Sunday, 15 July 2012
यूरेका यूँ रेंकता--यूरेका यूँ रेंकता
यूरेका यूँ रेंकता, जैसे खोज नवीन ।
छाप निमंत्रण भेजता, बातें बड़ी महीन ।
बातें बड़ी महीन, गेट पर ताला झूले ।
क्या मजाल तौहीन, कहीं से काया छू ले ।
यही सुरक्षा मन्त्र, स्वयं पर अपना ताला
।
घूमें ना
सर्वत्र, समय से आये बाला ।।
3 comments:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
15 July 2012 at 05:53
वाह ...
यहाँ भी आपकी नजर पड़ लयी।
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प्रवीण पाण्डेय
15 July 2012 at 06:54
बहुत रोचक..
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सुशील कुमार जोशी
15 July 2012 at 07:21
बहुत अच्छी राय है !
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वाह ...
ReplyDeleteयहाँ भी आपकी नजर पड़ लयी।
बहुत रोचक..
ReplyDeleteबहुत अच्छी राय है !
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