(1)
गरज हमारी देख के, गरज-गरज घन खूब ।
गरज हमारी देख के, गरज-गरज घन खूब ।
बिन बरसे वापस हुवे, धमा-चौकड़ी ऊब ।
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।
त्राहिमाम हे राम, पसीना छूटे भारी ।
भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी ।।
(2)
झुलसे खर-पतवार हैं, सूख चुकी जब मूंज ।
पड़ी दरारें खेत में, त्राहिमाम की गूँज ।
त्राहिमाम की गूँज, गगन बादल दल खोजे ।
दल-दल घोंघे भूंज, खोलते खाके रोजे ।
सावन सा वन होय, रोय रा-वन की लंका ।
बादल का ना बाज, आज तक मारू डंका ।।
त्राहिमाम है ..हे भगवन ..
ReplyDeleteन भीगा तन और न मन ...
शुभकामनाएँ!
बहुत अच्छे रविकर जी!
ReplyDeleteआपका जवाब नहीं!
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
ReplyDeleteतपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।
जेठ की दुपहरिया का चित्र .
मौसम याद दिला दिया !
ReplyDeleteबढ़िया कविवर ...
बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteभाई जी, अद्भुत! लिखा तो आपने गरमी पर है, पर यह कविता मन को शीतल कर गई।
ReplyDeleteबहुत जबरजस्त..
ReplyDeleteशुक्रिया .अनुप्रासिक छटा बिखेरदी आपने .
ReplyDeleteबहुत खूब ! पसीने की महिमा पर पहली कविता...
ReplyDeletebahut badhiya....garmi door hui
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