Wednesday, 30 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-4

अब-तक 
दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज  ने आत्म-हत्या करली ।
पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व  के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ ।।
कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -

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मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3


भाग-4

रावण, कौशल्या और दशरथ

दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|

 शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट  |
 फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |

युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
 
  
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों से हुवे,  पैदा किन्तु विकार ||

पाकर शिव-वरदान वो, पहुँचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||

ऐसा तो संभव नहीं, मन की गाँठे खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन,  काटेगा दस-माथ ||8||

 क्रोधित रावण काँपता, थर-थर बदन अपार |
प्राप्त अमरता 
मैं करूँ, कौशल्या को मार ||9||

चेताती  मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, जीवन
भर संताप ||10||

रावण के  निश्चर विकट,  पहुँचे  सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||

बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
आखेटक दशरथ निकट, सुनते शब्द-बवाल  ||12||

राक्षस-गण से 
जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
 भागे निश्चर हारकर,  नृप कूदे जल-धार ||13||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||

रक्तस्राव था हो रहा, भूपति थककर चूर |
पड़ी जटायू  की नजर,  करे मदद भरपूर  ||16||

 दशरथ मूर्छित हो गए, घायल फूट शरीर |
पत्र-पुष्प-जड़-छाल से, हरे जटायू  पीर ||17||

भूपति आये होश में, असर किया संलेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||

बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||

नारद जी भवितव्य का, रखते  पूरा ध्यान ।
दोनों को उपदेश दे,  दूर करें अज्ञान ।|

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||

नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, भावी  कड़ी पिरोय ||

अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||

दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 

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Tuesday, 29 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता

अब-तक 

दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज  ने आत्म-हत्या करली ।

पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व  के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ ।।

कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -

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मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3

दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 


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Sunday, 27 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3

सर्ग-1
भाग-3
कौशल्या-दशरथ  
कुंडली  
 दुख की घड़ियाँ सब गिनें, घड़ी-घड़ी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चाक गतिमान, मिलाये सुख की कड़ियाँ ।
मान ईश का खेल, बिता ले दुख की घड़ियाँ ।। 



क्रियाकर्म विधिवत हुआ, तेरह-दिन का शोक ।
आसमान शिशु ताकता, खाली महल बिलोक ||13||  

आँसू  बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|

पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 विकट समय में पालती, माता सम अविराम ||15||
 
 महामंत्री सुमंत को, गुरू बुलावें पास |
लालन-पालन की करें, वही व्यवस्था ख़ास ||16||

महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा से ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||

जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
बढ़े पुष्टता दुग्ध से, भ्रातृ-भाव पैगाम ||18||

 कामधेनु की कृपा से, होती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, थी आश्रम की नूर ||19||
 
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||20||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना से अति-दुखी, राजा-रानी सर्व ||21||

अवधपुरी आने लगे, प्राय: कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती जनता नाज ||22||


राजकुमारी वर्षिणी, रानी भी हो संग ।  
 करते सब कोशिश सफल, भरे अवध नवरंग ।23। 

धीरे-धीरे बीतता, दुख से बोझिल काल |
राजकुँवर भूले व्यथा, बीत गया वह साल |24|

दूध नंदिनी का पिया, अन्नप्राशनी-पर्व |
आश्रम से वापस हुए, आनंदित हों सर्व |25|

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान |26|

उत्तर कोशल झूमता, नव कन्या मुसकाय |
पिता बने भूपति पुन:, फूले नहीं समाय |27|

  बच्चों को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर |28|

कन्या कौशल्या हुई,  दशरथ राजकुमार  |  
 नामकरण उत्सव हुवे,  धरते गुण अनुसार |29।

विधिवत शिक्षा के लिए, फिर से राजकुमार |
कुछ वर्षों के बाद ही, गए गुरू-आगार |30|

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान|
दसों दिशा रथ  हाँकले, बने अवध की शान |31|

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय |32|  



राजतिलक विधिवत हुआ, आये कौशल-राज |
राजकुमारी साथ में, हर्षित सकल समाज |33| 

बचपन का वो खेलना,  छीना झपटी स्वाँग   |
इक दूजे को स्वयं से, मन ही मन लें माँग ।34।

दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 


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मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2



सर्ग-1

भाग-2
 दशरथ बाल-कथा --
  दोहा 
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||
घनाक्षरी 

  दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर 
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि भव्य  निहारूं अंशु सूर्य की -
रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है |
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||

गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया दरबार ||2||

क्रीड़ा सह खिलवाड़ ही, परम सौख्य परितोष |
सुन्दरता पागल करे, मन-मानव मदहोश ||3||

अति सबकी हरदम बुरी, खान-पान-अभिसार |
क्रोध-प्यार बड़-बोल से,  जाय जिंदगी हार ||4||  

झूले  मुग्धा  नायिका, राजा  मारे  पेंग |
वेणी लागे वारुणी,  रही दिखाती  ठेंग ||5||

राज-वाटिका  में  रमे, चार पहर से आय |
तीन-मास के पुत्र को, धाय रही बहलाय ||6||

नारायण-नारायणा,  नारद निधड़क नाद |
अवधपुरी के गगन पर, स्वर्गलोक संवाद ||7||
 
वीणा से माला सरक, सर पर गिरती आय ।
 इंदुमती वो अप्सरा, जान हकीकत जाय ।।8||

 
एक पाप का त्रास वो, यहाँ रही थी भोग |
स्वर्ग-लोक नारी गई, अज को परम वियोग ||9||

माँ का पावन रूप भी, उसे सका ना रोक |
तीन मास के लाल को, छोड़ गई इह-लोक ||10|| 
 
विरह वियोगी जा महल, कदम उठाया गूढ़ |
भूल पुत्र को कर लिया, आत्मघात वह मूढ़ ||11|

कुण्डली 
 (1)
उदासीनता की तरफ, बढ़ते जाते पैर ।
रोको रविकर रोक लो,  जीवन से क्या बैर ।   
जीवन से क्या बैर, व्यर्थ ही  जीवन त्यागा ।
किया पुत्र को गैर,  करे क्या पुत्र  अभागा  ?
दर्द हार गम जीत,  व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो जग छोड़ उदासी ।।
 दोहा 

प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े, करे व्यर्थ तकरार ||
 कुण्डली 

मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत मत हार ।
 कायर भागे कर्म से, होय नहीं उद्धार । 
होय नहीं उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें ।
 बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।
फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से । 
 जियो लोक हित मित्र, मिले नहिं कुछ मरने से ।   

माता की ममता छली, करता पिता अनाथ |
रोय-रोय शिशु हारता, पटक-पटक के माथ ||12||


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 


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Friday, 25 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
वरिष्ठ तकनीकी सहायक
इंडियन स्कूल ऑफ़ माइंस
धनबाद झारखण्ड

पिता:  स्व. सेठ लल्लूराम जी गुप्ता
माता : स्व. मुन्नी देवी

धर्म-पत्नी : श्रीमती सीमा गुप्ता
सुपुत्र : कुमार शिवा ( सहायक प्रबंधक , TCIL,  नई  दिल्ली  )
सुपुत्री : 1. मनु गुप्ता (ASE, TCS लखनऊ )
2. स्वस्ति-मेधा ( B Tech केमिकल इंजी )
(ग्रीन वैली -शिमला -कुफरी )
जन्म स्थान : पटरंगा मंडी  जिला फैजाबाद  उत्तर प्रदेश
जन्म तिथि : 15 अगस्त 1960

   

 कुंडली 
रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह ।
 
कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी ।

शांता का दृष्टांत, मिले नहिं अन्तर्यामी ।
 
बहन राम की श्रेष्ठ, उपेक्षित त्रेता द्वापर ।
रचवा दो शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर ।

( नीमटर=किसी विद्या को कम जानने वाला 
नीमर=कमजोर ) 
सर्ग-1
भाग-1 
अयोध्या  
Om
सोरठा 

वन्दऊँ पूज्य गणेश, एकदंत हे गजबदन  |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||

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वन्दौं गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़-मति,
गुन-गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||

गोधन-गोठ प्रणाम, कल्प-वृक्ष गौ-नंदिनी |
गोकुल चारो धाम, गोवर्धन-गिरि पूजता ||3||

वेद-काल का साथ, गंगा सिन्धु सरस्वती |
ईरानी हेराथ, है सरयू समकालिनी ||4||

राम-भक्त हनुमान,  सदा विराजे अवधपुर |
सरयू होय नहान, मोक्ष मिले अघकृत तरे ||5||

 करनाली का स्रोत्र, मानसरोवर अति-निकट |
करते जप-तप होत्र, महामनस्वी विचरते ||6||

क्रियाशक्ति भरपूर, पावन भू की वन्दना |
राम भक्ति में चूर, मोक्ष प्राप्त कर लो यहाँ ||7||

