Tuesday, 31 July 2012

मिलकर रेल धकेल, रहे पैसेंजर नादाँ-


  
कोलकाता की मेल का, होता इंजन फेल ।
रविकर जंगल झाड में, विकट परिस्थिति झेल ।
विकट परिस्थिति झेल , ख़तम जब दाना पानी ।
बेढब पेंट्री कार, मरे बिल्ली खिसियानी ।
मिलकर रेल धकेल, रहे पैसेंजर नादाँ ।
खाए-पिए बगैर, रहा ना लेकिन माद्दा ।

Monday, 30 July 2012

राखी में मगरूर, पिया की जालिम बहना-

(1)
तरसे या हरसे हृदय, मास गर्व में चूर |
कंत हुवे हिय-हंत खुद, सावन चंट सुरूर |

सावन चंट सुरूर, सुने न रविकर कहना |
राखी में मगरूर, पिया की जालिम बहना |

लेती इन्हें बुलाय, वहाँ पर खुशियाँ बरसे |
मन मेरा अकुलाय, मिलन को बेहद तरसे ||


(2)
उलाहना देता दगा , सावन सगा अबूझ |
नाटक नौटंकी ख़तम, ख़तम पुरानी सूझ | 


ख़तम पुरानी सूझ, उलझ कर जिए जिंदगी |
अपने घर सब कैद, ख़तम अब दुआ बंदगी |


गुड़िया झूला ख़त्म, बची है राखी बहना |
मेंहदी भी बस रस्म, अभी तक गर्मी सहना ||

Tuesday, 24 July 2012

जन-सन्देश टाइम्स में रविकर की कुंडली

ravikar 23 july 2012 jansandeshtimes.JPG

  दुर्लभतम अपराध, भूलते राजा-पाटिल

कातिल दुष्कर्मी फँसा, फाँसी  देता कोर्ट ।
रहम याचिका लगा के, ताके नित रेड-फोर्ट ।
 
ताके नित रेड-फोर्ट, दीखता खुटका-खीजा ।
चीखी वो निर्दोष, कलेजा नहीं पसीजा ।

दुर्लभतम अपराध, भूलते राजा-पाटिल।
साफ़ ठगा इन्साफ, दूसरी ढूंढे कातिल ।।

Monday, 23 July 2012

150 वीं पोस्ट : शादी सम्मति बिना, जहाँ मन-माफिक रौंदा-रविकर


पोर्नोग्राफी विकृती, बड़ा घिनौना कर्म ।
स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म ?

कैसे सेक्स अधर्म, मानसिक विकृत रोगी ।
होकर के बेशर्म, अनधिकृत बरबस भोगी ।

नर-नारी सुन पाप, जबरदस्ती का सौदा ।
शादी सम्मति बिना, जहाँ मन-माफिक रौंदा ।।

करो हिफाजत आप, शाप जीवन पर तेरे -रविकर

पटना में गौहाटी  
भीड़-भाड पर मत करो, एतबार हे नार ।
पटना के दुर्दांत से, हारी यह सरकार ।

हारी यह सरकार, भीड़ क्यूँ नहीं डरेगी ।
हफ्तों बीते किन्तु, कान पे जूँ  न रेंगी ।

करो हिफाजत आप, शाप जीवन पर तेरे ।
कर रविकर को माफ़, अँधेरे दुनिया घेरे ।।

कार में बनी सी डी 
महिला आयोग हरकत में आई ।
 सरकार अभी भी पीड़िता का इन्तजार कर रही है ।
भीड़ देखती रही-
जानती रही कि क्या अनर्थ हो रहा है ।। 

Saturday, 21 July 2012

दारु पीना जुल्म, लड़कियों का क्या रांची ??

"बेहद नशे की हालत में लड़की"
रांची गौहाटी नहीं, मत करना यह क्लेम ।
पी के निकले रात में, लगता ही तब ब्लेम ।

लगता ही तब ब्लेम, खबर तो दिन की भाई ।
थाने में दें भेज,  करे यह भीड़ भलाई  ।

रविकर जी हलकान, मगर पूछे वो चाची ।
दारु पीना जुल्म, लड़कियों का क्या रांची ??  
 अपनी सुरक्षा अपने हाथ।
धनबाद स्टेशन पर अगर रात 2 बजे उतरता हूँ तो 3 घंटे वहीँ इन्तजार कर लेता हूँ-
आप भी समझें इस बात को ।।

Friday, 20 July 2012

ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी

करे खुदाई कुछ नहीं, खड़े देवगण व्योम ।
एक बार दिल्ली तकें, ताक रहे फिर रोम ।

ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी ।
ब्रह्मलोक हथियाय,  नियन्ता-मेधा बाँधी ।

