(1)
तरसे या हरसे हृदय, मास गर्व में चूर |
कंत हुवे हिय-हंत खुद, सावन चंट सुरूर |
तरसे या हरसे हृदय, मास गर्व में चूर |
कंत हुवे हिय-हंत खुद, सावन चंट सुरूर |
सावन चंट सुरूर, सुने न रविकर कहना |
राखी में मगरूर, पिया की जालिम बहना |
लेती इन्हें बुलाय, वहाँ पर खुशियाँ बरसे |
मन मेरा अकुलाय, मिलन को बेहद तरसे ||
(2)
उलाहना देता दगा , सावन सगा अबूझ |
नाटक नौटंकी ख़तम, ख़तम पुरानी सूझ |
ख़तम पुरानी सूझ, उलझ कर जिए जिंदगी |
अपने घर सब कैद, ख़तम अब दुआ बंदगी |
गुड़िया झूला ख़त्म, बची है राखी बहना |
मेंहदी भी बस रस्म, अभी तक गर्मी सहना ||
सटीक और सार्थक!
ReplyDeleteयहाँ भी खुरपेंच !!
ReplyDeleteलेती इन्हें बुलाय, वहाँ पर खुशियाँ बरसे |
मन मेरा अकुलाय, मिलन को बेहद तरसे ||
वाह बहुत खूब आपको राखी पर शुभकामनायें
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