कामी क्रोधी लालची, पाये बाह्य उपाय ।
उद्दीपक का तेज नित, इधर उधर भटकाय ।
इधर उधर भटकाय, कुकर्मों में फंस जाता ।
अहंकार का दोष, मगर अंतर से आता।
हैं फॉलोवर ढेर, चेत हे ब्लॉगर नामी ।
पद मद में हो चूर, बने नहिं क्रोधी कामी ।।
चली माइके
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम | सास ससुर सुत सुता पति, सेवा में हो शाम | सेवा में हो शाम, नहीं सी. एल. नहिं इ. एल. | जब केवल सिक लीव, जाय ना जीवन जीयल |
रविकर मइके जाय, पिए जो माँ की घुट्टी |
ढूँढे निज अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी || |
गम
मनभावन यह सीनरी, देख सीन री देख | नख शिख तक सज्जा किये, प्रेम मयी आलेख | प्रेम मयी आलेख, बुलाया भी प्रेयसी को | लेकिन तूफाँ-शेख, रिझाए वह बहशी को |
पेट्रो-डालर थाम, छोड़ कर प्यारा सावन |
चुका प्रेम का दाम, गई दे गम-मनभावन || |
भरोसा
चप्पल आके ढूँढ़ता, होती मठ में देर | भूला भटका शाम का, आये तनिक सवेर | आये तनिक सवेर, घोर चिंता चप्पल की | होय सर्जरी हर्ट, हास्य की देकर झलकी |
जाए अन्दर जूझ, गया "दर्शन" समझा के |
है पूरा विश्वास, पहनना चप्पल आके || |
आलता
लगा आलता पैर में, बना महावर लाख | मार आलथी पालथी, सेंके आशिक आँख | सेंके आशिक आँख, पाख पूरा यह बीता | शादी की यह भीड़, पाय ना सका सुबीता | बिगड़े हैं हालात, प्रिये पद-चाप सालता | आओ फिर चुपचाप, तनिक दूँ लगा आलता || |
दम्भी ज्ञानी हर सके, साधुवेश में नार |
नीति नकारे नियम से, झटक लात दे मार |
झटक लात दे मार, चाहता लल्लो-चप्पो |
झूठी शान दिखाय, रखे नित हाई टम्पो |
जाने ना पुरुषार्थ, करे पर बात सयानी |
नहीं शमन अभिमान, करे ये दम्भी-ज्ञानी ||
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मतदाता दाता नहीं, केवल एक प्रपंच |
एक दिवस के वास्ते, मस्का मारे मंच |
मस्का मारे मंच, महा-मुश्किल में *मालू |
इसका क्या विश्वास, बिना जड़ का अति-चालू | माली बनकर छले, खले मालिक मदमाता | मालू जाय सुखाय, मिटे मर मर मतदाता || *लता |
ब्लॉगर भी बँटने लगे, रूप रंग आकार |
शुरू किया जो पॉलटिक्स, करते बंटाधार | करते बंटाधार, बदलिए रविकर फितरत | बँटते रहे सदैव, होइए अभिमत सम्मत | रहिये नित चैतन्य, पहल रचनात्मक सादर | जुड़ें लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर || |
दुष्ट डाक्टर मारता, गर्भ-स्थिति नव जात |
कुक्कुर को देवे खिला, छी छी छी हालात | छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी | मारो सौ सौ लात, भूत की छीन लंगोटी |
है अंधा कानून, तभी तो कातिल अक्सर |
पाय जमानत जाय, छूटते दुष्ट डाक्टर || |
प्रेम-सेवइयां खाय के, लुच्चे करें हलाल ।
घूस खाय के ख़ास-जन, खूब बजावें गाल ।
खूब बजावें गाल, चाल टेढ़ी ही चलते।
आम रसीले चूस, भद्र-जनता को छलते ।
कडुआहट भरपूर, भरें जीवन में भैया ।
चीनी कडुवी होय, चापते प्रेम-सेवइयां ।।
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तैयारी की गिलट से, गिरगिटान मद-चूर |
गिरहबाज गोते लगा, मजा करे भरपूर | मजा करे भरपूर, घोर कलई करवा कर | पद-मद चढ़ा शुरूर, चना थोथा बजवाकर | पर कलई इक रोज, खुले सिटपिटा तुम्हारी | *गिलगिल मार भगाय, रखो करके तैयारी | *घड़ियाल / मगरमच्छ |
यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल ।
दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल ।
माखन प्रेम निकाल, खाय के गया सकाले ।
ग्वालिन खड़ी निढाल, श्याम माखन जब खाले ।
जकड़ कृष्ण को लाय, पड़े दो दही मथानी ।
बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी ।।
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लगे मनोरम अति-प्रिये, खिन्न मनस्थिति शांत |
रमे कांत-एकांत में, अब भावे ना कांत |
अब भावे ना कांत, कांती-कष्ट-कांदना |
छोड़ चलूं यह प्रांत, करूँगी कृष्ण-साधना |
मन में रही ना भ्रांत, छला जो तुमने हरदम | कृष्णा छलिया श्रेष्ठ, भजूँ वो लगे मनोरम ||
कांत=मनोरम
कांत=पति कांती= बिच्छू का दंश |
संसारी यह शनीचरा, गुरुवर हुआ समाप्त |
मासिक वेतन पा रहे, अभी रईसी व्याप्त | अभी रईसी व्याप्त, पकडुआ व्याह रचाए | पाया नहीं दहेज़, किन्तु किडनेप हो जाए | दो रविकर दस लाख, शुरू टीचर की बारी किस्मत जाए जाग, बढ़ा रूतबा संसारी || |
श्रीमती की बात से , बाढ़े मन अनुराग |
वट-सावित्री की कथा, बाग़-बाग़ बड़-भाग | बाग़-बाग़ बड़-भाग, छुडा कब्जे से यम के | सावित्री का तेज, माँग में दुति-सम दमके |
प्रिये प्राण पर पाय, प्राण-प्रिय बुरी गती की |
मुट्ठी रखे दबोच, भयंकर श्रीमती की ||
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नैतिक शिक्षा पुस्तकें, सदाचार आधार |
महत्त्वपूर्ण इनसे अधिक, मात-पिता व्यवहार | मात-पिता व्यवहार, पुत्र को मिले बढ़ावा | पति-पत्नी तो व्यस्त, बाल मन बनता लावा | खेल वीडिओ गेम, जीत की हरदम इच्छा | मारो काटो घेर, करे क्या नैतिक शिक्षा || |
दुर्घटना के गर्भ में, गफलत के ही बीज |
कठिनाई में व्यर्थ ही, रहे स्वयं पर खीज | रहे स्वयं पर खीज, कठिन नारी का जीवन | मौका लेते ताड़, दोस्ती करते दुर्जन | कर रविकर नुक्सान, क्लेश देकर के हटना | इनसे रहो सचेत, टाल कर रख दुर्घटना || |
चुपड़ी ललचाती रहे, रुखा- सूखा खाव |
दरकिनार नैतिक वचन, बेशक नहीं मुटाव | बेशक नहीं मुटाव, चढ़ी चर्बी है भारी | डूब रही है नाव, ढेर काया बीमारी | है जीवन सन्देश, घुसा ले अपनी खुपड़ी | लगे हृदय पर ठेस, बुरी दिल खातिर चुपड़ी || |
तीर्थ-यात्रा का बना, मनभावन प्रोग्राम |
दादी सुमिरन में रमी, जय राधे घनश्याम |
जय राधे घनश्याम, चले मथुरा से काशी | दादी गई भुलाय, बाल-मन परम उदासी | पढ़ी दुर्दशा आज, भजन से मिलती रोटी | लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी || |
मात्र कल्पना से सिहर, जाती भावुक देह |
अब मसान की आग भी, जला सके ना नेह | जला सके ना नेह, गेह अब खाली खाली | तनिक नहीं संदेह, मोक्ष रविकर ने पाली | लेकिन एक सवाल, तुम्हारा मुझको ठगना | कैसे जाते छोड़, किया क्या कभी कल्पना ?? |
पगली है तो क्या हुआ, मांस देख कामांध ।
अपने तीर बुलाय के, तीर साधता सान्ध | तीर साधता सान्ध, बांधता जंजीरों से | घायल तन मन प्राण, करे जालिम तीरों से | गर्भवती हो जाय, ढूँढ़ता कुत्ता अगली | दुष्ट मस्त निर्द्वन्द, बिगाड़ेगी क्या पगली |
संसाधन सा जानिये, संयुत कुल परिवार |
गाढ़े में ठाढ़े मिलें, बिना लिए आभार |
