सच कहो...
तन्मय होकर के सुनो, अट्ठारह अध्याय |
भेद खोल दूँ तव-सकल, रहे कृष्ण घबराय |
भेद खोल दूँ तव-सकल, रहे कृष्ण घबराय |
रहे कृष्ण घबराय, सीध अर्जुन को पाया |
बेचारा असहाय, बुद्धि से ख़ूब भरमाया |
एक एक करतूत, देखता जाए संजय |
गोपी जस असहाय, नहीं कृष्णा ये तन्मय ||
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१८वीं-कड़ी)
Kailash Sharma
Kashish - My Poetry
Kashish - My Poetry
जन्म-कर्म योगादि पर, बोल रहे गोपाल |
ध्यान पूर्वक सुन रहे, अस्त्र-शस्त्र सब डाल |
ध्यान पूर्वक सुन रहे, अस्त्र-शस्त्र सब डाल |
अस्त्र-शस्त्र सब डाल, बाल की खाल निकाले |
महाविराट स्वरूप, तभी तो दर्शन पाले |
अर्जुन होते धन्य, धर्म का राज्य आ गया |
गीता का सन्देश, विश्व भर भला भा गया ||
चित्रों की खुबसूरती, शब्दों का भावार्थ |
कृष्ण हांकते रथ चले, आनंदित यह पार्थ |
कृष्ण हांकते रथ चले, आनंदित यह पार्थ |
आनंदित यह पार्थ, वादियाँ काश्मीर की |
हजरत बल डल झील, पुराने महल पीर की |
रविकर टिकट बगैर, घूमता जाए मित्रों |
कर लो सब दीदार, आभार अनोखे चित्रों ||
आपकी टिप्पणियों का ज़वाब नहीं...अपने आप में सम्पूर्ण और सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteकुण्डलियों की बहार बारहमास बनी रहे!
आनंदित यह पार्थ, वादियाँ काश्मीर की |
ReplyDeleteहजरत बल डल झील, पुराने महल पीर की |
क्या बात है रविकर जी यह मूल यात्रा वृत्तांत हम पढ़ें हैं .सुन्दर काव्य पुनर प्रस्तुति आपकी .
काव्य ऐसे ही प्रवाहमान रहे..
ReplyDeletenihshabd ....
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