Monday, 9 July 2012

ऐ 'चना ; ज्वार से तू जल

 चबवाये नाकों चने, लहराए हथियार ।
 चनाखार था पास में, देता रविकर डार ।। 

ऐ 'चना, बाजे घना,  
होकर पड़ा, थोथा यहाँ |
व्यर्थ है, उत्पत्ति तेरी- 

पेट-नीच की, क्षुधा मिटा |

उर्वरा धरती से बनता झाड़  
 किन्तु, रविकर न चढ़े 
ज्वार से जलता रहे तू,   
बाजरे, बाजार में -

चल पड़ा है आज क्रोधित, 

फोड़ने उस भाड़ को
औकात में ही रह, अनोखे,  

भाड़ कितने भूज खाया |

आग ठंडी हो चुकी है, 
मानता हूँ आज रविकर-
ऐ 'चना अब बाज आ जा,  
दांत का आर्डर गया है |
 
है पता लोहा नहीं तू, 

फिर भी चबाये हैं बहुत से |
थोथे चने पर 
चने
मुंह में नहीं अब लार आती  ||

कुंडली 

सुशील जी जोशी की टिप्पणी  पर 

कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |


पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |


झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
खा बीबी की झाड़, चढूं  न कभी झाड़ पर ||
 



कुछ टिप्पणियों का सन्दर्भ शायद यह है 

डा. अनवर विवाद / रविकर क्षमा-प्रार्थी : मेरे द्वारा डाला गया घी देखिये, जिसने आग भड़काई


33 comments:

  1. अन्दर उबाल,
    बाहर बवाल ,
    नए नहीं सवाल,
    चने से मलाल !

    ...चना बहुत उपयोगी है पर सावधान नहीं रहोगे तो दांत भी टूट सकते हैं.

    चने पर गुस्सैल-रचना !

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  2. चने की झाड से उतारती रचना

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  3. नहीं भाई चने पर गुस्सैल रचना नहीं है -
    दांत कमजोर हैं इसलिए स्वयं पर क्षोभ है-
    चना से क्या बैर ??
    ज्वार बाजरा भी है-

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  4. बड़ी ही रोचक प्रस्तुति..

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  5. ज्वार की पूछ कम है आजकल चने के भाव आसमान पर हैं. पुराने लोग चने खा कर मुक़द्दमे लड़ा करते थे. चने हमने भी खा लिए थे सो 4 साल से मुक़द्दमे भी लड़ रहे हैं.
    5 मुक़द्दमों में से एक की आज तारीख भी है. किस मुक़द्दमे में ?
    यहाँ देखिये-

    http://ahsaskiparten.blogspot.in/2011/05/andha-qanoon.html

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. इस मन्दी के दौर में, ले मंडी का भाव |
      जींस ख़रीदे जा रहे, किन्तु मुझे न चाव |
      किन्तु मुझे न चाव, मुकदमें तुम्हें मुबारक |
      हार होय या जीत, जानिये बेहद मारक |
      रविकर का संताप, नया दांतों का डाक्टर |
      है क्या कहो इलाज, चने जो खाएं डटकर ||

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    3. अंकल डाक्टर को क्यूँ खोज रहे हो-
      बढ़िया दन्त मंजन क्यूँ नहीं इस्तेमाल करते -
      गन्ना भी चूस सकोगे-
      और चने भी -
      फिर नहीं चिल्लाना पड़ेगा कि
      यह दीवार क्यूँ नहीं टूटती ??

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  6. वाह भई रवि‍कर जी बहुत बढि‍या

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  7. बहुत बढ़िया ... चने को ले कर गंभीर बात हास्य में कह दी

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  8. very nice keep it up
    such poems are the life line of hindi blogging and so are the comments on such beautiful poems
    I am nominating this poem for gyaan peeth puruskaar

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  9. कविता में कोई शब्द या शब्द-चित्र आपत्ति-जनक है, अश्लील है, नारी या धर्म की तौहीन है ?? आप कहें तो आज्ञा-पालन हेतु तत्पर हूँ हमेशा की तरह तुरंत पालन होगी आज्ञा | जिस भाषा का आप इस्तेमाल करते हैं, उसका क्या कोई छुपा अर्थ भी होता है -
    समझ नहीं पाता इस रहस्यवाद को -
    ज्ञान-पीठ ही क्यों, यदि आपूर्ति बिभाग में परिचय हो तो वहां भी देना-
    शायद राशन फ्री हो जाये |
    हमेशा राशन-पानी लेकर नहीं दौड़ना पड़ेगा ||

