लाखों अंधे भक्त-गण, करते प्रबल विरोध |
छुपता फिरता साधु-शठ, लख जन गण मन क्रोध |
लख जन गण मन क्रोध, नहीं बचने की आशा |
बना शिकार अबोध, प्रवंचक किया तमाशा |
देखे दुर्गति दुष्ट, आज से अपनी आँखों |
आया कामुक गिद्ध, सँभालो इसे सलाखों-
पाता पोती दुष्ट, और अज'माता ओरल-
रल-मिल दुर्जन लूटते, गैंग रेप कहलाय ।
हत्या कर के भी यहाँ, नाबालिग बच जाय ।
नाबालिग बच जाय, प्रवंचक साधु कहानी ।
नहीं करे वह रेप, मुखर-मुख की क्या सानी ।
छल बल *आशर बाढ़, मची काया में हलचल ।
पाता पोती दुष्ट, और अज'माता ओरल ॥
*राक्षस
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले-
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||