Tuesday, 12 August 2014

गए गोद में बैठ, मंच पर बैठे सटकर--

गाली देते ही रहे, बीस साल तक धूर्त |
अब गलबहियाँ डालते, सत्ता-सुख आमूर्त |

सत्ता-सुख आमूर्त, देखिये प्यार परस्पर |
गए गोद में बैठ, मंच पर बैठे सटकर |

यह कोसी की बाढ़, इकट्ठा हुवे बवाली |
एक नाँद पर ठाढ़, करें दो जीव जुगाली ||