दिव्य युध्द से अनु - प्रेरित
झगड़ा-झंझट को झटक, झूलन-झगरू चूम |
मध्यस्थी के मर्म में, घोंपे चाक़ू झूम |
घोंपे चाक़ू झूम, रीति है झारखण्ड में -
झगड़े में मत घूम, कटेगा फिरी-फण्ड में |
नक्सल छ: इंच छोटा करेगा
या
पुलिस एंकाउन्टर कर देगी
जीत उसी की होय, बन्धु दम जिसका तगड़ा |
जरा दूर से देख, बड़े मल्लों का झगड़ा ||
वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला--
"क्षमा -याचना सहित"
हर लेख को सुन्दर कहा, श्रम को सराहा हृदय से,
अब तर्क-संगत टिप्पणी की पाठशाला ले चलो ||
खूबसूरत शब्द चुन लो, भावना को कूट-कर के
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला ले चलो |
विज्ञात-विज्ञ विदोष-विदुषी के विशिख-विक्षेप मे |
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो | वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
विदोष-विदुषी= निर्दोष विदुषी विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर, हृदय-काला ले चलो |
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
बेहतरीन ।
ReplyDeleteमान गये गुरु
ReplyDeleteशान्तिः....
ReplyDeleteजीत उसी का हक़, पक्ष जो भाई तगड़ा |
ReplyDeleteजरा दूर से देख, बड़े मल्लों का झगड़ा ||
खूबसूरत !एक से बढ़के एक अंदाज़ आपके माहौल की सहज अभिव्यक्ति .सुन्दर कसावदार शब्द श्या .
अच्छी तुकबंदी बढ़िया लगी,समय मिले तो मेरे ब्लॉग आपका स्वागत है....
ReplyDeleteडा. अनुराग और डा दिव्या के झगडे पर
ReplyDeleteतटस्थ रहने वालों को कोसा गया था ||
वहीँ से प्रकट हुई है यह तुकबंदी ||
आभार ||
गुप्ता जी छुट्टी पर रहने की वजह से - पिछले पोस्ट पर अनुपस्थित रहा ! आज सभी को पढ़ा ! देर ही सही - मनु को जन्म दिन की बहुत - बहुत शुभ कामनाएं !मल्लो की झगडा भी गजब है ! सभी पोस्ट लाजबाब है ! बधाई !
ReplyDeleteक्या बात है! वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteविवेक-पूर्ण विचार.
धन्यवाद.
आनन्द विश्वास.
इस काव्य का शिल्प और अर्थ लाजवाब है।
ReplyDeleteआपकी इस तुकबंदी के भी कायल हो गए. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबढ़िया तुकबंदी...प्रस्तुति भी सुन्दर|
ReplyDeleteक्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ReplyDeleteना आस्तीनों में छुपाओ, तीर - भाला ले चलो ||
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति... सादर...
Ojpurn evm behtarin kavita.
ReplyDeleteशीर्षक अधिक अच्छा लगा।
ReplyDeleteदोहों से कवि के काव्य प्रतिभा का ज्ञान होता है। विचारो से तटस्थ..क्यों कि शीर्षक अधिक अच्छा है।
भैया दूर से देखने की नसीहत सही है और बुज़ुर्ग आदमियों को दूर से ही देखना भी चाहिए लेकिन घुस के देखने का मज़ा कुछ अलग ही है।
ReplyDeleteकोई दूर से लेता है कोई क़रीब से लेता है
मेरा रक़ीब है जो मज़े वो अजीब से देता है
क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?