Sunday 10 February 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-6

अब-तक 
दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज  ने आत्म-हत्या करली । पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व  के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ । कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -
रावण ने वरदान प्राप्त किये-कौशल्या को मारने की कोशिश-दशरथ द्वारा प्रतिकार-दशरथ कौशल्या विवाह-रावण के क्षत्रपों का अयोध्या में उत्पात 




 भाग-6
रावण का गुप्तचर  
दोहे

असफल खर की चेष्टा, हो बेहद गमगीन |
लंका जाकर के खड़ा,  मुखड़ा दुखी मलीन ||

रावण बरबस पूछता, क्यूँ हो बन्धु उदास |
कौशल्या के गर्भ का, करके सत्यानाश  ||

खर पूछे आश्वस्त हो, भ्रात कहो समझाय |
यह घटना कैसे हुई, जियरा तनिक जुड़ाय ||

रानी रथ से कूदती, चोट
खाय भरपूर |
तीन माह का भ्रूण भी, हो जाता खुद चूर ||

सज्जन खुशियाँ  बांटते, दुर्जन  कष्ट बढ़ाय ।
दुर्जन मरके खुश करे, सज्जन जाय रूलाय ।


खर के सँग फिर गुप्तचर, भेजा सागर पार |
वह सुग्गासुर जा जमा, शुक थे जहाँ अपार ||

हरकारे वापस इधर, आये दशरथ पास |
घटना सुनकर हो गया, सारा अवध उदास ||

विकट मार्मिक कष्टकर, सुना सकल दृष्टांत ।
  असहनीय दुष्कर लगे, होता चित्त अशांत ।

गुरुकुल में शावक मरा, हिरनी आई याद |
अनजाने घायल हुई, चखा दर्द का स्वाद ||

आहों से कैसे भरे, मन के गहरे जख्म ।
मरहम-पट्टी समय के, जख्म करेंगे ख़त्म ।।

अनुमति पाय वशिष्ठ की, तुरत गए ससुरार |
कौशल्या को देखते, नैना छलके प्यार ||

सूरज ने संक्रान्ति से, दिए किरण उपहार |
 कटु-ठिठुरन थमने लगी, चमक उठा संसार ||

दवा-दुआ से हो गई, रानी जल्दी ठीक |
दशरथ के सत्संग से, घटना भूल अनीक ||

कुण्डली
आपाधापी जिंदगी, फुर्सत भी बेचैन।
बेचैनी में ख़ास है, अपनेपन के सैन ।
अपनेपन के सैन, बैन प्रियतम के प्यारे ।
अपनों के उपहार, खोलकर अगर निहारे ।
पा खुशियों का कोष, ख़ुशी तन-मन में व्यापी ।
नई ऊर्जा पाय, करे फिर आपाधापी ।।

विदा मांग कर आ गए, राजा-रानी साथ |
चिंतित परजा झूमती, होकर पुन: सनाथ ||

धीरे धीरे सरकती, छोटी होती रात |
 हवा बसंती बह रही, जल्दी होय प्रभात |

दिग-दिगंत बौराया | मादक  बसंत आया ||
तोते सदा पुकारे |  मैना मन दुत्कारे ||
काली कोयल कूके | लोग होलिका फूंके ||
सरसों पीली फूली | शीत बची मामूली  ||
भौरां मद्धिम गाये  | तितली मन बहलाए ||
भाग्य हमारे जागे | गर्म वस्त्र सब त्यागे || 


पीली सरसों फूलती, हरे खेत के बीच |
 कृषक निराई कर रहे, रहे खेत कुछ सींच ||

पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |।

तरह तरह की जिंदगी, पक्षी कीट पतंग |
जीव प्रफुल्लित विचरते, नए सीखते ढंग ||

कौशल्या रहती मगन, वन-उपवन में घूम ||
धीरे धीरे भूलती, गम पुष्पों को चूम ||
कुण्डली
खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग ।
पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग ।
तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ सारे न्यारे ।
दुनिया होती दंग,  आय के दशरथ द्वारे ।
नित्य पौध नव रोप,  हाथ से हरदिन सींचे ।
कठिन परिश्रम होय, तभी तो खिलें बगीचे ।।
कुण्डली
  घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ ।
रहे नोचते *पाम, काइयाँ  पापी लीचड़ ।
भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे  ।।
श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे ।
  (*किनारी की छोर पर लगी गोटी)
लिंक -
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-5


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 
निवेदन :
आदरणीय ! आदरेया  !!
 आपकी सलाह का स्वागत है-


4 comments:

  1. बहुत ही भाव पूर्ण प्रस्तुति,गुरुकुल में शावक मरा, हिरनी आई याद |
    अनजाने घायल हुई, चखा दर्द का स्वाद ||

    आहों से कैसे भरे, मन के गहरे जख्म ।
    मरहम-पट्टी समय के, जख्म करेंगे ख़त्म ।।

    अनुमति पाय वशिष्ठ की, तुरत गए ससुरार |
    कौशल्या को देखते, नैना छलके प्यार ||

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  2. पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
    गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |।

    प्रकृति के सुंदर चित्र...बहुत सुंदर कथा क्रम..

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  3. भगवती शांता को नमन ...
    आपको साधुवाद !

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  4. कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।---क्या बात है ...साधुवाद ...

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