बिना लिए आभार, कृपा की करते वृष्टी | दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी | सच्चे रिश्ते मुफ्त, हमेशा भला इरादा | रखे सकल परिवार, सदा अक्षुण मर्यादा | |
परिभाषित जीवन किया, दृष्टिकोण में दर्द ।
प्रेम तमन्ना कर्म पर, मजबूरी का गर्द । मजबूरी का गर्द , हुआ जीवन पर हावी ।
बंधी सांस की डोर, खींचता जीवन भावी ।
हुए अकेले राम, फिरें भटकें वन-वासित ।
मजबूरी का दंश, करे जीवन परिभाषित ।।
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दिल तो लल्लू है सखे, सगी हैं दोनों आँख |
चले फिसलता हर घरी, बुद्धि सिखाये लाख | बुद्धि सिखाये लाख, फफोले दिल के फोड़े | बाहर करे गुबार, किन्तु ना उनको छोड़े | रविकर कर विश्वास, हुआ है बड़ा निठल्लू | पल्लू की ले आस, घुमाता दिल तो लल्लू || |
गमला पौधा सुमन खुश, शुभ आँगन अन्यान्य |
संतानों के सृजन से, माँ का जीवन धन्य | माँ का जीवन धन्य, असंभव माँ विश्लेषण | दुग्ध रक्त तन दान, प्रेम-भावों का प्रेषण | बहुत बहुत आभार, नारियों पुरुष-पुरौधा | हे ममतामय नारि, खिला मन-गमला-पौधा || |
मरकर ज़िंदा
ज़िंदा मरकर हो रहे, है हिम्मत का काम |
डबल बहादुर हो सखे, बारम्बार सलाम | बारम्बार सलाम, करे कुछ लोग तगादा | बीबी ढूँढे काम, दोस्त दस बाढ़े ज्यादा | बेटा डबल सवार, ढूंढता नया परिंदा | ठीक-ठाक परिवार, करो क्या होकर ज़िंदा ?? |
जनता खड़ी निहारती, चाचा चाबुक तान |
हैं घोंघे को ठेलते, लें बाबा संज्ञान |
लें बाबा संज्ञान, रोल हम सभी सराहें |
संविधान निर्माण , भरे संसद क्यूँ आहें |
न कोई अपमान, विमोचन इस पुस्तक का |
ईस्वी सन उनचास, किये खुद नेहरु कब का || |
कार्टून
कार्टून में हैं रखे, नोट वोट के थाक |
जर-जमीन लाकर पड़े, है जमीर पर लाक | है जमीर पर लाक , नाक हर जगह घुसेंड़ें | बड़े बड़े चालाक, चलें लेकिन बन भेड़ें | रविकर रक्षक कौन, जहर जब भरा खून में | कार्टून नासमझ, भिड़े इक कार्टून में || |
गीत गा ले
बंजारा जारा गया, यायावर मर जाय |
अमर आत्मा उड़नछू, पञ्च तत्व बिलगाय | पञ्च तत्व बिलगाय, दिवारों ने भरमाया | गगन पवन छिति आग, नीर से बनती काया | नश्वर है घर देह, ख़ुशी से भोगे कारा | रहे नहीं संदेह, गीत गा ले बंजारा || |
टीका टिप्पण
टीका पर करते सटीक, टीका टिप्पण आप |
लोहा लोहे से कटे, कटे विकट संताप | कटे विकट संताप, सूक्ष्म विश्लेषण करते | नकारात्मक पक्ष, सावधानी भी धरते | टीका पर रख ध्यान, करे ना जीवन फीका | रविकर करे सचेत, समझ कर लेना टीका || |
गर्भवती हो जाय
पगली है तो क्या हुआ, मांस देख कामांध ।
अपने तीर बुलाय के, तीर साधता सान्ध | तीर साधता सान्ध, बांधता जंजीरों से | घायल तन मन प्राण, करे जालिम तीरों से | गर्भवती हो जाय, ढूँढ़ता कुत्ता अगली | दुष्ट मस्त निर्द्वन्द, करे उसका क्या पगली || |
सुख-शैया भाए कहाँ, विकट प्रेम जंजाल |
चलिए उत्तर खोजिये, सम्मुख कठिन सवाल | सम्मुख कठिन सवाल, भ्रूण में मरती बाला | बिगड़ रहे सुरताल, समय करता मुंह काला | करना ठीक समाज, पिता बाबा पति भैया |
रविकर नारी आज, पुन: छोड़ी सुख-शैया | ।
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जाते तन-कर खोखला, मन को खला विशेष ।
आभा-मंडल ले बना, धर बहुरुपिया वेश ।
