- मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ?
- पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ाने-
- मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा -
- गैरों का दुष्कर्म, करे खुद को भी लांछित-
- पूँछ-ताछ में आ गई, कैसे टेढ़ी पूँछ-
- रविकर लागे श्रेष्ठ, सदा ही गाँठ जोड़ना-
- माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह -
- गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन -
- पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान-
- जूं रेंगे न कान पर, सत्ता बेहद शख्त-
- कायर ना कमजोर, मगर आदत के मारे -
- गोरे लाले मस्त, रो रहे लाले काले-
- रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग-
- कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे -
- ऊंचा ऊंचा उड़े, नहीं धरती से ममता-
- प्रश्नों का अब क्या कहें, खड़े होंय मुंह बाय-
- अब कब जाओगे ????
- लेकिन अबकी ढाल, मुलायम ममता माया-
- कर्ण-कपिल चिद-द्रोण, पुत्र जिंदल नाबालिग-
- वाणी सुन रे भूप, कंस कंगरसिया मामा-
- मौत कुआँ मशहूर, कभी न डाकू चूका-
- ब्राउन पीपुल लाइकिंग, यू स्टैंडिंग फस्ट -
- कायम रख ईमान, हमेशा कविता कर कर-रविकर
- शिशु जागे जागे है माता, शिशु सोवे फिर भी जगता मन-
- अक्ल चाहिए तो, शुरू कर ठोकर खाना -
- चर्चा-मंच प्रणाम, चलो कल होंय हजारी - रविकर
- सफल साधना हो गई, जमा विमोचन रंग-रविकर
- रविकर नहीं अनाथ, व्यर्थ तू दमके बमके-
- समझें ना नादान, दान नाना करवाए-
- आतंकी की धाक, लगा धक्का है दिल को -
- है रो बो में खोट, नहीं कोयला चबाये -
- नियमित हो यह "आंच", हमें भी चढ़ा दीजिये-
- इटेलियन सैलून में, कटा सिंह नाखून-
- धधके अंतर आग, लुटाते लंठ खदाने-
- ठा ठा-करे दिमाग, राज चा-चा चर पागल-
- प्रवास पर पढ़े पेपर पर-प्रतिक्रिया
- परिकल्पना समारोह-अंतिम सत्र : नव-मीडिया दशा, दिशा ...
- चाचा ताऊ सकल, मुलायम बाप हमारे-
- कछुवा कुछ भी न छुवा, हाथी काटे केक
- आपका लिंक -
- जुलाई माह की टिप्पणियां : प्रवासी रविकर -
- फरवरी माह की टिप्पणियां : प्रवासी रविकर
- दूँ जख्मों को दाद, रात यह सर्द घनेरी-
- एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है-
- पुलिस कटोरा लिए, थामता पंडा डंडा -
- परम पूज्य हैं सुदर्शन, हम अनुयायी एक-
- करता लेख हरण, नाम अपने छपवाते
- अपने ये गोविन्द जी, रहे कबड्डी खेल-
- चला ढूंढने बाप, सही सा एक निठल्लू-
- मिले सेवैंयाँ आज खुब, बस नमाज हो जाय-
- हरदम हिन्दु हलाक, हजम हमले हठ-धर्मी -
- जाल जला जल जाम, जमीं जर जंगल जोरू-
- न हर्रे न फिटकरी, मार मलाई चाप -
- मदन लाल जी धींगरा, सावरकर का संग-
- कर खुदरा व्यापार, वैश्विक मंदी भागे
- रहिये फक्कड़ मस्त, रखो दुनिया ठेंगे पर
- ठक ठक पाठक पोस्ट के, छीने चर्चा मंच-रविकर
- केवल दो दो पैग, रोक है पूरी रविकर-
- होय बुराई पस्त, ढकी फूलों से झाड़ी
- इनको मिले न अन्न, सन्न ताकें छत गायब-
- हरे अलाय-बलाय, लाल का लाल किला यह-
- श्रद्धांजलि देकर अलग, हँसते मस्त ठठाय-
- जंगल में जनतंत्र हो, जमा जानवर ढेर-
- अविवाहित के बड़े मजे हैं-रचना उत्तम ईश्वर की -
- पीढ़ी दर पीढ़ी यह होगा-
- सीनाजोरी कर सके, वही असल है चोर
- रविकर ब्लॉगर श्रेष्ठ, सुने न समालोचना -
- मुंह देखे का प्यार, वासनामय अधनंगा-
- सी एम जाते रूठ, बके चच्चा क्यूँ अल-बल-
- हर शहीद गांधी मिला, शेष सभी हैं गौण-
- शहरी शोषण से लड़े, माखन की गति थाम-रविकर
- आई एस एम् की साख, बधाई रविकर रचना
- भिन्न भिन्न धर रूप, मनुज सा परमेश्वर है -रविकर
- पुलिस जाय गर सुधर, ख़तम हो आधी आफत-रविकर
- ठगी खड़ी इस गाँव, *अड़डपोपो अड़ियल की-रविकर
- दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव-
- रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न -रविकर
- पत्नी का सहभाग, क्रोध घृणा मद छोड़ा-रविकर
- मित्र सेक्स विपरीत गर, रखो हमेशा ख्याल-रविकर
- पर्वत करने लगे ईर्ष्या, देख पेड़ की बढ़ी उंचाई-रविक...
