Friday, 28 June 2013

नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल-

मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥

आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥

घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥

नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥

5 comments:

  1. लूटने की बारी आई है | यही तो लगता है | क़यामत है

    ReplyDelete
  2. घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
    सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न

    बहुत सुन्दर कविवर
    आभार आपका !

    ReplyDelete
  3. आपकी यह रचना कल रविवार (30-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें

    ReplyDelete
  4. नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
    ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥

    क्या बात है शब्दों का आगे पीछे करके उर्दू शायरी की खूब सूरती पिरोई है आपने इस रचना में .

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।

    ReplyDelete