सरयू अवध प्रदेश, दक्षिण दिश में बस रहा |
हरि-हर ब्रह्म सँदेश, स्वर्ग सरीखा दिव्यतम ||8||

पूज्य अयुध  भूपाल, रामचंद्र के पित्र-गण |
गए नींव थे डाल, बसी अयोध्या पावनी ।। 9।।

दोहा 

शुक्ल पक्ष की तिथि नवम, पावन कातिक मास |
होय नगर की परिक्रमा, मन श्रद्धा-विश्वास ||

मर्यादा आदर्श गुण, अपने हृदय उतार |
राम-लखन के सामने, लम्बी लगे कतार |।

  पुरुषोत्तम सरयू उतर, होते अंतर्ध्यान |
त्रेता युग का अवध तब, हुआ पूर्ण वीरान |।

 सद्प्रयास कुश ने किया, बसी अयोध्या वाह |
 सदगृहस्थ वापस चले, पुन: अवध की राह |।

 कृष्ण रुक्मणी अवध में, आये द्वापर काल |
पुरुषोत्तम के चरण में, गये सुमन शुभ डाल ||

कलयुग में सँवरी पुन:, नगरी अवध महान |
वीर विक्रमादित्य से, बढ़ी नगर की शान ||

देवालय फिर से बने, बने सरोवर कूप |
स्वर्ग सरीखा सज रहा, अवध नगर का रूप ||


सोरठा  


माया मथुरा साथ, काशी काँची द्वारिका |
महामोक्ष का पाथ, अवंतिका शुभ अवधपुर ||10||

अंतरभूमि  प्रवाह, सरयू सरसर वायु सी
संगम तट निर्वाह,  पूज घाघरा शारदा ||11||

पुरखों का इत वास, तीन कोस बस दूर है |
बचपन में ली साँस, यहीं किनारे खेलता ||12||

परिकरमा श्री धाम, हर फागुन में हो रहा ।
पटरंगा मम-ग्राम, चौरासी कोसी  परिधि ||13||

थे दशरथ महराज, उन्तालिस निज वंश के |
रथ दुर्लभ अंदाज, दशों दिशा में हांक लें ||14||

पिता-श्रेष्ठ 'अज' भूप, असमय स्वर्ग सिधारते |
 निकृष्ट कथा कुरूप, मातु-पिता चेतो सुजन  ||15||
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Thursday, 24 January 2013

हिमायती कम्युनिष्ट, बने कांग्रेसी ढर्रा-


देवि महाश्वेता नमन, नक्सल को अधिकार ।
स्वप्न देखने का मिला, उठा हाथ हथियार ।

उठा हाथ हथियार, पेट की खातिर उद्यम ।
चीर लाश का पेट, प्लांट कर देते हैं बम ।

हिमायती कम्युनिष्ट, बने कांग्रेसी ढर्रा ।
 आतंकी खुश होंय, सुनो शिंदे का *चर्रा ।
*चुटीली बातें 

गुड़ गुड़-कर के गुड़गुड़ी, गाय गुड़करी राग -

 पूर्ति करे या न करे, लगे चदरिया  दाग ।
  गुड़ गुड़-कर के गुड़गुड़ी, गाय गुड़करी राग ।
 गाय गुड़करी राग, मगर अब भी ना जागे ।
आय आयकर टीम, बोल-बम उन पर दागे ।
खटिया करके खड़ी, गया भाजप का बन्दा ।
बढ़ी और भी अकड़, व्यर्थ धमकाए गन्दा ।।

 पूर्वी भारत में चले, नक्सल सिक्का मित्र ।
करें चिरौरी पार्टी, हालत बड़ी विचित्र ।

हालत बड़ी विचित्र, जीतना अगर इलेक्शन ।
सींचो नक्सल मूल,  करो इनसे गठबंधन ।

सत्ता सीखे पाठ, करे आतंकी को खुश ।
सांठ-गाँठ आरोप, लगा भाजप पर दुर्धुष ।।  

है मुश्किल में जान, बयानी जान-बूझकर -

शिंदे फंदे में फंसे, नाखुश हाइ-कमान |
निकला-तीर कमान से, है मुश्किल में जान |

है मुश्किल में जान, बयानी जान-बूझकर |
कई मर्तबा झूठ, करे गुल बिजली रविकर |

करते रहते बीट, विदेशी ढीठ परिंदे |
लगता वो तो मीठ, बुरे लगते बाशिंदे ||

Tuesday, 22 January 2013

गडके-करी समेत धन, पता पता नहिं मित्र-

पैना पड़ता पीठ पर , लेकिन चमड़ी मोट ।
दमड़ी दमड़ी लुट गई, सहता रहता चोट ।
फोटो खिंचा रहा अनशन में ।
 

