Tuesday 11 September 2012

नादानियां असीम हैं, शैतानी मकबूल-

चित्रण माँ से रेप का, जाए रविकर झेंप |
जंग लंग गौरांग तक, गजनी दुश्मन खेंप |
गजनी दुश्मन खेंप, बाल न बांका होवे |
देख दुर्दशा किन्तु, वही भारत माँ रोवे |
अगर गुलामी काल, मानते लाज लुटी है |
नाजायज औलाद, वही तो आज जुटी है ||



खेल आस्था से करे, हमको नही क़ुबूल |
नादानियां असीम हैं, शैतानी मकबूल |
शैतानी मकबूल, खींच नंगी तस्वीरें |
झोंक आँख में धूल, करे लम्बी तकरीरें |
माँ का पावन रूप, करे कूँची से मैला |
सत्ता तो मक्कार, चीर के कर दे चैला ||

गैंगरेप के बाद, चितेरे चढ़ बैठोगे ??

कार्टूनिस्ट असीम पर मेरी-टिप्पणी : 
जानता हूँ आप सहमत नहीं हैं-

(1)
सीमा से बाहर गए, कार्टूनिस्ट असीम |
झंडा संसद सिंह बने, बेमतलब में थीम |
बेमतलब में थीम, यहाँ आजम की डाइन |
कितनी लगे निरीह, नहीं अच्छे ये साइन |
अभिव्यक्ति की धार, भोथरी हो ना जाये |
खींचो लक्ष्मण रेख, स्वयं अनुशासन लाये ||  

(2)
बड़ा वाकया मार्मिक, संवेदना असीम |
व्यंग विधा इक आग है, चढ़ा करेला नीम |
चढ़ा करेला नीम, बहुत अफसोसनाक है |
अगला कैसा चित्र, करो क्या देश ख़ाक है ?

सुधरे न हालात, हाथ में फिर क्या लोगे ?
 गैंगरेप के बाद, चितेरे चढ़ बैठोगे  ??

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