निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं
उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं
अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें
मनमे अतीत की याद लिए फिरते है
बेकस का कोमल हृदय जला करता है
निशदिन उनका कृष-गात धुला करता है
दुखों की नाव बनाये नाविक -
दुर्दिन सागर पर किया करता है
औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं
जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
ReplyDelete'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
वे कुर्सी-कृष्ण का ध्यान किया करते ह
Aapka ye aakrosh jan jan ka aakrosh hai.
बहुत बढ़िया ... सटीक बात कही है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकुछ ज्यादा तो नहीं समझा, लेकिन पढ़ने में मजा आया और लय,प्रवाह सब कुछ था।
ReplyDeleteस्वागत है आप सब का |
ReplyDeleteआते रहें |
मार्ग-दर्शन और उत्साहवर्धन की हमेशा जरुरत है |
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteउत्साहवर्धन
ReplyDeleteहेतु बहुत-बहुत आभार ||
bahut sundar
ReplyDeletechhotawriters.blogspot.cohamare blog se bhi update rahe
ravi ji blog me aane ke liye dhanybaad aate rahe aur hamari nai post par apni raay dete rahe
ReplyDeletechhotawritersblogspot.com
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच
सन्नाट व्यंगिका।
ReplyDeleteबहुत ही प्रखर संधान , छद्म-वेशों पर, अभिव्यक्ति की मुखरता , आपकी कुशलता को प्रदर्शित कर रही है ...
ReplyDeleteसुंदर कथ्य ,शब्द संयोजन ...शुक्रिया जी /
औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
ReplyDeleteसंग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं
बहुत सुन्दर
sach kahi har ek baat. sunder shabdaawali di hai aaj ki sacchayi ko.
ReplyDeleteऔसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
ReplyDeleteसंग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते ..
यथार्थ परक बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...