Saturday, 31 August 2013

दिखा अंगूठा दे खुदा, करता भटकल रोष-

दिखा अंगूठा दे खुदा,  करता भटकल रोष |
ऊपर उँगली कर तभी, रहा खुदा को कोस |

रहा खुदा को कोस, उसे ही करे इशारा |
मारे कई हजार, कहाँ है स्वर्ग हमारा |

रविकर दिया जवाब, मिला जो जेल अनूठा |
यही तुम्हारा स्वर्ग, चिढ़ा तू दिखा अंगूठा ||  

(2)
अटकल दुश्मन लें लगा, है चुनाव आसन्न |
बुरे दौर से गुजरती, सत्ता बांटे अन्न |

सत्ता बाँटे अन्न, पकड़ते हैं आतंकी |
आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |

  हो जाए कल्याण, अभी तक टुंडा-भटकल |
पकड़ेंगे कुछ मगर, लगाते रविकर अटकल ||

Friday, 30 August 2013

लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल-

(1)
लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |
परियों सा लेकर फिरे, पर मिजाज यह बैल |

पर मिजाज यह बैल, भेद हैं कितने सारे |
वंश भतीजा वाद, प्रान्त भाषा संहारे |

जाति धर्म को वोट, जीत षड्यंत्र मन्त्र की | 
अक्षम विषम निहार, परिस्थिति लोकतंत्र की |


(2)
अटकल दुश्मन लें लगा, है चुनाव आसन्न |
बुरे दौर से गुजरती, सत्ता बांटे अन्न |

सत्ता बाँटे अन्न, पकड़ते हैं आतंकी |
आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |

  हो जाए कल्याण, अभी तक टुंडा-भटकल |
पकड़ेंगे कुछ मगर, लगाते रविकर अटकल ||

Thursday, 29 August 2013

आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |

अटकल दुश्मन लें लगा, है चुनाव आसन्न |
बुरे दौर से गुजरती, सत्ता बांटे अन्न |

सत्ता बाँटे अन्न, पकड़ते हैं आतंकी |
आये दाउद हाथ, होय फिर सत्ता पक्की |

  हो जाए कल्याण, अभी तक टुंडा-भटकल |
पकड़ेंगे कुछ मगर, लगाते रविकर अटकल ||


लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |
परियों सा लेकर फिरे, पर मिजाज यह बैल |

पर मिजाज यह बैल, भेद हैं कितने सारे |
वंश भतीजा वाद, प्रान्त भाषा संहारे |

जाति धर्म को वोट, जीत षड्यंत्र मन्त्र की | 
अक्षम विषम निहार, परिस्थिति लोकतंत्र की |