धर बहुरुपिया वेश, गगरिया छलकत जाए ।
बण्डल-बाज भदेस, शान-शौकत दिखलाए ।
रविकर सज्जन वृन्द, कर्मरत हो मुस्काते ।
उपलब्धियां अनेक, किन्तु न छलकत जाते ।।
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मुँह देखे की दोस्ती , अक्सर जाए छूट |
मुँह-फट मुख-शठ की भला, कैसे रहे अटूट | कैसे रहे अटूट, द्वेष स्वारथ छल शंका | डालें झटपट फूट, बजाएं खुद का डंका | दोस्त नियामत एक, होय ईश्वर के लेखे | मिले जगत पर आय, खुशी होती मुंह देखे || |
जगत मस्त है कोकिला, बही सरस स्वर-धार |
साधुवाद हे सुहृद-जन, बार-बार आभार | बार-बार आभार, चाँद धरती पर आया | टूटे बंधन-रीत, प्यार से मीत मिलाया | रविकर था चैतन्य, गीत में हुआ व्यस्त है | कोटि कोटि परनाम, आज यह जगत मस्त है | |
सट्टा शेयर जुआं से, रह सकते हम दूर |
जीवन के कुछ दांव पर, कर देते मजबूर | कर देते मजबूर, खेलना ही पड़ता है | पौ बारह या हार, झेलना ही पड़ता है | पड़ता उलटा दांव, शाख पर लागे बट्टा | बने सिकंदर जीत, खेल के जीवन सट्टा || |
पापा=कीड़ा
उपज घटाता जा रहा, जहर कीट का बीट |
ज्वार-खेत को खा रहा, पापा नामक कीट |
पापा=ज्वार-बाजरा में लगने वाला एक कीड़ा, जो उपज नष्ट कर देता है ।
पापा नामक कीट, कीटनाशक से बचता |
सबसे ज्यादा ढीठ, सदा नंगा ही नचता | रविकर बड़ा महान, किन्तु मेरा जो पापा |
लेता पुत्र बचाय, गला बस पुत्री चापा ||
(व्याज-स्तुति )
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छडा / छड़ी
चलो एकला मन्त्र है, शक्तिमान भरपूर |
नवल-मनीषी शुभ-धवल, सक्रिय जन मंजूर | सक्रिय जन मंजूर, लोक-कल्याण ध्येय है | पर तनहा मजबूर, जगत में निपट हेय है | उत्तम किन्तु विचार, बने इक सुघड़ मेखला | सबका हो परिवार, चलो मत प्रिये एकला | |
दादुर
दद्दा दहलाओ नहीं, दादुर दिल कमजोर |
इक छोटे से कुँवें में, होता रहता बोर | होता रहता बोर, ताकता बाहर थोड़ा | सर्प ब्लॉग पर देख, भाग कर छुपे निगोड़ा | चंचल मन का चोर, कनखियाँ तनिक मारता | करता किन्तु 'विनाश', खेल तू चला भाड़ता || |
दुखी विज्ञानी
विज्ञानी सबसे दुखी, कुढ़ता सारी रात ।
हजम नहीं कर पा रहा, वह उल्लू की बात । वह उल्लू की बात, असलियत सब बेपर्दा ।
है उल्लू अलमस्त, दिमागी झाडे गर्दा ।
आनंदित अज्ञान, बहे ज्यों निर्मल पानी ।
बुद्धिमान इंसान, ख़ुशी ढूंढे विज्ञानी ।।
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पहली डेट
जामा पौधा प्यार का, पहला पहला प्यार ।
फूला नहीं समा रहा, तन जामा में यार ।
तन जामा में यार, घटा कैफे में नामा ।
मुझे पजामा बोल, करे जालिम हंगामा ।
रविकर पहली डेट, बना दी मुझको मामा ।
करे नया आखेट, भागती खींच पजामा ।।
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संवाददाता
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।
मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।
सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष, करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना = मिलावटी खबर
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हिन्दी चिट्ठाकारी में 'कोयल शास्त्र' की कोई जगह क्यों नहीं हैं ???