    लगातार व्यंगात्मक लहजा शुभ-चिंतकों को भी
    रास नहीं आता, मेरे दोस्त ||

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  10. लगातार व्यंगात्मक लहजा शुभ-चिंतकों को भी
    रास नहीं आता, मेरे दोस्त ||


    शुभ चिन्तक नियरे राखिये
    ब्लोगिंग के झाड पे चढ़ाए
    खुद भी रचना रचना चिल्लाए
    रविकर से भी कहलाये

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  11. आप एक बार फिर अपनी समस्त टिप्पणियों पर गौर फरमाएं |
    और यह भी देखें कि सकारात्मक प्रतिक्रिया आई की नहीं -

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  12. खुबसूरत प्रस्तुति |
    चने के माध्यम से दुश्वारियों का गजब चित्रण |

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  13. गौर फरमाए गौर फरमाए
    अपने ब्लॉग पर आई टिपण्णी
    पर रविकर ज़रा गौर फरमाए
    और शुभ चिन्तक अपने
    ज़रा सोच कर बनाए
    सकारात्मक . नकारात्मक
    का खेल बरसो से खेला जाता हैं
    उम्मीद हैं
    आप भी दो चार बार में
    जान ही जाये

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    1. आभार
      काहे का आभार
      कितना था भार
      जो होगया आभार
      अब आभा होगी
      भार होगा
      तभी तो ब्लॉग
      रविकर का साकार होगा
      रचना पर रचना
      आभार का भार
      सब सकार नकार
      पोस्ट पर पोस्ट
      रच
      नयी रोज रचना बना
      शुभचिंतक आयेगे
      झाड पे चढायेगे
      बस
      यहाँ उतारने क़ोई नहीं आता हैं
      खीच कर एक यही तुम्हे
      जमीन पर लायेगे
      और उसदिन
      रचना यही याद आयेगी

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  14. किसी के कहने पर
    मत आया कर
    रविकर मनमौजी रह कर
    चने के झाड़ पर
    चढ़ जाया कर
    खीचने वाले तो
    तुझे ताड़ से भी
    खींच लायेंगे
    झाड़ से गिराने में
    ज्यादा चोट तो
    कम से कम
    ना दे पायेंगे ।

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    1. सही कहा हैं सुशील ने
      सु शील जो ठहरे
      रचना से ज्यादा
      जरुरी हैं रचनात्मक
      बस वही बन
      अपनी मर्ज़ी से बन

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  15. ज्यादा तो नहीं
    कुछ हिंदी का ज्ञान मै भी रखती हूँ
    रे - चना
    कभी ये नहीं सुना
    जब भी सुना
    रे , चना ही सुना
    आप भी ज़रा खोजे
    रे - चना हैं या रे, चना

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  16. गम न कर अब दांत का।
    या बिन बुलाई मात का।
    निकट सुबह है रविकर
    जो अंत है हर रात का॥

    तकाज़ा है उम्र सात का।
    जाना सही दुग्ध दांत का।
    कलम ही कवि दन्त है
    तो दुख है किस बात का॥

    कड़क चना क्या काम का।
    और सगा नहीं जो राम का।
    कंकरों से यारी क्यों
    तूँ राही काव्य-धाम का॥

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    1. और सगा नहीं जो राम का।

      well said

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  17. सुन्दर प्रस्तुति...

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  18. जब किसी लंगड़े BACHEY को यह पता चलता है की वो जिन्दगी भर लंगडा रहेगा, तो उसे एक सदमा लगता है, पर फिर वो इसको स्वीकार कर लेता है, अपनी तकदीर मान लेता है. बच्चा बड़ा तो हो गया है पर लंगडा है. अब उसे दूसरो की आलोचना करने और उपहास करने मे आनंद आता है . आप जैसे महान लोग उसे माफ़ कर देते है, ताकि उसे दुःख न हो. हर बच्चा ऐसा नहीं होता . . . .जिसको बचपन मे आप जैसे लोगो का प्यार नहीं मिलता वही ऐसा व्यवहार करते है . . . . बहुत अच्छी रचना जी.