किंकर्तव्यविमूढ़ , देव गौड़ा की नाई ।
आँख-मूंद मन-मौन, जड़ों की करे खुदाई ।।

Tuesday, 17 July 2012

जला श्मशान में आशिक, खड़े खुश हाथ वो सेंके-


रही थी दोस्ती उनसे, गुजारे थे हंसीं-लम्हे
उन्हें हरदम बुरा लगता, कभी जो रास्ता छेंके ||

सदा निर्द्वंद घूमें वे, खुला था आसमां सर पर
धरा पर पैर न पड़ते, मिले आखिर छुरा लेके ||

मुहब्बत को सितम समझे, जरा गंतव्य जो पूंछा-

 गंवारा यह नहीं उनको, गए मुक्ती मुझे देके ।।

बसे हर रोम में मेरे, मुकम्मल चित्र  जो ढूंढें -
जुबाँ काटे गला काटे, कलेजा काट कर फेंके |।

उड़ें अब मस्त हो हो कर, निकलता  रोज का काँटा-
जला श्मशान में आशिक, खड़े खुश हाथ वो सेंके ||

Monday, 16 July 2012

करे पुत्र जो जुल्म, दंड अब बाप भरेगा

(1) 
छत्तीसगढ़ से-
बल्ले बल्ले कर रहे, नालायक उद्दंड ।
रमण-राज में भय ख़तम, पड़ी कलेजे ठण्ड ।

पड़ी कलेजे ठण्ड, नया कानून चलेगा ।
करे पुत्र जो जुल्म, दंड अब बाप भरेगा  ।

नहीं पड़ी यह बात, किन्तु रविकर के पल्ले ।
सहे वो डिग्री थर्ड, पुत्र की बल्ले बल्ले ।।
(2) 
कोयलांचल धनबाद से 
बेइमानी समझे नहीं,  दिल की चतुर दिमाग ।
सब कुछ बाई-पास हो, कोलफील्ड की आग ।

कोलफील्ड की आग, कोयला-कलुष जलाये ।
मिटते दूषित दाग, एक नर-कुल उपजाए ।

बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन ।
तापे आग दिमाग, बरसता दिल में सावन ।।

Sunday, 15 July 2012

बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन -

(1)
बेइमानी समझे नहीं,  दिल की चतुर दिमाग ।
सब कुछ बाई-पास हो, कोलफील्ड की आग ।

कोलफील्ड की आग, कोयला-कलुष जलाये ।
मिटते दूषित दाग, एक नर-कुल उपजाए ।

बने लेखनी श्रेष्ठ, रचे रचना मनभावन ।
तापे आग दिमाग, बरसता दिल में सावन ।।

(2)
 
बल्ले बल्ले कर रहे, नालायक उद्दंड ।
रमण-राज में भय ख़तम, पड़ी कलेजे ठण्ड ।
पड़ी कलेजे ठण्ड, नया कानून चलेगा ।
करे पुत्र जो जुल्म, दंड अब बाप भरेगा  ।
नहीं पड़ी यह बात, किन्तु रविकर के पल्ले ।
सहे वो डिग्री थर्ड, पुत्र की बल्ले बल्ले ।।

यूरेका यूँ रेंकता--यूरेका यूँ रेंकता



यूरेका यूँ रेंकता, जैसे खोज नवीन ।
छाप निमंत्रण भेजता, बातें बड़ी महीन ।

बातें बड़ी महीन, गेट पर ताला झूले ।
क्या मजाल तौहीन, कहीं से काया छू ले ।

यही सुरक्षा मन्त्र, स्वयं पर अपना ताला
 घूमें ना सर्वत्र, समय से आये बाला ।।

Barbet's Friendly Alternative to Beware of Dog signs


 



Thursday, 12 July 2012

एक ठो रचना लटी पर । कह गये रविकर फटी-चर ।


एक ठो रचना लटी  पर ।
कह  गये  रविकर फटी-चर ।

दो कमी'जो की कमी'ने -
दी पटक रविकर जमीं पर । 

काव्य कैसा कल रचा था -
खुश हुई कलियाँ, हटी पर ।

 कल ग़लतफ़हमी घटी थी 
आज भौंरे हैं घटी पर ।

खून रविकर पी चुके खुद 
कह रहे मच्छर,  तमीचर ।

नटराज भी आकर सिखाये 
नहीं माने वह नटी पर 

दिख रही साबूत लेकिन
कई टुकड़ों में बटी पर 

मुंह की अपने खा चुकी वो -
फिर से आके  है डटी पर | 


करें चामचोरी रखे, 'रविकर' मन में खोट -

घाम चाम पर याम दो, हर दिन पड़े जरुर ।
मिले विटामिन डी सखे, काया को भरपूर ।।

अवमूल्यन मुद्रा विकट, मिले चाम के दाम ।
डालर सोने का हुआ, मंदी हो बदनाम ।।

जाए चाहे चामड़ी, दमड़ी होय न खर्च ।
गिरे अठन्नी बीच में, मीलों करता सर्च ।।

जहाँ  दबंगों ने दिया, चला चाम के दाम ।
जर-जमीन-जोरू दखल, त्राहिमाम हर याम ।।

निकृष्टतम अपराध है, बहुत जरुरी रोक ।
करें चामचोरी रखे, 'रविकर' मन में खोट ।।

रंगभेद है विश्व में, चाम-चमक आधार ।
 नस्लभेद से त्रस्त-जन, लिंग-भेद भरमार ।।


Wednesday, 11 July 2012

जन-सन्देश टाइम्स में :लेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें-रविकर