पैनापन तलवार सा, कैंची कतरे कान ।
सुन लो बात वजीर की, होता जो हैरान-
आग लगे उस नश्वर तन में ।।

बा-शिंदे चाहे मरें,  कांगरेस परिवार ।
अव्वल रहते रेस में, शत्रु दलों को मार -
यही इण्डिया, रहें वतन में ।।

गडके-करी समेत धन, पता पता नहिं मित्र ।
छापे पड़ने लगे जब, हालत हुई विचित्र -
बदल गया निर्णय फिर क्षण में ।।

बाप-पूत अन्दर गए, शिक्षक आये याद ।
दो दो मिल सोलह करे, शिक्षा हो बरबाद -
हरियाणा में किस्सा जन्में ।।


खांटी दीदी गिरी है, रहे मौन सरदार-


Full Text: Mamata Banerjee's victory speech

खांटी दीदी गिरी है,  रहे मौन सरदार |
वाजिब हक़ की मांग भी, दे सरदार नकार |

दे सरदार नकार, हुई वो आग-बबूली |
गर बैठूं मैं मार, कहो गुंडा मामूली  |

इसीलिए लो झेल, मरे माँ मानुष-माटी |
रेल तेल का खेल, कहे दीदी यह *खांटी ||

*विशुद्ध


तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान-


 तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो  रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।। 

 

Monday, 21 January 2013

बोल अब तो-बा-शिंदे-रविकर




बाशिंदे अतिशय सरल, धरम-करम से काम  ।
सरल हृदय अपना बना,  देखे उनमें राम ।

 देखे उनमें राम, नम्रता नहीं दीनता ।
दीन धर्म ईमान, किसी का नहीं छीनता ।

पाले हिन्दुस्थान,  युगों से जीव-परिंदे ।
यह सभ्यता महान, बोल अब तो-बा-शिंदे ।।


 तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान ।
काबुल में विस्फोट कर, डाला फिर व्यवधान ।
डाला फिर व्यवधान, यही क्या यहाँ हो रहा ?
होता भी है अगर, वजीरी व्यर्थ ढो  रहा ।
फूट व्यर्थ बक्कार, इन्हें चुनवा दे जिन्दे ।
होवे खुश अफगान, पाक के तो बाशिंदे ।। 







Sunday, 20 January 2013

सोये आतंकी पड़े, छाये भाजप संघ-

सोये आतंकी पड़े, छाये भाजप संघ |
आरोपी तैयार है, आओ सीमा लंघ ||
जैसे मन वैसे संहारो ||

 पेट फटे नक्सल लटे, डटे बढे उन्माद  |
गले कटे भारत बटे, लो आंसू पर दाद |
खाली कुर्सी चलो पधारो ||

बढती मँहगाई गई, गाई गई प्रशस्ति |
मौतें होतीं भूख से, बने स्वयंभू स्वस्ति |
बनो सहारा नारों ना रो ||

डीजल भी जलने लगा, लगी रेल में आग |
वाह वाह अपनी करे, काँव काँव कर काग |
सावधान हो जाव शिकारों ||

चालीसवां दामिनी का, निकले आंसू आज |
कैसा यह चिंतन सखे, आस्कर इन्हें नवाज |
चालू है नौटंकी यारो ||


Saturday, 19 January 2013

अब चिंतन दरबार, बिलौटे खातिर चिंतित -



मिली मुबारकवाद मकु, मणि शंकर अय्यार ।
शिंदे फर्द-बयान से, जाते पलटी मार ।
जाते पलटी मार , भतीजा होता है खुश।
नकारात्मक वार, कभी हो जाता दुर्धुष । 
हिन्दु-वाद-आतंक, शब्द लगते हैं मारक ।
हर्षित फूंके शंख, मित्र से मिली मुबारक ।।


मणि-मस्तक शंकर चढ़े, अयप्पा के द्वार ।
कुत्ते बिल्ली से लड़ें, बागडोर सरकार ।

बागडोर सरकार, मगर कुत्ते हैं हारे ।
 म्याऊँ बारम्बार, जीत करके हुंकारे ।

अब चिंतन दरबार, बिलौटे खातिर चिंतित ।
करे आर या पार, शक्ति म्याऊँ अभिसिंचित ।।