ताना-बाना बिगड़ता, ताना मारे तन्त्र ।
भाग्य नहीं पर सँवरता, फूंकें लाखों मन्त्र ।
फूंकें लाखों मन्त्र, नीयत में खोट हमारे ।
खुद को मान स्वतंत्र, निरंकुश होते सारे ।
साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना ।
कुल उपाय बेकार, नए कुछ और बताना ॥
आपकी लिखी रचना मंगलवार 15 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाह !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteउपाय तो वही हैं जो आपने बताये हैं..पर उन्हें पालन तो करना पड़ेगा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteBahut khoob.......
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