Monday, 30 April 2012
कर सकते संसर्ग,अघोरी कामी साधक
सदियों से रखते रहे, लोग मिस्र में लाश ।
संरक्षित करते रहे, ममी बनाकर ख़ास ।
ममी बनाकर ख़ास, नई इक खबर सुनाता ।
नगर काहिरा मिस्र, नया कानून बनाता ।
Friday, 27 April 2012
इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार -
भोजन-भट ज्यों बैठता, कमर-बंद को खोल |
लार घोंटने लग पड़े, हाथ फिराते ढोल ।।
पूडी-सब्जी आ गई, जब चटनी के साथ ।
हाथ दाहिने को जकड, थामे बाँया हाथ ।।
दोनों हाथों को उठा, ज्यों बोला जजमान ।
टूट पड़े वह शत्रु पर, जैसे युद्ध-स्थान ।।
हर वितरक धरता वहाँ, नो-इंट्री का टैक्स ।
मस्त माल चापा करे, भोजन भट्ट रिलैक्स ।।
चूहे कूदें क्यूँ कभी, हरदिन रहे मोटाय ।
बिना भूख के हर समय, चार गुना पा जाय ।।
ठूँस ठूँस के भर रहा, लेता नहीं डकार।
हिस्से चार डकार के, करे नहीं इनकार ।।
वहीँ पास के गाँव में, पसरा है अँधियार ।
इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार ।।
अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।
Sunday, 22 April 2012
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी-
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।
मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।
सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष, करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना = मिलावटी खबर
रविकर की रसीली जलेबियाँ
"कुछ कहना है"
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
Friday, 20 April 2012
साहब
बदबू लगती है बुरी, साब थामते सांस ।
मजदूरों की भीड़ यह, नहीं आ रही रास ।।
गई हसीना पास से, खुश्बू का एहसास ।
हालत नाजुक साब की, भरे सांस-उच्छ्वास।
चोट लगी मजदूर को, साब देत दुत्कार ।
पत्नी करती याचना, दें पच्चीस हजार ।
कुचला इक फुटपाथिया, साहब-कार फरार ।
वहीं सड़क पर वह मरा, बता रहा अखबार ।।
मैडम काफी सख्त हैं, करे नहीं परवाह ।
काफी-हाउस घूमती, साहब रहे कराह ।।
Sunday, 15 April 2012
संजय भास्कर जी की शुभ रात्रि के सुभाषित पर--
अपने बारे में अगर, खुद ही सोचें राम ।
बेढब दुनिया क्या करे, मुँह ढांपे आराम ।
मुँह ढांपे आराम, काम बढ़िया कर जाओ ।
रोया था तू आय, जाय के इन्हें रुलाओ ।
कर मानव-कल्याण, पूर कर पावन सपने ।
छोडो देना ध्यान, भटक ना जाओ अपने ।।
Friday, 13 April 2012
वह कसाब अब कृष्ण, बाप दो-दो जो पाया -
खाया छप्पन जान खुद, मेहमान शैतान ।
सत्ता हिन्दुस्तान की, लगती पाक समान ।
लगती पाक समान, जनक इक इसे जन्मता ।
पालनकर्ता जनक, दिखाता बड़ी नम्रता ।
वह कसाब अब कृष्ण, बाप दो-दो जो पाया ।
छप्पन भोग लगाय, अभी भी नहीं अघाया ।।
लगती पाक समान, जनक इक इसे जन्मता ।
पालनकर्ता जनक, दिखाता बड़ी नम्रता ।
वह कसाब अब कृष्ण, बाप दो-दो जो पाया ।
छप्पन भोग लगाय, अभी भी नहीं अघाया ।।
Thursday, 12 April 2012
बन्दे कुछ चालाक, गधे से हल चलवाते -
सीधा साधा सौम्य सा . काँखा- कूँखा नाय ।
नमक-रुई की बोरियां, चतुराई विसराय ।
चतुराई विसराय, नई संतति है आई |
गबरगण्ड गमखोर, गधे को मिले बधाई ।
गबरगण्ड गमखोर, गधे को मिले बधाई ।
बन्दे कुछ चालाक, गधे से हल चलवाते ।
रविकर मौका देख, गधे को बाप बनाते ।।
Wednesday, 11 April 2012
करके कारक पक्ष, झूठ करता है बम-बम -
(१)
अश्वस्थामा हस्ति की, हस्ती देत मिटाय ।
अश्वस्थामा हस्ति की, हस्ती देत मिटाय ।
जीव-जंतु मरते गए, शामिल धर्म चुपाय ।
शामिल धर्म चुपाय, द्रोण की हत्या होती ।
यह युक्ति-निर्दोष, बीज हत्या की बोती ।
पाँचो पांडव पुत्र, कटे मिटता कुल-नामा ।
मणि विहीन ले घाव, भटकता अश्वस्थामा ।
(२)
पर्यावरण परिस्थिती, दे झूठों का साथ ।
चिरंजीव की मृत्यु सुन, घूम द्रोण का माथ ।
घूम द्रोण का माथ, मरे ना अश्वस्थामा ।
(२)
चिरंजीव की मृत्यु सुन, घूम द्रोण का माथ ।
घूम द्रोण का माथ, मरे ना अश्वस्थामा ।
पर करते विश्वास, बिधाता होते बामा ।
ऐसे शाश्वत सत्य, हारता जाए हरदम ।
