भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |
इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग-
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है
ReplyDeletebahut khoob likha hai aapne
ReplyDeleteshubhkamnayen
beautifully penned
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (25-1-2014) "क़दमों के निशां" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1503 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
भागे जिम्मेदार ,अराजक दीखे भारत।
ReplyDeleteसही कहा सर।
बहुत बढ़िया. शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteभारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
ReplyDeleteभरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |
क्या बात है रविकर भाई बहुत सुन्दर है .
अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
ReplyDeleteरविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |
भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |
दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर ||
सुन्दर मनोहर व्यंजना।