- ब्वायज हैविंग आल फ़न, दें हम खेला भाड़-रविकर
- भारत से कस प्यार, सैकड़ों मेडल तेरे-
- छाया सन्नाटा अटल, तम्बू-टेंट उखार -
- वोटर भकुवा क्या करे, वोटर जाति-परस्त -
- नारद का ही हाथ है, यह पूना विस्फोट-रविकर
- दारुण जहर क'साब, मिला फन मेरा-बाढ़े -
- टिप्पण-रुप्पण एक सम, वापस मिली न एक
- अबला रगड़ी जा रही, मुंह पर पट्टी तान
- हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल- रविकर
- कर कुर्सी कुर्बान, बड़ी पावर पा जाती-रविकर
- आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख - रविकर
- घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी-रविकर
- स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म -रविकर
- वीरांगना प्रणाम, बहुत आभार शिवम् जी -रविकर
- ईंधन ले धन लूट, छूट वापस सरकारी-
- म्याऊं के सर-ताज, सिंह का डॉग दौर है -
- ऐ लोढ़े तू रूठ के, भाँड़ रहा है गेम -
- रविकर बंदनवार, राष्ट्रपति का सजता है-
- करे सुरक्षित नारि दो, लुटा जाय जो जान-
- मन मंदिर मोहित मगन, मुश्किल में मम देह-रविकर
- काँच, ना बाहर निकल आये कहीं-रविकर
- आज देवेन्द्र जी पाण्डेय हमारे शहर धनबाद में
- तन की खुजली यूँ बढ़ी, रिंग-कटर ली खोज
- विवाहेत्तर कोढ़, समझ में किसके आई ??
- हास्य-रस जैसा "बना रस" था मगर
- हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-
- एक ब्लॉगर का आखिर हो गया एडमीशन एम् टेक, कंप्य...
- एक छमाही दिल्ली रहती पुत्र पास वो- दूजा पुत्री सं...
- घृणित-मानसिकता गई, असम सड़क पर फ़ैल-
- सूर्पनखा की नाक का, था उनको अफ़सोस
- खोल मेडिसिन बॉक्स, रिस्क पर सिरप पिलाता-
- कन्फ्यूजन अपने लिए, समलैंगिक सामान्य-
- राशन कैसे आय, बताओ फिर सत्तरह में ??
- दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम-2
- दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम
- जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय -
- रचना पर जो खींचते, मार कुंडली चित्र-
- लेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें-
- फैले फ्लू अतिसार, बड़ी बीमारी रविकर-
- जाने सारा देश, रेप नहीं वो कर सकता
- मूरख ताके मायने / मूरखता के मायने,
- अगर विवादित अंश का, रविकर करे स्पर्श-
- मात-पिता का दूर से, करे पुत्र उद्धार -
- सदा खिलाना गुल नया, नया कजिन मुसकाय-
- ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़-
- शुभकामना असीम, स्वस्थ होकरके आओ
- जब डंडा पुरजोर, भांजते संगी-साथी-
- बीस लाख की लाटरी, लक्ष्मीपति अखिलेश-
- वाचस्पति पति-राष्ट्र, तभी तो हो पाओगे
- आ जाएँ इक साथ, पूर्वज एक हमारे-
- निर्दोषों को जेल, हँसी बाहर शैतानी
- मेमोरी ये रोम, सजा लो दिल में फोटो-
- सुनी सुनाई से सभी, सनसनाय शंकाय-
- करते प्रतिदिन ढोंग, पडोसी बड़े हितैषी-
- मौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ- विकाल
- मौसी प्रभु के धाम, सत्य का करूँ सामना-
- रहो सदा चैतन्य, जगत में नाम कमाओ
- बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया-
- एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट --250 वीं पोस...
- धरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाक
- अजब भाग्य का लेख , ढूँढ ले रोने वाले -
- कुंडली में 1000 वीं टिप्पणी -
- बजरंगी जब थामते, रिचर्ड्स राक्षस कैच-
- सीधा सरल उपाय, भीग छतरी में आधा-
- बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता -
- घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम-
- एन डी ए असहाय, दिखे सब की बेशर्मी -
- नहीं खेलते खेल, बैठ के दुश्मन गोदी-
- प्रेमालापी विदग्धा, चाट जाय सब धात-
- हँसुवा की शादी लगी, पर नितीश की रीत-
- परम मित्र हे सुज्ञ, वियोगी बात बनाता-
- ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे -
- बुद्धू पंगु-गंवार, बड़ा भोला है रविकर -
- करूँ नहीं टिप्पणी, पढ़े बिन कुछ भी पर्चा -
- संजय की हो दूर दृष्ट, या नियोग संतान
- चार पीढियां साथ, बड़े आश्रम में डेरा-
- 'ममता' मार छलांग, भूलती मानुष माटी
- रंगमंच उत्कृष्ट, सुरों हित सकल सुबीता-
- आंसुओं की धार से उद्धार चाहे-
- प्रेम के पेड़े बुझायें आग अब तो -
- ममतामयी मुलामियत, मनमोहनी मिजाज-
- ताक -झाँक का शाह, बड़ा नटखट है स्वामी-
- लिस्ट हाथ में थाम, बाम माथे पे मलना
- बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे -
- जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती -
- इक दिन तो सबको जाना है-
- पुतली से रखते सटा, सब अपने जंजाल
- जौ-जौ आगर ब्लॉग, बड़े सब रत्ती-रत्ती-
- आज तलक अवकाश रहा-
- पाय पुराने ब्लॉग, करो उनकी भी चर्चा
- लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा -
- "उच्चारण" पर हाय, पड़े गर्दन पर फंदा-
- हुलकी आवैं !!
- पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है
- भगवन गर नाराज, पड़े डाक्टर के द्वारे-
- दिवस्पति की दिल्लगी से- झूम झूरे झेर झूरे-
- लपटें उठती उद्ध, जला पेट्रोल छिड़ककर-
- दाढ़ी बैठ खुजाय, अर्थ का शास्त्री मोहन-
- नहीं पांचवा साथ, सदा पूंजी-पति राक्षस
- ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी-
- छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी-
- जुड़े लोकहित आय, एकजुट रहिये ब्लॉगर-
- माली बनकर छले, खले मालिक मदमाता-
- करे शमन अभिमान, नहीं ये दम्भी-ज्ञानी-
- कृष्णा छलिया श्रेष्ठ, भजूँ वो लगे मनोरम -
- प्रिये प्राण पर पाय, प्राण-प्रिय बुरी गती की-
- अरुण निगम जी साथ हैं, पुत्र भी आया साथ -
- बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी -
- किन्तु सके सौ लील, समन्दर इन्हें समूचा-
- चीनी कडुवी होय, कहाँ अब प्रेम-सेवइयां -
- लाश रहे दफ़नाय, काट के बोटी-बोटी-
- हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा-
- संतानों के सृजन से, माँ का जीवन धन्य-
- दादा दादी देव, दुआ दे दुर्लभ दृष्टी-
- गर्भवती हो जाय, ढूँढ़ता कुत्ता अगली-
- करो सती-गुणगान, मान लो उनका कहना-
- कार्टून नासमझ, भिड़े इक कार्टून में -
- आधा सच कह देता रविकर, डाट-डैश में भरने का-
- गांधी जी का शुद्ध चित्त, ठीक करे बीमार-
- रहे नहीं संदेह, गीत गा ले बंजारा-
- ईस्वी सन उनचास, किये खुद नेहरु कब का -
- पौ बारह या हार, झेलना ही पड़ता है-
- बहुत बहुत आभार है, रविकर हर्ष अपार-
- रविकर सज्जन वृन्द, कर्मरत हो मुस्काते -
