Friday 19 October 2012

मूतें दिल्ली मगन, उगे खुब कुक्कुर मुत्ते -



पाठ पढ़ाती पत्नियाँ, घरी घरी हर जाम   |
बीबी हो गर शिक्षिका,  घर में ही 
इक्जाम |
घर में ही इक्जाम, दृष्टि पैनी वो राखे |
गर्दन करदे जाम, जाम रविकर कस चाखे  |
तीन-पांच पैंतीस, रात छत्तिस हो जाती |
पति तेरह ना तीन, शिक्षिका पाठ पढ़ाती ||

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 अंतर-मन से बतकही, होती रहती मौन ।
सिंहावलोकन कर सके, हो अतीत न गौण ।
हो अतीत न गौण, जांच करते नित रहिये ।
चले सदा सद्मार्ग, निरंतर बढ़ते रहिये ।
परखो हर बदलाव,  मुहब्बत  अपनेपन से ।
रहे अबाध बहाव, प्रेम-सर अंतर्मन से |

  बंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
विकट निराशा से भरे, आशा है बेचैन ।
आशा है बेचैन, बैन बाहर नहिं आये  ।
न्योछावर सर्वस्व,  बड़ी बगिया महकाए ।
फूलों को अवलोक, लोक में खुशबू -चन्दन ।
  मनुवा मत कर शोक, मान ले रिश्ते बंधन ।।  

 बढ़िया सामग्री अगर, खाद्य-खूद्य दिख जाय ।.
मन के चंचल बहुत से, टट्टू दौड़ लगाय ।.
टट्टू दौड़ लगाय, हरे चश्मे को छोडो ।.
इक लंबा सा बांस, सही तांगे में जोड़ो ।.
बांस हरेरी टांग, सुंघा दो घोड़ा अड़िया ।.
फिर ताकतवर टांग, दौड़ दौड़ेगा बढ़िया ।।.

कुत्ते चोरों से मिलें, पहरा देगा कौन ।
कुत्ते कुत्ते ही पले, कुत्तुब ऊंचा भौन ।  
कुत्तुब ऊंचा भौन, बड़े षड्यंत्र रचाते ।
बढ़िया पाचन तंत्र, आज घी शुद्ध पचाते ।
मूतें दिल्ली मगन, उगे खुब कुक्कुर मुत्ते । 
रख सौ दर्पण सदन, भौंक मर जइहैं कुत्ते ।

3 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ! नमस्ते जी!

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  2. बंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
    विकट निराशा से भरे, आशा है बेचैन ।
    आशा है बेचैन, बैन बाहर नहिं आये ।
    न्योछावर सर्वस्व, बड़ी बगिया महकाए ।
    फूलों को अवलोक, लोक में खुशबू -चन्दन ।
    मनुवा मत कर शोक, मान ले रिश्ते बंधन ।।

    BAHUT BADHIYAAA बहुत बढ़िया कुंडली .जब तक पैसा पास यार संग ही संग डोले ,पैसा रहा न पास ,यार मुख से नहीं बोले ......रविकर जी की कुंडली

    पढके कविवर गिरधर याद आ जातें हैं ........

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  3. जब तक राहुल साथ ,दिग्विजय संग संग डोले ,

    राहुल रहा न पास ,दिग्विजय मुख नहीं खोले

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