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Sunday, 1 September 2013

रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की

गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |

व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |

करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||

Sunday, 25 August 2013

अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी -

टेढ़ी-मेढ़ी डगरिया, पड़ते डग-मग पैर |
बीती यूँ ही उमरिया, रहे मनाते खैर | 

रहे मनाते खैर, खैर वो बीत चुकी है |
गया हमेशा चूक, सफलता छिपी-लुकी है |

तौर-तरीके श्रेष्ठ, पकड़ ना पाया *मेढ़ी |
 अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी ??

*तीन शिराओं वाली चोटी |