Wednesday, 28 August 2013

वे आतंकी रुष्ट, व्यर्थ हो जिनकी कसरत -

कसरत सी बी आय की, हो जाती बेकार |
मरती इशरत-जहाँ में, मोदी सर की कार |

मोदी सर की कार, बोल बैठा अमरीका |
लोहे की हे-डली, फ़िदायिन का ले ठीका |

सोमनाथ पर दृष्टि, उड़ाने की थी हशरत |
वे आतंकी रुष्ट, व्यर्थ हो जिनकी कसरत -

Monday, 26 August 2013

दिल जीतेगी पेट से, दिल्ली से यह व्योम


(1)
मरजीना असली मदर, रोम रोम में रोम |
दिल जीतेगी पेट से, दिल्ली से यह व्योम |

दिल्ली से यह व्योम, बरसते काले बादल |
सड़े खुले में अन्न, बटेगा सड़ा हुआ कल |

और मरे ना भूख, टैक्स पेयर है करजी |
मिल जाए बस वोट, यही मरजीना मरजी- 

(२)
जाने मरजीना कहाँ, चली बांटने अन्न |
चालू चालीस चोर के, अच्छे दिन आसन्न |

अच्छे दिन आसन्न, रहा अब तक मन-रेगा |
कई फीसदी लाभ, यही भोजन बिल देगा |

चाहे डूबे देश, चले हम वोट कमाने |
भूखें सोवें लोग, लूटते चोर खजाने ||

Sunday, 25 August 2013

अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी -

टेढ़ी-मेढ़ी डगरिया, पड़ते डग-मग पैर |
बीती यूँ ही उमरिया, रहे मनाते खैर | 

रहे मनाते खैर, खैर वो बीत चुकी है |
गया हमेशा चूक, सफलता छिपी-लुकी है |

तौर-तरीके श्रेष्ठ, पकड़ ना पाया *मेढ़ी |
 अब कैसा अफ़सोस, करे क्या उँगली-टेढ़ी ??

*तीन शिराओं वाली चोटी |

Saturday, 24 August 2013

खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा -


 विवादास्पद सुन बयाँ, जन-जन जाए चौंक |
नामुराद वे आदतन, करते पूरा शौक |

करते पूरा शौक, छौंक शेखियाँ बघारें |
बात करें अटपटी, हमेशा डींगे मारें |

रखते सीमित सोच, ओढ़ते छद्म लबादा |
खोलूं इनकी पोल, करे रविकर कवि वादा |



देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-

कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |
कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |
मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥ 


देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे-

कपड़े के पीछे पड़े, बिना जाँच-पड़ताल |
पड़े मुसीबत किसी पर, कोई करे सवाल |

कोई करे सवाल, हिमायत करने वालों |
व्यर्थ बाल की खाल, विषय पर नहीं निकालो |

मिले सही माहौल, रुकें ये रगड़े-लफड़े ।
देकर व्यर्थ बयान, उतारो यूँ ना कपडे ॥ 

Wednesday, 21 August 2013

नेता नापे मील, रुपैया बित्ता बित्ता-


 चुप्पा-चेंचर चौकसी, करे ख़ुदकुशी नोट |
उड़े हँसी उड़ती रहे, चलो बटोरें वोट |
चलो बटोरें वोट, योजना राम भरोसे |
होती बन्दर बाँट, गरीबी खुद को कोसे |
होता बंटाधार, फूलकर डालर कुप्पा |
चेंचर की बकवाद, बैठ कर ताके चुप्पा ||

बित्ता बित्ता बढ़ रहा, घाटा नित वित्तीय । 
गिरती मुद्रा देख के, जन-मुद्रा दयनीय । 

जन-मुद्रा दयनीय, नहीं लत-हालत बदले । 
दल दल दले-दलान, देश में ऊँचा पद ले । 

शास्त्री अर्थ अनर्थ, गिरेंगे देखो कित्ता । 
नेता नापे मील, रुपैया बित्ता बित्ता।।


रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल-

गुर्राता डालर खड़ा, लड़ा ठोकता ताल |
रुपिया डूबा ताल में, पाए कौन निकाल |

पाए कौन निकाल, बहे दल-दल में नारा |
मगरमच्छ सरकार, अनैतिक बहती धारा |

घटते यहाँ गरीब, देखिये फिर भी तुर्रा |
पानी में दे ठेल, भैंसिया फिर तू गुर्रा ||
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े-
  
 उखड़े मुखड़े पर उड़े, हवा हवाई धूल ।
आग मूतते हैं बड़े, गलत नीति को तूल ।
गलत नीति को तूल, रुपैया सहता जाए । 
डालर रहा डकार, कौन अब लाज बचाए । 
बहरा मोहन मूक, नहीं सुन पाए दुखड़े । 
हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े ॥ 

गिरता है गिरता रहे, पर पाए ना पार |
रूपया उतना ना गिरे, जितना यह सरकार |

जितना यह सरकार, नरेगा नरक मचाये |
बस पनडुब्बी रेल, मील मिड डे भी खाए |

लेता फ़ाइल लील, सदन में भुक्खड़ फिरता |
मँहगाई में डील, रुपैया नेता गिरता ||
 रोके से ना रोकड़ा, ले रुकने का नाम ।
रुपिया रूप कुरूप हो, मचा रहा कुहराम । 
मचा रहा कुहराम, हुआ अब राम भरोसे । 
मँहगाई की मार, गरीबी जीवन कोसे । 
कह गरीब के साथ, हाथ नित बम्बू ठोके । 
डालर हँसता जाय, रहे पर रुपिया रो के ॥ 

करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक-

दीमक मजदूरी करे, चाट चाट अविराम |
रानी महलों में फिरे, करे क़ुबूल सलाम |

करे क़ुबूल सलाम, कोयला काला खलता |
बचती फिर भी राख, लाल होकर जो जलता |

लेकिन रानी तेज, और वह पूरा अहमक |
करवा लेती काम, फाइलें चाटे दीमक ||

Tuesday, 20 August 2013

हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण -

 
दर्पण बोले झूठ कब, कब ना खोले भेद |
साया छोड़े साथ कब, यादें जरा कुरेद |


यादें जरा कुरेद, मित्र पाया क्या सच्चा |
इन दोनों सा ढूँढ़, कभी ना खाए गच्चा |

रखिये इन्हें सहेज, कीजिये पूर्ण समर्पण |
हरदम साया साथ, सदा सच बोले दर्पण || 

Monday, 19 August 2013

सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी-

गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |

दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |

लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||

Sunday, 4 August 2013

यू पी राजस्थान, आज फिर किसकी बारी-

खामखाँ लिख चिट्ठियाँ, करते इंक खराब |
लहरायें जब मुट्ठियाँ, देना तभी जवाब |

देना तभी जवाब, नहीं दुर्गा बेचारी |
यू पी राजस्थान, आज फिर किसकी बारी |

कल खेमका अशोक, स्वाद ऐसा ही चक्खा |
रहे आप चुपचाप, लिखो मत आज खामखाँ |

कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये-

माटी का सौदा करें, लाठी का उस्ताद |
गोरख-धंधे रात-दिन, हुआ जिन्न आजाद |

हुआ जिन्न आजाद, कहीं यह रेप कराये  |
कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये |

हो जाते हैं क़त्ल, माफिया खाटी भाटी |
सत्ता करे खराब, मुलायम उर्वर माटी |
Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.

दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

Friday, 2 August 2013

कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये-

माटी का सौदा करें, लाठी का उस्ताद |
गोरख-धंधे रात-दिन, हुआ जिन्न आजाद |

हुआ जिन्न आजाद, कहीं यह रेप कराये  |
कहीं गिरे दीवाल, कहीं सस्पेंशन लाये |

हो जाते हैं क़त्ल, माफिया खाटी भाटी |
सत्ता करे खराब, मुलायम उर्वर माटी |



Durga Shakti Nagpal, a young woman IAS officer of 2010 batch has been shifted from Punjab care to Uttar Pradesh cadre on the ground of marriage to  Shri Abhishek Singh, IAS officer of 2011 batch of Uttar Pradesh Cadre.


दुर्गा पर भारी पड़े, शुतुरमुर्ग के अंड |
भस्मासुर को दे सकी, आज नहीं वह दंड |

आज नहीं वह दंड, नोयडा खाण्डव-वन है  |
कौरव का उत्पात, हारते पाण्डव जन हैं |

फिर अंधे धृतराष्ट्र, दुशासन बेढब गुर्गा |
बदल पक्ष अखिलेश, हटाते आई एस दुर्गा-

Thursday, 1 August 2013

मरता रोज भविष्य, समस्या दारुण दाही-

बच्चों पर आफत बड़ी, कहीं खाय के मौत |
पानी पी मरते कहीं, दुर्घटना दें न्यौत |

दुर्घटना दे न्यौत, हमारी लापरवाही |
मरता रोज भविष्य, समस्या दारुण दाही |

निर्वाहन कर्तव्य, ध्यान से चच्ची चच्चों |
जोखिम को पहचान,  चेतना होगा बच्चों |

10 school children killed in accident in Hanumangarh

11 students fall ill after drinking water during midday meal