Tuesday, 21 June 2011

अंधेर है,अंधेर है

इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम  पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना  देर है |                   
अंधेर है, अंधेर है ||     

थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन पर पड़े भारी |
जिंदगी  की  समझदारी,  में  बहुत  ही  देर  है |
अंधेर है, अंधेर है ||

10 comments:

  1. बहुत रोचक और सटीक प्रस्तुति...

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  2. निठारी हो, आरूषी हो, हत्याकांड ढेर हैं.
    बचे हुए घूम रहे तलवार और पंधेर हैं.
    अंधेर है, अंधेर है.

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  3. कैलाश C शर्मा जी
    सुस्वागतम
    आभार

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  4. प्रतुल वशिष्ठ जी --
    बहुत खूब ||
    आपको अपने बेटे के ब्लॉग पर देखा |
    http://kushkikritiyan.blogspot.com/
    आनन्दित हुआ | मार्गदर्शन करते रहें |
    आभार ||
    ये पंक्तियाँ हमारे IITian विद्यार्थियों के हालात पर है |
    EXAM हाल में उनके हालात पर लिखनी पड़ी ||

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  5. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें!

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  6. बहुत बहुत आभार |

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  7. वाह ..बहुत खूब कहा है आपने ।

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  8. बहुत-बहुत आभार |

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  9. बहुत अच्छी रचना
    बहुत आभार जो आप मेरे ब्लॉग पर् आकार कमेंट्स किया

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  10. बहुत-बहुत स्वागत महोदय आपका |
    कभी इधर भी चक्कर लगा लेना |
    आभार ||
    http://dcgpthravikar.blogspot.com/
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

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