मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
लूटने की बारी आई है | यही तो लगता है | क़यामत है
ReplyDeleteघोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
ReplyDeleteसहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न
बहुत सुन्दर कविवर
आभार आपका !
आपकी यह रचना कल रविवार (30-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें
ReplyDeleteनेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ReplyDeleteले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
क्या बात है शब्दों का आगे पीछे करके उर्दू शायरी की खूब सूरती पिरोई है आपने इस रचना में .
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
ReplyDelete