Thursday, 17 January 2013

निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब -


किश्ती डूबे किश्त में, काट *धारु-जल ख़्वाब ।
निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब ।
  *धारु-जल=तलवार
खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी ।
वालमार्ट का दाब, पड़ेगी मार बला की ।

चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु -खत भिश्ती ।
पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती  ।। 



प्रेम-पुजारी प्रार्थना, हाथ दुबारा थाम ।  

चले छोड़कर दूर क्यूँ , कर रविकर बदनाम ।

  कर रविकर बदनाम, काम का 'पहला' बन्दा ।

सदा काम ही काम, याद कर पल-आनन्दा

  करूँ प्रशंसा नित्य, रखूं ना कभी उधारी 

  तेरे पास प्रमाण, बड़ा मैं प्रेम-पुजारी ।।

3 comments:

  1. बहुत खूब सर जी,*** खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी ।
    वालमार्ट का दाब, पड़ेगी मार बला की ।

    चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु ल-खत भिश्ती ।
    पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती ।। कर रविकर बदनाम, काम का 'पहला' बन्दा ।

    सदा काम ही काम, याद कर पल-आनन्दा ।

    करूँ प्रशंसा नित्य, रखूं ना कभी उधारी ।

    तेरे पास प्रमाण, बड़ा मैं प्रेम-पुजारी ।।

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  2. कटाक्षपूर्ण प्रशंसनीय कुंडलियाँ...

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  3. श्लिष्ट रचनाओं में सब कुछ कह दिया आपने तो!

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