सारी धरती एक सी, रविकर हमें दिखाय ||
दो ईंटों को पास रख, ऐसा दिया सजाय |
बैठे उटकुरुवा वहाँ, असली खुड्डी पाय ||
"खुद-की"
मामा के घर था गया, छुक-छुक गाडी बैठ |
आपन हाथ लगाय ले, मामी बोली ऐंठ ||
लौटत में फिर हो गया, रविकर पेट ख़राब |
मीठा कम नमकीन जल, पिए बहुत से डाब ||
कई दिनों के बाद में, रुके थे मेरे दस्त |
करते करते था हुआ, बुरी तरह से पस्त ||
फूफा के घर शहर में, मुश्किल पड़ी अजीब |
आफत में थी जान जब, नाली दिखी करीब ||
"टट्टी"
अगले दिन फुफ्फी कही, घर की टट्टी देख |
उधर कमाने के लिए, आती काकी नेक ||
भरता कोई है इधर , करता कोई और |
चार- दिनन के बाद ही, छोड़ चले वो ठौर ||
रिश्तों की पूंजी जमा, मनुआ धीरे खर्च |
एक-एक को ध्यान से, ख़ुशी-ख़ुशी संवर्त ||
"मैदान"
बाबा की आँखे हुईं, थोड़ी और ख़राब |
मुझको ड्यूटी दे हटे, मेरे भाई -साब ||
सुबह-सुबह उठकर गया, बाबा के संग खेत |
नितक्रिया उस खेत को, उपजाऊ कर देत ||
अब आदत पड़ने लगी, घर से बाहर जाय |
दुनियादारी ध्यान से, बाबा रहे सिखाय ||
सौ तक की गिनती हुई, ए बी सी डी याद |
वर्णमाला भी रट लिया, चार माह के बाद ||
गलती लेकिन हो गई, लगा मुझे इक रोज |
बगुली लेकर हाथ में, रहे मौलवी खोज ||
पाँच साल का हो गया, कपडे लेता डाल |
बैठे-ठाले करे नित, घर में नए बवाल ||
भैया कक्षा पाँच में, मेरी कक्षा एक |
अमरूदों के बाग़ में, लिए गुरूजी देख ||
हुई सुतैया बड़न की, कांप रहे थे गात |
मुर्गे की लख दुर्दशा , समझा सारी बात ||
देख भयंकर दृश्य ये, होने लगी मरोड़ |
बड़े-दोस्त के साथ में गए तलौआ दौड़ ||
"तालाब"
पर पानी के पास में, ठिठके मेरे पैर |
मुर्गे को छुट्टी मिली, लेने पहुँचा खैर||
भैया बोले बोल क्या, बोलेगा घर बात |
शौचा दो पहले मुझे, मेरी क्या औकात ||
एक साल बीता गए, भैया बड़-स्कूल |
अपने पैरों फाँकता , इधर-उधर की धूल ||
स्वावलम्बी मै हो चला, दोस्त बने दो-चार |
खेलों में करते मजा, बड़ा मस्त व्यवहार ||
एक बार तालाब में, फिसला मेरा पैर |
मित्र खींच लाया मगर, कुशलपूर्वक तैर ||
बाबा के आशीष से, यह बच्चा हुशियार |
दिन दूनी बढ़ता गया, गुरु-जनों का प्यार ||
मिडिल किया था पास तब, पास नहीं स्कूल |
दूर साइकिल से चला, सीखे ट्रैफिक रुल ||
दसवी कक्षा में लगा, सेन्टर काफी दूर |
घर से बाहर प्रथमतः , रहने को मजबूर ||
"स्वावलंबन"
नहर नदी तालाब में, निपटे बार हजार |
गए अयोध्या फिर पढ़न, होकर दसवीं पार ||
इन्टर पढने के लिए, पहुंचे फैजाबाद |
प्रभु-कृपा से हो गया, गुरु से इक संवाद ||
जीवन का क्या लक्ष्य है, मन में करो विचार |
छोटी - छोटी मंजिलें, करते जाओ पार ||
सपने खुब देखो मगर, रहे हकीकत मूल |
उनको पाने के लिए, करो न लेकिन भूल ||
सुबह-सुबह की क्लास में, हुई एक दिन देर ||
अगले दिन फिर आ गया, जल्दी बड़े सवेर ||
शौचालय ढूंढा उधर, देखा बड़का हाल |
अरे ! निबटने के लिए, जी का सब जंजाल ||
लगा समझने में समय, पर सुविधा भरपूर |
काकी को फुरसत मिली, हुई समस्या दूर ||