कोयल तो मर्मज्ञ है, सिक्स सेन्स संसेक्स |
ग्राफ सदा स्थिर रखे, खुद भी रहे रिलेक्स | खुद भी रहे रिलेक्स, शास्त्र पर जायज चर्चा | लेकिन पुरुष विचार, लगेगा कड़ुआ मिर्चा | रविकर यह प्रस्ताव, करे जो सेक्सी-सिम्बल | बने शास्त्र दमदार, लसे कौवे से कोयल || |
पच्चीसवीं साल-गिरह
बड़ी दुर्दशा है सखे, लेता लड्डू लील |
बढे पित्त कफ वात सब, तीन बरस गुड फील | तीन बरस गुड फील, उडाये खिल्ली बेजा | मांसाहारी चील, खाय उल्लू का भेजा | बीते बरस पचीस, कसे मजबूत शिकंजा | कर ले काम खबीस, चील नत मारे पंजा || |
चारु चढ़ावा बोल पर, बक्कुर देता लाभ ।
न हर्रे न फिटकरी, मस्त माल-मधु चाभ ।
मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण ।
कोई नहीं *प्रमाथ, धनिक खुद करे समर्पण । गुंडे गंडा बाँध, *सांध पर मारे धावा । पाले पोषे फ़ौज, चढ़े नित चारु चढ़ावा । *बलपूर्वक हरण । *लक्ष्य |
बड़ा कबाड़ी है खुदा, कितना जमा कबाड़ |
जिसकी कृपा से यहाँ, कचडा ढेर पहाड़ | कचडा ढेर पहाड़, नहीं निपटाना चाहे | खाय खेत को बाड़, बाड़ को बड़ा सराहे | करता सज्जन मुक्त, कबाड़ी बड़ा अनाड़ी | दुर्जन रिसाइकिलिंग, कर रहा बड़ा कबाड़ी || |
पाठ पढ़ाती पत्नियाँ, घरी घरी हर जाम |
बीबी हो गर शिक्षिका, घर में ही इक्जाम |
घर में ही इक्जाम, दृष्टि पैनी वो राखे |
गर्दन करदे जाम, जाम रविकर कस चाखे |
तीन-पांच पैंतीस, रात छत्तिस हो जाती | पति तेरह ना तीन, शिक्षिका पाठ पढ़ाती || 36 |
अंतर-मन से बतकही, होती रहती मौन ।
सिंहावलोकन कर सके, हो अतीत न गौण । हो अतीत न गौण, जांच करते नित रहिये ।
चले सदा सद्मार्ग, निरंतर बढ़ते रहिये ।
परखो हर बदलाव, मुहब्बत अपनेपन से ।
रहे अबाध बहाव, प्रेम-सर अंतर्मन से |
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बंधन काटे ना कटे, कट जाए दिन-रैन ।
विकट निराशा से भरे, आशा है बेचैन । आशा है बेचैन, बैन बाहर नहिं आये ।
न्योछावर सर्वस्व, बड़ी बगिया महकाए ।
फूलों को अवलोक, लोक में खुशबू -चन्दन ।
मनुवा मत कर शोक, मान ले रिश्ते बंधन ।।
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बढ़िया सामग्री अगर, खाद्य-खूद्य दिख जाय ।.
मन के चंचल बहुत से, टट्टू दौड़ लगाय ।. टट्टू दौड़ लगाय, हरे चश्मे को छोडो ।. इक लंबा सा बांस, सही तांगे में जोड़ो ।. बांस हरेरी टांग, सुंघा दो घोड़ा अड़िया ।. फिर ताकतवर टांग, दौड़ दौड़ेगा बढ़िया ।।. |
कुत्ते चोरों से मिलें, पहरा देगा कौन ।
कुत्ते कुत्ते ही पले, कुत्तुब ऊंचा भौन ।
कुत्तुब ऊंचा भौन, बड़े षड्यंत्र रचाते ।
बढ़िया पाचन तंत्र, आज घी शुद्ध पचाते ।
मूतें दिल्ली मगन, उगे खुब कुक्कुर मुत्ते ।
रख सौ दर्पण सदन, भौंक मर जइहैं कुत्ते ।
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