Sunday, 29 September 2013
प्रभु दे मारक शक्ति,, नारि क्यूँ सदा कराहे -
हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।
देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥
Saturday, 28 September 2013
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे -
हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।
देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥
Thursday, 26 September 2013
अगर शत्रु के नाम, बड़े आरोप लगाए -
कुटनी के करतूत से, कूटनीति नाकाम |
चालू है अब धूर्तता, पाई शक्ति तमाम |
पाई शक्ति तमाम, छूट अपराधी पाए |
अगर शत्रु के नाम, बड़े आरोप लगाए |
हेर फेर अज मेर, शेर की इज्जत लुटनी |
चूक हुई इस बार, फँसा देगी पर कुटनी ||
Tuesday, 24 September 2013
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद-
टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |
पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |
रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज -
कुण्डलियाँ-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
दोहे-
झेले जिसने जुल्म-अति, उसकी ले के जान |
मना रहे दीवालियाँ, कुछ अहमक इंसान |
अबला तो संकेत है, जो महिला कमजोर ।
ना लक्ष्मी की ओर यह, ना दुर्गा की ओर । ।
Monday, 23 September 2013
रविकर देखे चाँद, कल्पना करे व्यवस्थित
व्यथित पथिक बरबस चले, लगे खोजने चैन |
मृग मरीच से अलहदा, मूँदे दोनों नैन |
मूँदे दोनों नैन, वैन वैरी हो जाते |
आती ज्यों ज्यों रैन, रोज त्यों त्यों उकताते |
रविकर देखे चाँद, कल्पना करे व्यवस्थित |
मुखड़े पर मुस्कान, पथिक हो गया अव्यथित ||
Friday, 20 September 2013
अफजल हुआ फरार, मुलायम राहत पाए-
समाचार-
एम् एल ए भाजपा का, गिरफ्तार आभार |
आतंकी दुर्दांत पर, अफजल हुआ फरार |
अफजल हुआ फरार, मुलायम राहत पाए |
ख़ुशी ख़ुशी सरकार, कई बिल पास कराये |
जनरल की अब जांच, संग मोदी के बैठे |
एम् पी में शिवराज, नहीं जानूं क्यूँ ऐंठे ||
Wednesday, 18 September 2013
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत
रहमत लाशों
पर नहीं,
रहम तलाशो
व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |
अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |
करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा
रह मत
||
Tuesday, 17 September 2013
मरता दिखा विदर्भ, सियासत दंगा यू पी-
झारखंड में भुखमरी, तप्त अग्नि से गर्भ |
कृषक ख़ुदकुशी कर मरे, मरता दिखा विदर्भ |
मरता दिखा विदर्भ, सियासत दंगा यू पी |
सत्ता करती गर्व, लगाए जनता चुप्पी |
होती बन्दरबांट, दीमकें लगीं फंड में |
लेती फाइल चाट, कोयला झारखंड में ||
छौंक छौंक के दाल, हुआ अब काला चमचा-
मचा रहे हल्ला सभी, कभी नहीं हों मौन |
मची हुई है होड़ नित, आगे निकले कौन |
आगे निकले कौन, लगाते कसके नारे |
काली पीली दाल, गलाके छौंक बघारें |
रचते नित षड्यंत्र, चलें तलवार तमंचा |
छौंक छौंक के दाल, हुआ अब काला चमचा ||
Friday, 13 September 2013
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी-
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
Wednesday, 11 September 2013
किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -
झूठी कहते ना थको, व्यर्थ बको अविराम ।
याद करो उस शाम को, जब थे लोग तमाम ।
जब थे लोग तमाम, वहाँ बक्कुर नहिं फूटा ।
फूटी किस्मत हाय, तभी दिल रविकर टूटा ।
रही मुहब्बत पाक, किन्तु मैं तुझ से रूठी ।
किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी ॥
Tuesday, 10 September 2013
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला-
जब रूपसि-रंगत नैन लखे तब रंग जमे मितवा मतवाला |
चढ़ जाय नशा उतरे न कभी अब भूल गया मनुवा मधुशाला |
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला |
नवनीत चखी चुपचाप सखी फिर छोड़ गई वह सुन्दर बाला ||
Monday, 9 September 2013
रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी-
निर्माता के प्रति दिखे, अब निर्मम व्यवहार |
हृष्ट-पुष्ट होकर बढ़े, रचना उसे नकार |
रचना उसे नकार, बघारे हर पल शेखी |
पाय ममत्व-दुलार, करे उसकी अनदेखी |
मद में मानव चूर, आपदा पर हकलाता |
हो जाता मजबूर, याद आये निर्माता ||
Sunday, 8 September 2013
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव"
अंक - 35
पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, नहीं जीवन भरमाता ||
Friday, 6 September 2013
दुष्कर्मी दुर्दांत वो, सचमुच बड़ा समर्थ-
(1)
कोसा-काटी कोहना, कुल कौवाना व्यर्थ ।
दुष्कर्मी दुर्दांत वो, सचमुच बड़ा समर्थ ।
सचमुच बड़ा समर्थ, पाप का घड़ा बड़ा है ।
हरदम जिए तदर्थ, अडंगा कहाँ पड़ा है ।
कह रविकर कविराय, कीजिए किन्तु भरोसा ।
कड़ा दंड वो पाय, शुरू रख कोसी-कोसा-
कोसा-काटी = गाली दे दे कर कोसना -
कौवाना = अंड-बंड बकना
(2)
मैया ताकत दूर तक, पर आवत नहिं पूत |
तन की ताकत तो ख़तम, मन करता आहूत |
मन करता आहूत, दूत यम के हैं आये ।
लेते लेते प्राण, दूत दोनों भरमाये ।
देखे ममता-मोह, चकित हैं प्राण हरैया ।
आजा आजा पूत, बहुत व्याकुल है मैया ॥
Thursday, 5 September 2013
आश्रम हित आ श्रम करें, कर ले रविकर धर्म-
आश्रम हित आ श्रम करें, कर ले रविकर धर्म |
जब जमीर जग जाय तो, छोड़ अनीति कुकर्म |
छोड़ अनीति कुकर्म, नर्म व्यवहार करेंगे |
देंगे प्रवचन मस्त, भक्त की पीर हरेंगे |
किन्तु मढ़ैया एक, दिखाने खातिर आक्रम |
बनवा दूँगा दूर, सदाचारी जो आश्रम ||
Monday, 2 September 2013
गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का-
(1)
छक्का पंजा भूलता, जाएँ छक्के छूट |
छंद-मन्त्र छलछंद जब, कूट-कर्म से लूट |
कूट-कर्म से लूट, दुष्ट का फूटे भंडा |
पाये डंडा दण्ड, बदन हो जाये कंडा |
रविकर घटे प्रताप, कीर्ति को लगता धक्का |
गुरु हो अर्जुन सरिस, अन्यथा बन जा छक्का ||
(2)
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
Sunday, 1 September 2013
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की
गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
आया कामुक गिद्ध, सँभालो इसे सलाखों-
लाखों अंधे भक्त-गण, करते प्रबल विरोध |
छुपता फिरता साधु-शठ, लख जन गण मन क्रोध |
लख जन गण मन क्रोध, नहीं बचने की आशा |
बना शिकार अबोध, प्रवंचक किया तमाशा |
देखे दुर्गति दुष्ट, आज से अपनी आँखों |
आया कामुक गिद्ध, सँभालो इसे सलाखों-
पाता पोती दुष्ट, और अज'माता ओरल-
रल-मिल दुर्जन लूटते, गैंग रेप कहलाय ।
हत्या कर के भी यहाँ, नाबालिग बच जाय ।
नाबालिग बच जाय, प्रवंचक साधु कहानी ।
नहीं करे वह रेप, मुखर-मुख की क्या सानी ।
छल बल *आशर बाढ़, मची काया में हलचल ।
पाता पोती दुष्ट, और अज'माता ओरल ॥
*राक्षस
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले-
टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |
खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |
नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)