Friday, 12 December 2014

ख़ुशी ख़ुशी ख़ुदकुशी कर, खतम खलल खटराग

मर कर पाये मोक्ष तू, बचने पर बेदाग़ |
ख़ुशी ख़ुशी ख़ुदकुशी कर, खतम खलल खटराग | 

खतम खलल खटराग, नहीं अपराध ख़ुदकुशी |
जा झंझट से भाग, असंभव जहाँ वापसी |

जो रविकर कविराय, समस्या से भग जाए |
वह भोगेगा नर्क,  शान्ति ना मरकर पाये || 

Tuesday, 9 September 2014

तुर्क-युवक नादान, बंद कर पत्थरबाजी-

बाजीगर सैनिक डटे, मौत सामने ठाढ़ |
ग्राम नगर कश्मीर के, झेल रहे हैं बाढ़ |

झेल रहे हैं बाढ़, देश राहत पहुँचाया |
फौजी रहे बचाय, सामने जो भी आया |

फ़ौजी का सम्मान, करो रे मुल्ला-काजी |
तुर्क-युवक नादान, बंद कर पत्थरबाजी ||

Monday, 8 September 2014

सतलुज रावी व्यास, सिंधु झेलम को झेलें-


घाटी की माटी बही, प्राणांतक सैलाब |
कुछ भी ना बाकी बचा, कश्मीरी बेताब |

कश्मीरी बेताब, जान पर फौजी खेलें |
सतलुज रावी व्यास, सिंधु झेलम को झेलें |

राहत और बचाव, रात बिन सोये काटी |
फौजी सच्चे दोस्त, समझ ना पाये घाटी ||

Indian army soldiers load onto a helicopter relief material for flood victims at an air force base in Srinagar. (AP Photo)

Saturday, 6 September 2014

धर्म-भीरु इस हेतु, डरे प्रभु से यह पगला-

 भला भयातुर भी कहीं, कर सकता अपराध । 
इसीलिए तो चाहिए,  भय-कारक इक-आध । 

भय-कारक इक-आध, शिकारी खा ना पाये । 
चलता रहे अबाध, शांतिप्रिय जगत बनाये । 

धर्म-भीरु इस हेतु, डरे प्रभु से यह पगला । 
सँभला जीवन-वेग, आचरण सँभला सँभला । 

Tuesday, 12 August 2014

गए गोद में बैठ, मंच पर बैठे सटकर--

गाली देते ही रहे, बीस साल तक धूर्त |
अब गलबहियाँ डालते, सत्ता-सुख आमूर्त |

सत्ता-सुख आमूर्त, देखिये प्यार परस्पर |
गए गोद में बैठ, मंच पर बैठे सटकर |

यह कोसी की बाढ़, इकट्ठा हुवे बवाली |
एक नाँद पर ठाढ़, करें दो जीव जुगाली ||

Saturday, 19 July 2014

आलोचक चक चक दिखे, सत्ता से नाराज-

आदरणीय!! व्याकरण की दृष्टि से क्या 
यह कुण्डलियाँ छंद खरा उतरता है ?? 

आलोचक चक चक दिखे, सत्ता से नाराज । 
अच्छे दिन आये कहाँ, कहें मिटायें खाज । 

कहें मिटायें खाज, नाज लेखन पर अपने। 
रखता धैर्य समाज, किन्तु वे लगे तड़पने । 

बदलोगे क्या भाग्य ? मित्र मत उत्तर टालो । 
कर दे यह तो त्याग, अन्य का भाग्य सँभालो ॥ 

Monday, 14 July 2014

साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना -

ताना-बाना बिगड़ता, ताना मारे तन्त्र । 
भाग्य नहीं पर सँवरता,  फूंकें लाखों मन्त्र । 

फूंकें लाखों मन्त्र, नीयत में खोट हमारे । 
खुद को मान स्वतंत्र, निरंकुश होते सारे । 

साधे रविकर स्वार्थ, बंद ना करे सताना । 
कुल उपाय बेकार, नए कुछ और बताना ॥ 

Wednesday, 9 July 2014

रविकर मत कर होड़, मचेगी अफरा-तफरी

फ़री फ़री मारा किये, किया किये तफ़रीह । 
-परजीवी पीते रहे, दारु-रक्त पय-पीह। 

दारु-रक्त पय-पीह, नहीं चिंता कुदरत की। 
केवल भोग विलास, आत्मा भटकी भटकी । 

आगे अन्धा-मोड़, गली सँकरी अति सँकरी । 
रविकर मत कर होड़, मचेगी अफरा-तफरी ॥ 

Tuesday, 1 July 2014

कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े-

(1)
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग । 
मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग । 

देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी । 
कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी । 

कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े । 
कहीं चाल अश्लील, कहीं पर छोटे कपड़े ॥
(2)

पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |


ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना । 
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना । 

मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े । 
 पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥ 

Saturday, 28 June 2014

सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई-

पुरानी रचना 
पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई |
थाम नाव पतवार,  जमा कर पाई पाई  ||

लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर,  दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता । 
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने । 
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥ 



Thursday, 26 June 2014

बैठा जाये दिल मुआ, कैसे बैठा जाय-

बैठा जाये दिल मुआ, कैसे बैठा जाय |
उठो चलो आगे बढ़ो, अब आलस ना भाय |

अब आलस ना भाय, अगर सुरसा मुँह बाई |
झट राई बन जाय, ताक मत राह पराई |

उद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
धरे हाथ पर हाथ, नहीं अब बैठा जाये ||

Saturday, 7 June 2014

कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये--

थाने में उत्कोच दे, कोंच कोंच करवाल । 
तन मन नोंच खरोच के, दे दरिया में डाल । 

दे दरिया में डाल, बड़े अच्छे दिन आये । 
कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये। 

रवि कर मत संकोच, पड़े सैकड़ों बहाने । 
व्यस्त आज-कल कृष्ण, नहीं कालिया नथाने ॥  

Thursday, 6 March 2014

भूले भ्रष्टाचार, भूल जाते मँहगाई-

बातें करते हवा से, हवा हुई सरकार |
हवा-हवाई घोषणा, भूले भ्रष्टाचार |

भूले भ्रष्टाचार, भूल जाते मँहगाई |
करने लगे प्रचार, उन्हीं सेक्युलर की नाई |

पानी पी पी कोस, होंय खुश कई जमातें |
देखो अपने दोष, बनाओ यूँ ना बातें ||

दोहा 

धरना देने जो गए, आव रही ना ताव |

टोपी धरना जेब में, डूब रही है नाव ||

Tuesday, 25 February 2014

करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये-

कड़े बयानों के लिए, चुलबुल करती दाढ़ |
छोड़ केकड़े को पड़ा, मकड़े पीछे साँढ़ |

मकड़े पीछे सांढ़ ,जाल मकड़ा फैलाये |
करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये |

किन्तु बचे नौ बैल, चार मकड़े ने जकड़े |
मारे मन का मैल, मरे तू भी ऐ मकड़े ||

दे *दिल्ले में आग, बिगाड़े आप रतालू -

तालू से लगती नहीं, जिभ्या क्यूँ महराज |
हरदिन पलटी मारते,  झूँठों के सरताज  |

झूँठों के सरताज, रहे सर ताज सजाये |
एकमात्र  ईमान, किन्तु दुर्गुण सब आये |

मिर्च-मसाला झोंक, पकाई सब्जी चालू ।
दे *दिल्ले में आग, बिगाड़े आप रतालू ॥

*किवाड़ के पीछे लगा  लकड़ी का चौकोर खूँटा

मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज-

चिड़ियाघर कायल हुआ, बदल गया अंदाज । 
मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज । 

