Tuesday, 3 April 2012
चल बिखेर मुस्कान, जिंदगी होगी स्वारथ -
सकल पदारथ भोगता, हँसा नहीं इक पाख ।
मनोरोग है व्यक्ति को, बुद्धिमान हो लाख ।
बुद्धिमान हो लाख, भला ऐसा क्या जीना ।
पागलपन है शाख, अगरचे हंसना छीना ।
चल बिखेर मुस्कान, जिंदगी होगी स्वारथ ।
बन सच्चा इंसान, लूट ले सकल पदारथ ।।
1 comment:
G.N.SHAW
3 April 2012 at 07:23
गुप्ता जी हँसाना जरुरी है !
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गुप्ता जी हँसाना जरुरी है !
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