Sunday 27 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2



सर्ग-1

भाग-2
 दशरथ बाल-कथा --
  दोहा 
इंदुमती के प्रेम में, भूपति अज महराज |
लम्पट विषयी जो हुए, झेले राज अकाज ||1||
घनाक्षरी 

  दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर 
प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
देखूं शशि छबि भव्य  निहारूं अंशु सूर्य की -
रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है |
कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||

गुरु वशिष्ठ की मंत्रणा, सह सुमंत बेकार |
इंदुमती के प्यार ने, दूर किया दरबार ||2||

क्रीड़ा सह खिलवाड़ ही, परम सौख्य परितोष |
सुन्दरता पागल करे, मन-मानव मदहोश ||3||

अति सबकी हरदम बुरी, खान-पान-अभिसार |
क्रोध-प्यार बड़-बोल से,  जाय जिंदगी हार ||4||  

झूले  मुग्धा  नायिका, राजा  मारे  पेंग |
वेणी लागे वारुणी,  रही दिखाती  ठेंग ||5||

राज-वाटिका  में  रमे, चार पहर से आय |
तीन-मास के पुत्र को, धाय रही बहलाय ||6||

नारायण-नारायणा,  नारद निधड़क नाद |
अवधपुरी के गगन पर, स्वर्गलोक संवाद ||7||
 
वीणा से माला सरक, सर पर गिरती आय ।
 इंदुमती वो अप्सरा, जान हकीकत जाय ।।8||

 
एक पाप का त्रास वो, यहाँ रही थी भोग |
स्वर्ग-लोक नारी गई, अज को परम वियोग ||9||

माँ का पावन रूप भी, उसे सका ना रोक |
तीन मास के लाल को, छोड़ गई इह-लोक ||10|| 
 
विरह वियोगी जा महल, कदम उठाया गूढ़ |
भूल पुत्र को कर लिया, आत्मघात वह मूढ़ ||11|

कुण्डली 
 (1)
उदासीनता की तरफ, बढ़ते जाते पैर ।
रोको रविकर रोक लो,  जीवन से क्या बैर ।   
जीवन से क्या बैर, व्यर्थ ही  जीवन त्यागा ।
किया पुत्र को गैर,  करे क्या पुत्र  अभागा  ?
दर्द हार गम जीत,  व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो जग छोड़ उदासी ।।
 दोहा 

प्रेम-क्षुदित व्याकुल जगत, मांगे प्यार अपार |
जहाँ  कहीं   देना   पड़े, करे व्यर्थ तकरार ||
 कुण्डली 

मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत मत हार ।
 कायर भागे कर्म से, होय नहीं उद्धार । 
होय नहीं उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें ।
 बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।
फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से । 
 जियो लोक हित मित्र, मिले नहिं कुछ मरने से ।   

माता की ममता छली, करता पिता अनाथ |
रोय-रोय शिशु हारता, पटक-पटक के माथ ||12||


दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 


निवेदन : 
आदरणीय ! आदरेया  !!
मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।
अपार कृपा होगी ।।

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर!
    इस ब्लॉग में प्रतिदिन लिखिए!

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    1. जी गुरु जी-
      मात्राओं का दोष दूर करने में
      आपका सहयोग रूपी आशीर्वाद चाहिए -

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  2. ज्योत्सना-अप्सरा-इन्दु, @मेरे विचार से दोहे के विषम पद के अंत में लघु दीर्घ या लघु लघु लघु आना चाहिए |
    पर हिम्मत न हार=10 मात्रा
    मिले न कुछ मरने से = 12 मात्रा
    सादर (घनाक्षरी पर चिंतन शेष)

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  3. ज्योत्सना-अप्सरा-इन्दु, @मेरे विचार से दोहे के विषम पद के अंत में लघु दीर्घ या लघु लघु लघु आना चाहिए |
    पर हिम्मत न हार=10 मात्रा
    मिले न कुछ मरने से = 12 मात्रा
    सादर (घनाक्षरी पर चिंतन शेष)

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    1. आभार आदरणीय अरुण भाई जी-
      सुधार कर दिया है-
      सादर ||

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  4. दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी
    कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है
    कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर
    प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है
    देखूं शशि छबि भव्य निहारूं अंशु सूर्य की -
    रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है |
    कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
    तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है ||

    घनाक्षरी का प्रवाह और शब्दों की थिरकन सम्मोहित करती है इस पोस्ट में .आभार पढ़वाने के लिए चर्चा मंच का .

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  5. Bahut badhiya ji ko choo jane bala hai sab.....

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  6. आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 1 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
    आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
    भूलना मत

    htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
    इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।

    सूचनार्थ।

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  7. बि‍ल्‍कुल अलग अहसास होता है आपको पढ़ना

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