घाम चाम पर याम दो, हर दिन पड़े जरुर ।
मिले विटामिन डी सखे, काया को भरपूर ।।
अवमूल्यन मुद्रा विकट, मिले चाम के दाम ।
डालर सोने का हुआ, मंदी हो बदनाम ।।
जाए चाहे चामड़ी, दमड़ी होय न खर्च ।
गिरे अठन्नी बीच में, मीलों करता सर्च ।।
जहाँ दबंगों ने दिया, चला चाम के दाम ।
जर-जमीन-जोरू दखल, त्राहिमाम हर याम ।।
निकृष्टतम अपराध है, बहुत जरुरी रोक ।
करें चामचोरी रखे, 'रविकर' मन में खोट ।।
रंगभेद है विश्व में, चाम-चमक आधार ।
नस्लभेद से त्रस्त-जन, लिंग-भेद भरमार ।।
चाम चाम की चमक में दुनिया रही बिलाय
ReplyDeleteब्लॉगर बिल्ली भोली दिखे नौ सौ चूहे खाय
सबी दोहे सन्देशपरक हैं।
ReplyDeleteवाह वाह कविवर रविकर !
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना..
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