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  19. १९८३ आदर्श कालेज पठानकोट में RSS के OTC का प्रथम वर्ष का
    १९८६ में सरस्वती विद्यामंदिर निराला नगर लखनऊ में द्वितीय वर्ष
    १९९६ रेसिम बाग़ नागपुर में तृतीय वर्ष ||

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  20. मुबारक .मजा आ गया सर !बहुत बढ़िया रे -चना /रे ,चना ...रह बना ...खाओ चने रहो बने ...

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  21. कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
    बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |

    पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
    जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |

    झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
    खा बीबी की झाड़, चढूं न कभी झाड़ पर ||

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  22. आपकी ब्लॉगिंग में आपकी शख्सियत झलकती है.

    तंज़ करने वाले भी तंज़ सहने की ताक़त नहीं रखते. पढ़े लिखे लोगों की मजलिस में बुरी बातें देखकर एक लंबे अर्से तक ब्लॉग पर कुछ लिखने का जज़्बा ही सर्द पड़ गया था .

    ब्लॉगिंग को जुड़ने का ज़रिया बनाया जाए तो अच्छा रहेगा. अपनी बात कहिए और दूसरे की सुनिए.
    जब तक नफ़रतें दिल में रहेंगी ज़ुबान से मुहब्बत के फूल खिला ही नहीं सकते.

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  23. रे,चना ! में जो आत्मीयता थी वह ऐ, चना में नहीं है.चलिए,ठीक है.अपने रास्ते पर आगे बढ़ो,नकारात्मकता में ज़्यादा न उलझो !

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  24. चना-चबेना भी नहीं, महँगाई की मार।
    भारत की सरकार से, गया आदमी हार।।

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  25. ये रे चना ऐ चना रचना सब क्या हो रहा है ????लगता है इतिहास जानना पड़ेगा वैसे कुंडली बहुत अच्छी लगी चने की कविता भी समझने की कोशिश कर रही हूँ

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  26. रविकर जी, यदि मैं आपके स्थान पर होता तो कुछ और लिखता। मानसिक आघात के समय में मैं ऐसा कर भी चुका हूँ :

    "मुझ से तुम घृणा करो चाहे
    चाहे अपशब्द कहो जितने
    मैं मौन रहूँ, स्वीकार करूँ
    तुम दो जो तुमसे सके बने।

    मुझ पर तो श्रद्धा बची शेष
    बदले में करता वही पेश
    छोड़ो अथवा स्वीकार करो
    चाहे ममत्व का करो लेश।"

    आपकी ह्रदय की पीड़ा शायद रचना जी के अपमान से कहीं अधिक पीड़ान्तक हो। फिर भी दोषी आप ही हैं : जिसके कारण से किसी के ह्रदय को ठेस पहुँचे ... 'ऐसा मेरा आराध्य कवि हो' सोचकर ही कष्ट होता है।

    रविकर जी,
    आपकी काव्य-प्रतिभा ब्लॉग-जगत की धरोहर है। इसे निरंतर निर्दोष बनाए रखना आपका दायित्व है। इस अकूत प्रतिभा पर कभी ग्रहण न लगे इसलिए इसे कैसे संभालना है - इसके उपाय आपको ही करने हैं। आपने उस सारस्वत प्रतिभा से जो रचना रची है वह (शिल्प) अलंकार की दृष्टि से सर्वोत्तम बेशक हो लेकिन भाव की दृष्टि से अधम बन पड़ी है।

    मित्र होने के नाते आपसे हमेशा अपेक्षा रहती है कि आप मेरे दोषों को इंगित करते चलें और मैं आपके। इतना अधिकार आपको देना होगा।

    इतना सब कहने के बाद भी शायद मैंने आपके पक्ष को पूरा न जानो हो - इसकी गुंजाइश हो सकती है। फिर भी पहली दृष्टि में जो समझ आया - कह दिया।

    मैं आपसे प्रेम करने वाला एक स्नेही पाठक हूँ। यही भाव मेरे उनके प्रति भी हैं जो मुझे एक वर्ग के उन पहलुओं से अवगत कराती हैं जिनसे मैं अनजान हूँ।

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