बाजीगर सर-ताज, बाज गलती से आये । 
लेकिन गिद्ध समाज, बाज को गलत बताये । 

कौआ इक चालाक, बाँट-ईमानी पुड़िया । 
मिस-मैनेज कर काम, रोज भड़काए चिड़िया ॥ 

Sunday, 23 February 2014

राजनीति की मार, बगावत को उकसाए

पाना-वाना कुछ नहीं, फिर भी करें प्रचार |
ताना-बाना टूटता, जनता करे पुकार |

जनता करे पुकार, गरीबी उन्हें मिटाये  |
राजनीति की मार, बगावत को उकसाए |

आये थे जो आप, मिला था एक बहाना |
किन्तु भगोड़ा भाग, नहीं अब माथ खपाना ||

साही की शह-मात से, है'रानी में भेड़ |
खों खों खों भालू करे, दे गीदड़ भी छेड़ |

दे गीदड़ भी छेड़, ताकती ती'जी ताकत |
हाथी बन्दर ऊंट, करे हरबार हिमाकत |

अब निरीह मिमियान, नहीं इस बार कराही |
की काँटों से प्यार, सवारी देखे साही ||

Friday, 21 February 2014

ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी-

दखलंदाजी खेल में, करती खेल-खराब |
खले खिलाड़ी कोच को, लेकिन नहीं जवाब |

लेकिन नहीं जवाब, प्रशासक नेता हॉबी |
हॉबी सट्टेबाज, पूँछ कुत्तों की दाबी |

ताकें दर्शक मूर्ख, हारते रविकर बाजी |
बड़ी व्यस्त सरकार, करे क्यूँ दखलंदाजी --

Wednesday, 19 February 2014

दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे-

खरी खरी कह हर घरी, खूब जमाया धाक |
अपना मतलब गाँठ के, किया कलेजा चाक |

किया कलेजा चाक, देश भर में अब घूमे |
दिल्ली दिखी अवाक, आप मस्ती में झूमे |

डाल गए मझधार, धोय साबुन से कथरी |
मत मतलब मतवार, महज कर रहे मसखरी || 

Tuesday, 18 February 2014

अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी

(१)
खाँसी की खिल्ली उड़े, खीस काढ़ते आप |
खुन्नस में मफलर कसे, गया रास्ता नाप |

गया रास्ता नाप, नाव मझधार डुबाये |
सहा सर्द-संताप, गर्म लू जल्दी आये |

अब चुनाव आसन्न, व्यस्त फिर भारतवासी |
जन-गण दिखें प्रसन्न, हुई संक्रामक खाँसी॥ 

Monday, 20 January 2014

भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत-

भारत का भुरता बना, खाया खूब अघाय |
भरुवा अब तलने लगे, सत्तारी सौताय |

सत्तारी सौताय, दलाली दूजा खाये |
आम आदमी बोल, बोल करके उकसाए |

इज्जत रहा उतार, कभी जन-गण धिक्कारत  |
भागे जिम्मेदार, अराजक दीखे भारत ||


अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग-

अंतर-तह तहरीर है, चौक-चाक में आग |
रविकर सर पर पैर रख, भाग सके तो भाग |

भाग सके तो भाग, जमुन-जल नाग-कालिया |
लिया दिया ना बाल, बटोरे किन्तु तालियां |

दिखे अराजक घोर, काहिरा जैसा जंतर |
होवे ढोर बटोर, आप में कैसा अंतर || 

Sunday, 19 January 2014

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द-


"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-34

दोहा

दारु दाराधीन पी, हुआ नदारद मर्द  |
दारा दारमदार ले, मर्दे गिट्टी गर्द ||

कंकरेत कंकर रहित, काष्ठ विहीन कुदाल |
बिन भार्या के भवन सम, मन में सदा मलाल ||

अड़ा खड़ा मुखड़ा जड़ा, उखड़ा धड़ा मलीन |
लीन कर्म में उद्यमी, कभी दिखे ना दीन ||

*कृतिकर-शेखी शैल सी, सज्जन-पथ अवरुद्ध |
करे कोटिश: गिट्टियां, हो *षोडशभुज क्रुद्ध ||

दाराधीन=स्त्री के वशीभूत
कृतिकर=बीस भुजा वाला


षोडशभुज=सोलह भुजाओं वाली

*बोड़ा निगले जिंदगी, हिंदी हुई अनाथ-


चिंदी-चिंदी तन-बदन, पांच मरे इक साथ । 
*बोड़ा निगले जिंदगी, हिंदी हुई अनाथ ॥ 
*अजगर 

हिंदी हुई अनाथ, असम-पथ ऊबड़-खाबड़ । 
है सत्ता कमजोर, धूर्त आतंकी धाकड़ । 

हिंदी-भाषी पाय, बना माथे पर बिंदी । 
अपने रहे निकाल, यहाँ हिंदी की चिंदी ।।  

Friday, 17 January 2014

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास-

सपने नयनों में पले, वाणी में अरदास |
बुद्धि बनाये योजना, करे कर्म तनु ख़ास |

करे कर्म तनु ख़ास, पूर्ण विश्वास भरा हो |
शत-प्रतिशत उद्योग, भाग्य को तनिक सराहो |

पाय सफलता व्यक्ति, लक्ष्य पा जाये अपने |
रविकर इच्छा-शक्ति, पूर्ण कर देती सपने ||

Thursday, 16 January 2014

बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा-

लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |

है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |

गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||

आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया-

भन्नाता बिन्नी दिखा, सुस्ताता अरविन्द |
उकसाता योगेन्द जब, उकताता यह हिन्द |

उकताता यह हिन्द, मुफ्तखोरों की दुनिया |
आये सज्जन वृन्द, किन्तु लुट जाती मुनिया |

