Tuesday 28 June 2016

बाढ़ की विभीषिका -

खानापूरी हो चुकी, बेशर्मी भी झेंप । 
खेप गए नेता सकल, भेज  रसद की खेप। 

भेज रसद की खेप, अफसरों की बन आई । 
देखी भूख फरेब, डूब कर जान बचाई। 

पानी पी पी मौत, उठा दुनिया से दाना ।
बादल-दल को न्यौत, चले जाते मयखाना ॥

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2389 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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