घूर रहा सिंगूर, ढिठाई जर्रा जर्रा । बर्रा मारे डंक, बदल ना पाए ढर्रा ।। और मदारिन शेष हैं आँख खोल कर देख .....
पूरी करो रविकर भाई .....शुक्रिया इस रचना के लिए .ये मदारी और मदारिन जिनकी जुबान रोज़ पलटती है देख को और कहाँ ले जायेंगे .मंद बुद्धि को भी मात कर गई निर्ममता की हट,निर बुद्धा निकली पूरी .
ममता' मार छलांग, भूलती मानुष माटी
ReplyDeletebeautifully said
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteराजनीति की निर्मम चालें..
ReplyDeleteममता को तो आपने धो डाला |
ReplyDeleteमुलायम को भी नहीं बख्सा |
बधाई आपको बाबा ||
राजनीति पर अच्छा निशाना |
ReplyDeleteआशा
घूर रहा सिंगूर, ढिठाई जर्रा जर्रा ।
ReplyDeleteबर्रा मारे डंक, बदल ना पाए ढर्रा ।।
और मदारिन शेष हैं आँख खोल कर देख .....
पूरी करो रविकर भाई .....शुक्रिया इस रचना के लिए .ये मदारी और मदारिन जिनकी जुबान रोज़ पलटती है देख को और कहाँ ले जायेंगे .मंद बुद्धि को भी मात कर गई निर्ममता की हट,निर बुद्धा निकली पूरी .