Sunday, 31 January 2016

कर, कविता कर याद, याद कर रविकर वादे -

(1)
यादें मत विस्मृत करो, चाहे जैसा स्वाद |
खट्टी-मीठी मस्त पर, दे कड़ुवी को दाद |

दे कड़ुवी को दाद, इल्तिजा वो ठुकराये  |
जाया की फरियाद, किन्तु कविता तो आये |

कर, कविता कर याद, याद कर रविकर वादे |

रहे सदा आबाद, बोल कर भाव नया दे  ||


(2)

झूठा वादा माँ करें, भरे कटोरी खीर |
चन्दा मामा आ, कहे, बच्चा बड़ा शरीर |

बच्चा बड़ा शरीर, तभी पापा आ जाता |
आओ मेरे पास, चलो बाहर, बहलाता |

झूठ साँच ले बोल, दिखाए प्रेम अनूठा |
है रविकर कविराय, परम-हितकारी झूठा ||

(3)

मीमांसा हर दिन करें, परे रखें निज स्वार्थ |
तुष्टिकरण बिल्कुल नहीं, कर्म धर्म रक्षार्थ | 

कर्म धर्म रक्षार्थ, धर्म ही देश बचाये |
रे विमूढ़ रे पार्थ, नहीं फिर अवसर पाये |

रविकर सुधर तुरन्त, उन्हें दे नहीं सलामी |
वही डुबाते देश, वही ला रहे सुनामी ||



Saturday, 30 January 2016

रिश्ते तो रिसते रहे, बन बैठे नासूर-

रिश्ते तो रिसते रहे, बने आज नासूर |
स्वार्थ सिद्ध जिनके हुवे, जा बैठे वे दूर |

जा बैठे वे दूर, स्वयं को यूँ समझाया |
वह तो रविकर फर्ज, फर्ज भरपूर निभाया |

परम्परागत कर्ज, चुकाता अब भी किश्तें |
अश्रु-अर्ध्य हर रोज, भूल ना पाता रिश्ते ||

Thursday, 28 January 2016

कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले

 हौले हौले हादसे, मित्र जाइये भूल। 
ईश्वर की मर्जी चले, करिये इसे कुबूल। 
करिये इसे कुबूल, सावधानी भी रखिये। 
दुर्घटना की मूल, चूक होने पे चखिए। 
कभी डाल मत हाथ, अगर रविकर जल खौले। 
हर गलती से सीख, सीख ले हौले हौले।।

Monday, 25 January 2016

इसीलिए रे मूर्ख, अरे माटी के पुतले-

उबले पानी क्रोध से, उड़े देह से भाप। 
कहाँ वास्तविकता दिखे, केवल व्यर्थ-प्रलाप | 

केवल व्यर्थ-प्रलाप, आग पानी में लागे |
पानी पानी होय, चेतना रविकर जागे। 

इसीलिए रे मूर्ख, अरे माटी के पुतले। 
नहीं उस समय झाँक, जिस समय पानी उबले ||

Friday, 22 January 2016

धरम नहीं आतंक का, किन्तु लाश की जात-

(1)
धरम नहीं आतंक का, किन्तु लाश की जात। 
गाजा पर गर्जना कर, हों सेक्युलर विख्यात। 
हों सेक्युलर विख्यात, जुल्म-कश्मीर नकारें। 
जल्लूकट्टू बंद, किन्तु बकरीद सकारें |
रविकर ये गद्दार, बनाते रहते बौढ़म। 
सत्तासुख की चाह, भोगते रहिये अधरम ||

(2)
चौकस रह, रह बाख़बर, जबर शत्रु की फौज।
खतरा हिंदुस्तान पर, मौज करे कन्नौज।
मौज करे कन्नौज, करेगा फिर गद्दारी।
लेकिन पृथ्वीराज, मरे ना अबकी बारी।
कत्लो-गारद जुल्म, याद आता है बरबस।
नहीं करे फिर माफ़, रहे रविकर अब चौकस।।

(3)
जोड़ी आमिर-किरण सम, डरे करण शहरूख।
इस्लामिक इस्टेट की, ज्यों ज्यों बढ़ती भूख।
ज्यों ज्यों बढ़ती भूख, बचाओ हाफ़िज़ भाई।
बहन फिदाइन भेज, साथ ही चार कसाई।
मिले मदद भरपूर, नहीं तो थोड़ी थोड़ी।
यहीं बहत्तर हूर, यही पर मिले हिजोड़ी।।