देह देहरी देहरा, दो दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, दो अघ-तम दहकाय ।
दो अघ-तम दहकाय , घूर नरदहा खेत पर ।
गली द्वार-पिछवाड़, प्रकाशित कर दो रविकर।
जय जय लक्ष्मी मातु, पधारो आज शुभ घरी।
सुख-समृद्धि-सौहार्द, बसे मम देह देहरी ।।
देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
घूर = कूड़ा