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बिस्मिल को सादर नमन, बड़े शहीद दबंग |
नए दबंगों से परन्तु, अब होता कुल तंग  |
 
अब होता कुल तंग, भूमि का पट्टा पाया ।
नव-दबंग कब्जाय, कोर्ट में खुब उलझाया  |

तब तो थे अंग्रेज, दबंगों के हत्यारे  ।
 लेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें ।।

रविकर करे ठिठोलियाँ, खाय गालियाँ खूब-

 
 उनकी मदिरा सोमरस, इज्जत करे समाज ।
रविकर पर थू थू करे, जो खाया इक प्याज ।।

 बाइक को पुष्पक कहे , घूमे मस्त सवार ।
 रविकर का वाहन लगे, उसे खटारा कार ।

रविकर आदर भाव का, चाटुकारिता नाम ।
नजर हिकारतमय वहां, ठोके किन्तु सलाम ।।

रविकर के चुटुकुले भी, लगते हैं अश्लील ।
मठ-महंत के हाथ से, कर लें वे गुड-फील ।।


  जालिम कर दे क़त्ल तो, वे बोले इन्साफ ।
रविकर देखा भर-नजर, नहीं कर सके माफ़ ।।

रविकर करे ठिठोलियाँ, खाय गालियाँ खूब ।
पर उनके व्यभिचार से, नहीं रहा मन ऊब ।। 


रविकर की पूजा लगे, ढकोसला आटोप ।
खाए जूता-गालियाँ, करे न उनपर कोप ।।

रविकर चूल्हा कर रहा, प्रर्यावरण खराब ।
उनकी जलती चिता को, हवन कह रहे सा'ब ।।

 तूफानी गति ले पकड़, रविकर  इक अफवाह ।
उनके घर का तहलका, शीतल पवन उछाह ।।

हकीकतें रविकर भली, पर घमंड हो जाय ।
वहां अकड़पन स्वयं  की, बोल्डनेस कहलाय ।।


उनकी दादा-गिरी भी, रविकर रहा सराह  ।
किन्तु हमारी नम्रता,  दयनीयता कराह ।। 

 सहे छिछोरापन सतत, हर चैंबर में जाय ।
हाय बाय रविकर करे,  पकड़ कान दौड़ाय ।।

Tuesday, 10 July 2012

अभिव्यक्ति का गला घोटती मारी रचना

अभिव्यक्ति का  गला घोटती  मारी  रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी  रचना ।

देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।

यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी  है  अय्यारी  रचना ।

हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी 
बौद्धों पर भी आज पड़  रही भारी रचना ।

शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
 हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।

आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी  तब देने लगती गारी रचना ।

श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न 
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी  रचना ।।

रक्षाबंधन आने वाला  है  सावन  में-
 कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।

Monday, 9 July 2012

ऐ 'चना ; ज्वार से तू जल

 चबवाये नाकों चने, लहराए हथियार ।
 चनाखार था पास में, देता रविकर डार ।। 

ऐ 'चना, बाजे घना,  
होकर पड़ा, थोथा यहाँ |
व्यर्थ है, उत्पत्ति तेरी- 

पेट-नीच की, क्षुधा मिटा |

उर्वरा धरती से बनता झाड़  
 किन्तु, रविकर न चढ़े 
ज्वार से जलता रहे तू,   
बाजरे, बाजार में -

चल पड़ा है आज क्रोधित, 

फोड़ने उस भाड़ को
औकात में ही रह, अनोखे,  

भाड़ कितने भूज खाया |

आग ठंडी हो चुकी है, 
मानता हूँ आज रविकर-
ऐ 'चना अब बाज आ जा,  
दांत का आर्डर गया है |
 
है पता लोहा नहीं तू, 

फिर भी चबाये हैं बहुत से |
थोथे चने पर 
चने
मुंह में नहीं अब लार आती  ||

कुंडली 

सुशील जी जोशी की टिप्पणी  पर 

कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |


पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |


झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
खा बीबी की झाड़, चढूं  न कभी झाड़ पर ||
 



कुछ टिप्पणियों का सन्दर्भ शायद यह है 

डा. अनवर विवाद / रविकर क्षमा-प्रार्थी : मेरे द्वारा डाला गया घी देखिये, जिसने आग भड़काई