करके कारक पक्ष, झूठ करता है बम-बम ।।
Monday, 9 April 2012
Sunday, 8 April 2012
रविकर कैसी लाश, समझती सब कुछ सुल्टा-
उल्टा-पुल्टा कर रही, मौत साल दर साल ।
जीवन को तो खा चुकी, खूब बजावे गाल ।
खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।
समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।
रविकर कैसी लाश, समझती सब कुछ सुल्टा ।
पर पट्टा दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।
जीवन को तो खा चुकी, खूब बजावे गाल ।
खूब बजावे गाल, धूप में दाल गलावे ।
समय-पौध जंजाल, माल-मदिरा उपजावे ।
रविकर कैसी लाश, समझती सब कुछ सुल्टा ।
पर पट्टा दुहराय, मौत को ढोती उल्टा ।।
Saturday, 7 April 2012
नहीं देखते दोष, स्वार्थ में रविकर अंधे-
अंधे का क्या दोष है, दुनिया नहीं दिखाय ।
मन के नैनो से लखे, गाए खाय-कमाय ।।
गाए खाय-कमाय, काम में अंधा मानव।
देखे विना विवेक, बने तत्क्षण ही दानव ।
दिखे न कोई श्रेष्ठ, करें मद-गोरख-धंधे ।
नहीं देखते दोष, स्वार्थ में रविकर अंधे ।।
Friday, 6 April 2012
पिता, पुत्र पति में बही व्यर्थ समय की रेत-
veerubhai at ram ram bhai
पर मेरी टिप्पणी
अधिकारों के प्रति रहे,
मुखरित और सचेत |
पिता, पुत्र पति में बही
व्यर्थ समय की रेत |
व्यर्थ समय की रेत
बराबर हक़ पायी है |
आजादी के गीत,
जोर से अब गायी है |
चाल-ढाल ड्रेस वाद,
थोपिए अब न इनपर |
माँ क्या जाने आज,
नारियां चलती तनकर ||
Wednesday, 4 April 2012
किन्तु जहर मत डाल, असर प्यारों पर पारे
खिले बगीचे फूल संग, अनचाहे पतवार ।
जैसे घर-संसार में, लें आकार विकार ।
लें विकार आकार , उखाड़ो जड़ से सारे ।
किन्तु जहर मत डाल, असर प्यारों पर पारे ।
है जीवन की सीख, नीच जब रहे लंगीचे ।
है जीवन की सीख, नीच जब रहे लंगीचे ।
तब सु-मनों का मूल्य, समझते खिले बगीचे ।।
Tuesday, 3 April 2012
चूमा-चाटी कर रहे, उत्सव में पगलान
श्री संतोष जी त्रिवेदी का आभार
मिली प्रेरणा
बैशाख और मेघा / माघ
मेघा को ताका करे, नाश-पिटा बैसाख ।
करे भांगड़ा तर-बतर, बट्टा लागे शाख ।
बट्टा लागे शाख, मुटाता जाय दुबारा ।
पर नन्दन वैशाख, नहीं मेघा को प्यारा ।
मेघा ठेंग दिखाय, चिढाती कहती घोंघा ।
ठंडी मस्त बयार, झिड़कती उसको मेघा ।।
चित्रा (चैत्र)
चित्रा के चर्चा चले, घर-आँगन मन हाट ।
ज्वार जवानी कनक सी, रही ध्यान है बाँट ।
रही ध्यान है बाँट, चूड़ियाँ साड़ी कंगन ।
जोह रही है बाट, लाट होंगे मम साजन ।
फगुनाहटी सुरूर, त्याग अब कहती मित्रा ।
विदा करा चल भोर, ताकती माती-चित्रा ।।
आश्विन और कार्तिक
चूमा-चाटी कर रहे, उत्सव में पगलान ।
डेटिंग-बोटिंग में पड़े, रेस्टोरेंट- उद्यान ।
रेस्टोरेंट- उद्यान, हुवे खुब कसमे-वादे ।
पूजा का माहौल, प्रेम रस भक्ति मिला दे ।
नव-दुर्गा आगमन, दिवाली जोड़ा घूमा ।
पा लक्ष्मी वरदान, ख़ुशी से माथा चूमा ।।
चल बिखेर मुस्कान, जिंदगी होगी स्वारथ -
सकल पदारथ भोगता, हँसा नहीं इक पाख ।
मनोरोग है व्यक्ति को, बुद्धिमान हो लाख ।
बुद्धिमान हो लाख, भला ऐसा क्या जीना ।
पागलपन है शाख, अगरचे हंसना छीना ।
चल बिखेर मुस्कान, जिंदगी होगी स्वारथ ।
बन सच्चा इंसान, लूट ले सकल पदारथ ।।
Monday, 2 April 2012
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित -
फागुन और श्रावणी
फागुन से मन-श्रावणी, अस्त व्यस्त संत्रस्त
भूली भटकी घूमती, मदन बाण से ग्रस्त ।
मदन बाण से ग्रस्त, मिलन की प्यास बढाये ।
जड़ चेतन बौराय, विरह देहीं सुलगाये ।
तीन मास संताप, सहूँ मै कैसे निर्गुन ?
डालो मेघ फुहार, बड़ा तरसाए फागुन ।।
आश्विन और ज्येष्ठ
आश्विन की शीतल झलक, ज्येष्ठ मास को भाय।
नैना तपते रक्त से, पर आश्विन इठलाय ।
पर आश्विन इठलाय, भाव बिन समझे कुत्सित।
मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित ।
मेघ देख कर खिन्न, तड़पती तड़ित तपस्विन ।
भीग ज्येष्ठ हो शांत , महकती जाती आश्विन ।।
Sunday, 1 April 2012
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