नन्हा-नीम निहारता, बड़ी बुजुर्ग जमात ।
छैला बाबू हर समय, हरी लता लिपटात ।
हरी लता लिपटात, सुखाते चूस करेला ।
नई लता नव-पात, गुठलियाँ फेंक झमेला ।
बीस बरस उत्पात, सुलगता अंतस तन्हा ।
देख खोखली देह, दहल जाता दिल नन्हा ।।
(2)
राम कुँवारे नीम की, देखी दशा विचित्र ।
भर जीवन ताका किया , बालाओं के चित्र ।
बालाओं के चित्र, मित्र समझाकर हारे |
रोज लगाके इत्र, घूमता द्वारे द्वारे |
आज बहाए नीर, पीर से जीवन हारे |
लिखा यही तकदीर, बिचारे राम कुंवारे ||
भर जीवन ताका किया , बालाओं के चित्र ।
बालाओं के चित्र, मित्र समझाकर हारे |
रोज लगाके इत्र, घूमता द्वारे द्वारे |
आज बहाए नीर, पीर से जीवन हारे |
लिखा यही तकदीर, बिचारे राम कुंवारे ||
(3)
टांका महुवा से भिड़ा, अंग संग लहराय ।
गठबंधन ऐसा हुआ, नीम मस्त हो जाय ।
नीम मस्त हो जाय, करे इच्छा सब पूरी |
महुआ भी मस्ताये , पाय दारू अंगूरी |
बुढऊ जाते सूख, आज कर कर के फांका |
महुआ खूब मुटाय, भिडाये घर घर टांका ||
गठबंधन ऐसा हुआ, नीम मस्त हो जाय ।
नीम मस्त हो जाय, करे इच्छा सब पूरी |
महुआ भी मस्ताये , पाय दारू अंगूरी |
बुढऊ जाते सूख, आज कर कर के फांका |
महुआ खूब मुटाय, भिडाये घर घर टांका ||