करे खुदाई कुछ नहीं, खड़े देवगण व्योम ।
एक बार दिल्ली तकें, ताक रहे फिर रोम ।
ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी ।
ब्रह्मलोक हथियाय, नियन्ता-मेधा बाँधी ।
किंकर्तव्यविमूढ़ , देव गौड़ा की नाई ।
आँख-मूंद मन-मौन, जड़ों की करे खुदाई ।।
नजर पड़ते ही जड़ देता है
ReplyDeleteरविकर देता है तो खींच कर देता है !!
बहुत खूब ...
ReplyDeleteव्यंग्य भरी सुंदर शैली ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
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