- रविकर पहली डेट, बनाकर मुझको मामा -
- लेता पुत्र बचाय, गला बस पुत्री चापा-
- दुर्जन पुनुरुत्पत्ति, करे हर बार कबाड़ी -
- मस्त माल-मधु चाभ, वकालत प्रवचन भाषण -
- भर दे दर्पण सदन, भौंक मर जइहैं कुत्ते ।
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- कर रविकर विषपान, विषय-नव पाए कैसे-
- तीन-पांच पैंतीस, रात छत्तिस हो जाती
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- अवनति का इतिहास, महाभारत है गाता-
- आज बड़ों की मस्ती गायब, इसीलिए जीवन भर खरभर
- चढ़ते रहो पहाड़, सदा जय माँ जी कहिये-
- उत्सुकता लेकर चले, अंध-खोह की ओर
- बेचैनी में ख़ास है, अपनेपन के सैन
- स्नेह-सिक्त बौछार से, अग्नि-शिखा बुझ जाय-
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- चिंतामय परिवेश, खोल ले मन की खिड़की-
- बिन पुस्तक का घर लगे, बिन खिड़की का कक्ष -
- आदिकाल से वास, यहाँ पर लोग करे हैं -
- कामप्रेत के कर्म, करे नर से नर'दारा
- नायक इंगित कुछ किये बिना, चुपचाप दिखाता राह चला
- मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ-
- रक्षित रहे समाज, भूमि पर आय भास्कर
- कुछ लोगों को किन्तु, नहीं हम दोनों भाते -
- कर जीवन-पर्यंत, भाग्य उद्यम से जागे -
- अब कसाब है कृष्ण, बाप दो-दो जो पाया-
- चेत जरा शैतान, नहीं तो प्रगटे काली -
- सात पुश्त के लिए, सम्पदा जम के जोड़ो-
- सुख-शान्ति सौहार्द, ग़मों ने गप-गप गटका
- फिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे-
- कुरुक्षेत्र-मन बिकल है, चलिए प्रभू शरण -
- पट्टा को दुहराय, मौत को ढोती उल्टा-
- पिता, पुत्र पति में बही व्यर्थ समय की रेत-
- बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों -
- सुलगे सीली राख, अश्रु ने इन्हें भिगोया-
- अति-जोखिम का काम, करे जो वही सयाना-
- अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई-
- प्राय: विकसित देश हैं, अजगर मगर करैत
- बढ़िया वेला पाय, ठहरते सदा भगोड़े
- मार्च १८ के बाद के कुछ लिंक -
- "आज फस्ट अप्रैल है ना!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री '...
- फूँक बुलाते शंख, जमा हों संगी साथी -
- क्यूँ महंगी सिगरेट से, रहा करेज जलाय-
- तन मन को देती जला, रहा निकम्मा ताप
- लूट-लाट में लटपटा, बने लटा जब लाट-
- बड़े विरोधाभास थे, सहे अकेले ताप-
- नहीं तनिक संयम, बनाए सबको भोगी -
- मम्मी तेरी खास, बैठ सारे दिन चूमूँ ??
- सृष्टि सरीखी सजग सयानी, केश सुखाती माढ़ा
- पाक प्रेम में पिस पगी, पंक्ति एक से एक-
- छत पर देखा पेड़, निगाहें बेहद पैनी-
- भ्रूण-हत्या आघात, पाय न पातक पानी
- हो री हो ली चरम पर, भरमित घुर्मित लोग-
- किन्तु समय ना पास, समय का रोना रोते
- बाबा रहे सँभाल, बाबा को तुम देखना--
- बाहर की क्या बात, आज घर में ही डरती
- मनोजात अज्ञान, मने मनुजा की माया-
- गोरी कोरी क्यूँ रहे, होरी का त्यौहार --
Saturday 29 September 2012
विगत 6-मास के शीर्षक -
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बार रे! ग्रीनिच बुक ऑफ रेकार्डस् क्या कहता है?:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
देखो गागर खुद बन रहा है
ReplyDeleteरविकर सागर पे सागर
बना बना कर भर रहा है !