Tuesday, 25 February 2014
करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये-
कड़े बयानों के लिए, चुलबुल करती दाढ़ |
छोड़ केकड़े को पड़ा, मकड़े पीछे साँढ़ |
मकड़े पीछे सांढ़ ,जाल मकड़ा फैलाये |
करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये |
किन्तु बचे नौ बैल, चार मकड़े ने जकड़े |
मारे मन का मैल, मरे तू भी ऐ मकड़े ||
दे *दिल्ले में आग, बिगाड़े आप रतालू -
तालू से लगती नहीं, जिभ्या क्यूँ महराज |
हरदिन पलटी मारते, झूँठों के सरताज |
झूँठों के सरताज, रहे सर ताज सजाये |
एकमात्र ईमान, किन्तु दुर्गुण सब आये |
मिर्च-मसाला झोंक
, पकाई सब्जी चालू ।
दे *दिल्ले में आग
, बिगाड़े आप रतालू ॥
*किवाड़ के पीछे लगा लकड़ी का चौकोर खूँटा
मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज-
चिड़ियाघर कायल हुआ, बदल गया अंदाज ।
मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज ।
बाजीगर सर-ताज, बाज गलती से आये ।
लेकिन गिद्ध समाज, बाज को
गलत बताये
।
कौआ इक चालाक, बाँट-ईमानी पुड़िया ।
मिस-मैनेज कर काम, रोज भड़काए चिड़िया ॥
Sunday, 23 February 2014
राजनीति की मार, बगावत को उकसाए
पाना-वाना कुछ नहीं, फिर भी करें प्रचार |
ताना-बाना टूटता, जनता करे पुकार |
जनता करे पुकार, गरीबी उन्हें मिटाये |
राजनीति की मार, बगावत को उकसाए |
आये थे जो आप, मिला था एक बहाना |
किन्तु भगोड़ा भाग, नहीं अब माथ खपाना ||
साही की शह-मात से, है'रानी में भेड़ |
खों खों खों भालू करे, दे गीदड़ भी छेड़ |
दे गीदड़ भी छेड़, ताकती ती'जी ताकत |
हाथी बन्दर ऊंट, करे हरबार हिमाकत |
अब निरीह मिमियान, नहीं इस बार कराही |
की काँटों से प्यार, सवारी देखे साही ||
Friday, 21 February 2014
ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी-
दखलंदाजी खेल में, करती खेल-खराब |
खले खिलाड़ी कोच को, लेकिन नहीं जवाब |
लेकिन नहीं जवाब, प्रशासक नेता हॉबी |
हॉबी सट्टेबाज, पूँछ कुत्तों की दाबी |
ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी |
बड़ी व्यस्त सरकार, करे क्यूँ दखलंदाजी --
Wednesday, 19 February 2014
दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे-
खरी खरी कह हर घरी, खूब जमाया धाक |
अपना मतलब गाँठ के, किया कलेजा चाक |
किया कलेजा चाक, देश भर में अब घूमे |
दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे |
डाल गए मझधार, धोय साबुन से कथरी |
मत मतलब मतवार, महज कर रहे मसखरी ||
Tuesday, 18 February 2014
अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी
(१)
खाँसी की खिल्ली उड़े, खीस काढ़ते आप |
खुन्नस में मफलर कसे, गया रास्ता नाप |
गया रास्ता नाप, नाव मझधार डुबाये |
सहा सर्द-संताप,
गर्म
लू जल्दी आये |
अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी
|
जन-गण दिखें प्रसन्न,
हुई संक्रामक खाँसी
॥
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