तिया, लेकर आधा पेड़।
एक पेड़ तो दे लगा, दे आंदोलन छेड़।।
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शहीदों से करे सत्ता हमेशा जब दगाबाजी।
भगत-अशफाक-विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।
दिया सिर व्यर्थ फंदे में, फँसाई व्यर्थ ही गर्दन ।
जवानी व्यर्थ क्यों कर दी, लुटे जब रोज जन गण मन ।
मिली क्या खाक आजादी, मिले दो देश दुनिया को।
कभी कोई कहाँ बाँटा, मगर तुम बाँटते माँ को।
इधर नेहरू उधर जिन्ना, मगर हम हारते बाजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।।
नहीं जन-गण सुरक्षित है गरीबी है अशिक्षा है।
करे क्यों बाल मजदूरी, मँगाये कौन भिक्षा है।
विधानों की उपेक्षा है, उपेक्षा धर्म की होती।
हुए क्यों वृद्ध अपमानित, अभी भी नारि क्यों रोती।
अमीरी मौज करती है, यहाँ सत्ता वहाँ काजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी ।2।।
कृषक की खुदकुशी देखी, नशे में धुत कई पीढ़ी।
विरासत राजनैतिक फिर लगाये पुत्र हित सीढ़ी।
अजब फिरकापरस्ती है, बढ़े बलवे बढ़े दंगे।
बढ़ी है भीड़ हिंसा.भी, हमामों मे सभी नंगे।
घुटाले रेप मर्डर की छपे हर दिन खबर ताजी।
भगत अशफाक विस्मिल यूँ कराते दर्ज नाराजी।3।
शहीदों की शिकायत पर, हँसी-ठठ्ठा करे सत्ता।
बुलाया सत्र संसद का, दिवाने-खास अलबत्ता।
भरे छल-दम्भ-मक्कारी, हुई चर्चा बड़ी लम्बी-
मगर निष्कर्ष निकले बिन, बढ़ाया चौगुना भत्ता।।
बघारे शान फिर सत्ता, हुई चालू हवाबाजी।
शहीदो से करे सत्ता, हमेशा ही दगाबाजी।।
फोंट थोड़ा बड़े कर दीजिये। सुन्दर ।
ReplyDeletejee bhaiya
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है.
Raksha Bandhan Shayari
gta5apk.buzz
ReplyDeleteThis is so great I think others could benefit from learning about it...This is helpful! Thanks for sharing....