इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||
हर अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना देर है |
अंधेर है, अंधेर है ||
थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||
न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन पर पड़े भारी |
जिंदगी की समझदारी, में बहुत ही देर है |
अंधेर है, अंधेर है ||
बहुत रोचक और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteनिठारी हो, आरूषी हो, हत्याकांड ढेर हैं.
ReplyDeleteबचे हुए घूम रहे तलवार और पंधेर हैं.
अंधेर है, अंधेर है.
कैलाश C शर्मा जी
ReplyDeleteसुस्वागतम
आभार
प्रतुल वशिष्ठ जी --
ReplyDeleteबहुत खूब ||
आपको अपने बेटे के ब्लॉग पर देखा |
http://kushkikritiyan.blogspot.com/
आनन्दित हुआ | मार्गदर्शन करते रहें |
आभार ||
ये पंक्तियाँ हमारे IITian विद्यार्थियों के हालात पर है |
EXAM हाल में उनके हालात पर लिखनी पड़ी ||
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteवाह ..बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार |
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत आभार जो आप मेरे ब्लॉग पर् आकार कमेंट्स किया
बहुत-बहुत स्वागत महोदय आपका |
ReplyDeleteकभी इधर भी चक्कर लगा लेना |
आभार ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/
http://dineshkidillagi.blogspot.com/