रोमन में हिन्दी लिखी, रो मन बुक्का फाड़।
देवनागरी स्वयं की, रही दुर्दशा ताड़।
रही दुर्दशा ताड़, दिखे मात्रा की गड़बड़।
पाश्चात्य की आड़, करे अब गिटपिट बड़ बड़।
सीता को बनवास, लगाये लांछन धोबन।
सूर्पनखा की जीत, लिखें खर दूषण रोमन।।
तप गृहस्थ करता कठिन, रविकर सतत् अबाध।
संयम सेवा सहित वह , सहिष्णुता ले साध।