(1)
कीमत मत मानव लगा, महा-मतलबी दृष्टि |
हिम्मत से टकरा रहे, भरी चुनौती सृष्टि |
भरी चुनौती सृष्टि, वृष्टि कुहराम मचाये |
अहंकार हो नष्ट, तिगनिया नाच नचाये |
जय जय जय हे वीर, भगा दें आई शामत |
सादर तुम्हें प्रणाम, चुकाई भारी कीमत ||
(2)
नमन नमस्ते नायकों, नम नयनों नितराम |
क्रूर कुदरती हादसे, दे राहत निष्काम |
दे राहत निष्काम, बचाते आहत जनता |
दिए बगैर बयान, हमारा रक्षक बनता |
अमन चमन हित जान, निछावर हँसते हँसते |
भूले ना एहसान, शहीदों नमन नमस्ते -
वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह लाजवाब समसामयिक कुण्डलिया छंद हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत उम्दा सर जी ! वैसे अगर पहले कुण्डलिया का तीसरा दोहा आपने हमारे उन वीर शहीदों के लिए समर्पित किया है जिन्होंने हैलीकॉप्टर दुर्घटना में जान गंवाई तो कहना चाहूँगा कि "भागते" शब्द की जगह " उड़ते" शब्द अधिक सटीक रहेगा। अगर मैं ही कुछ गलत समझा हूँ तो अग्रिम क्षमा!
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ReplyDeleteबहुत खूब रविकर जी !
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteसटीक ,समसामयीक लाजवाब श्री मन
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