Wednesday, 13 June 2012

भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी-

 (1)
गरज हमारी देख के,  गरज-गरज घन खूब ।
बिन बरसे वापस हुवे, धमा-चौकड़ी ऊब ।
 
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।

त्राहिमाम हे राम, पसीना छूटे भारी ।
भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी ।।  


(2)
झुलसे खर-पतवार हैं, सूख चुकी जब मूंज ।
पड़ी दरारें खेत में, त्राहिमाम की गूँज ।
त्राहिमाम की गूँज, गगन बादल दल खोजे ।
दल-दल घोंघे भूंज, खोलते खाके रोजे ।
सावन सा वन होय, रोय रा-वन की लंका ।
बादल का ना बाज, आज तक मारू  डंका ।।


10 comments:

  1. त्राहिमाम है ..हे भगवन ..
    न भीगा तन और न मन ...
    शुभकामनाएँ!

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  2. बहुत अच्छे रविकर जी!
    आपका जवाब नहीं!

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  3. धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
    तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।

    जेठ की दुपहरिया का चित्र .

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  4. मौसम याद दिला दिया !
    बढ़िया कविवर ...

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  5. भाई जी, अद्भुत! लिखा तो आपने गरमी पर है, पर यह कविता मन को शीतल कर गई।

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  6. शुक्रिया .अनुप्रासिक छटा बिखेरदी आपने .

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  7. बहुत खूब ! पसीने की महिमा पर पहली कविता...

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  8. bahut badhiya....garmi door hui

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