चूल्हा-चौका कपट-कुपोषण,
मासिक धर्म निभाना होता ।
बीजारोपण दोषारोपण,
अपना रक्त बहाना होता ।।
नियमित मासिक चक्र बना है,
दर्द नारियों का आभूषण -
संतानों का पालन-पोषण,
अपना दुग्ध पिलाना होता ।।
धीरज दया सहनशक्ती में,
सदा जीतती हम तुमसे हैं -
जीवन हम सा पाते तो तुम ,
तेरा अता-पता ना होता ।।
सदा भांजना, धौंस ज़माना,
बेमतलब धमकाना होता ।
बाँह पकड़ कर सीधा करती-
याद जो आता नाना होता ।।
सदा भांजना, धौंस ज़माना,
ReplyDeleteबेमतलब धमकाना होता ।
बाँह पकड़ कर सीधा करती-
याद जो आता नाना होता ।
...गूढार्थ भरी सुन्दर काव्य रचना!
वाह वाह..
ReplyDeleteवाह..वाह..!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचनाकारी!
यही तो जननी है ! बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सटीक लेखन...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteवर्तनी तो ठीक कर लीजिए कविराज। धाड़ से सोची धडाम से पोस्ट करके फूल ली। पढ़ा भी नहीं।:)