दीन-हीन सरकार, विपक्षी है चौकन्ना |
टपकाए नित लार, जाय रविकर जी भन्ना ||

Tuesday, 14 January 2014

भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी-

खिले खिले बच्चे मिले, रहे खिलखिला रोज । 
बुझे-बुझे माँ-बाप पर, रहे मदर'सा खोज । 

रहे मदरसा खोज, घूस की दुनिया आदी। 
भावी रहे सुधार, शहर ला दादा-दादी। 

पैतृक घर दे बेंच, आय उपयुक्त राशि ले ।  
करे सुरक्षित सीट, आज यूँ मिलें दाखिले ॥ 

Monday, 13 January 2014

रविकर ले हित-साध, आप मत डर खतरे से-

खतरे से खिलवाड़ पर, कारण दिखे अनेक |
थूक थूक कर चाटना, घुटने देना टेक |

घुटने देना टेक, अगर हो जाए हमला |
होवे आप शहीद, जुबाँ पर जालिम जुमला |

भाजप का अपराध, उसी पर कालिख लेसे |
रविकर ले हित-साध, आप मत डर खतरे से ||

Saturday, 11 January 2014

है चोटी में खोट, करे चिंता क्यूँ भारत-


भारत बांगला-देश में, बहुत बड़ा है फर्क |
यहाँ स्वर्ग इनके लिए, वहाँ बनाया नर्क |

वहाँ बनाया नर्क, अल्पसंख्यक आबादी |
करते नहीं कुतर्क, यहाँ हैं अम्मा दादी |

कई नरक से भाग, हजारों स्वर्ग-सिधारत |
है चोटी में खोट, करे चिंता क्यूँ भारत ||

चुनावों के बाद बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यको पर
लगातार हमले हो रहे हैं लेकिन इससे सेक्युलर
मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता ।

Friday, 10 January 2014

जाय भाड़ में देश, भाड़ में जाए दिल्ली-

मुफ़्तखोर है इस देश कि जनता

ZEAL 
 ZEAL
दिल्ली की सरकार में, पी एम् केजरिवाल |
गृहमंत्री भूषण बने, ले कश्मीर सँभाल |

ले कश्मीर सँभाल, जैन की क्रान्ति गुलाबी |
राखी का कल्याण, गला बच्चे का दाबी |

जुड़े आप से लोग, तोड़ती छींका बिल्ली |
जाय भाड़ में देश, भाड़ में जाए दिल्ली ||


(1)
लोकसभा में आपकी, आई सीट पचास |
लगे पलीता ख़्वाब में, टूटे भाजप आस |

टूटे भाजप आस, विपक्षी मौका ताड़े |
आप छुवे आकास, खेल मोदी का भाड़े |

माना अनुभवहीन, मीडिया लेकिन थामे |
कर दे सत्तासीन, त्रिशंकुल लोकसभा में ||

09 DECEMBER, 2013


कुंडलियां 

लेना देना जब नहीं, करे तंत्र को बांस |
लोकसभा में आप की, मानो सीट पचास |

मानो सीट पचास,  इलेक्शन होय दुबारे |
करके अरबों नाश, आम पब्लिक को मारे |

अड़ियल टट्टू आप, अकेले नैया खेना |
सबको माने चोर, समर्थन ले ना दे ना ||

Wednesday, 8 January 2014

पड़े शीत की मार, आप ही मालिक मेरे-


रैन बसेरे में बसे, मिले नहीं पर आप |
आम मिला इमली मिली, रहे अभी तक काँप |

रहे अभी तक काँप, रात थी बड़ी भयानक |
होते वायदे झूठ, गलत लिख गया कथानक |

पड़े शीत की मार, आप ही मालिक मेरे  |
तनिक दीजिये ध्यान, सुधारें रैन बसेरे ||

रविकर लंगड़ी मार, ख़िलाड़ी नहीं गिराओ -

कुछ पॉलिटिकल  
(१)
आओ जब मैदान में, समझ बूझ हालात |
मजे मजे मजमा जमे, जमघट जबर जमात |
जमघट जबर जमात, आप करिये तैयारी |
क़ाबलियत कर सिद्ध,  निभाओ जिम्मेदारी |
रविकर लंगड़ी मार, ख़िलाड़ी नहीं गिराओ |
अहंकार व्यवहार, बाज बड़बोले आओ ||

(२)
बहना बह ना भाव में, हवा बहे प्रतिकूल |
दिग्गज अपने दाँव में, दिखे झोंकते धूल |
दिखे झोंकते धूल, आँख में भरकर पानी |
तोड़े कई उसूल, किये अब तक मनमानी |
ले राहुल आलम्ब, सदा सत्ता में रहना |
दिखलाते नित दम्भ, संभलना छोटी बहना -

Friday, 3 January 2014

परिवर्तन का दौर, काल की घूमी चकरी-

फरी फरी मारा किया, घरी घरी हड़काय । 
मरी मरी जनता रही, दपु-दबंग मुस्काय । 

दपु-दबंग मुस्काय, साधु को रहा सालता। 
लेकिन लगती हाय, साल यह बला टालता । 

परिवर्तन का दौर, काल की घूमी चकरी । 
अब जनता सिरमौर, कालिका जमकर बिफरी ॥